भारी ओलावृष्टि व बारिस से गेहूँ फसल हुए बर्बाद, किसानों की हँसी तब्दील हो चुकी है खामोशी में - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 12 अप्रैल 2015

भारी ओलावृष्टि व बारिस से गेहूँ फसल हुए बर्बाद, किसानों की हँसी तब्दील हो चुकी है खामोशी में

झारखण्ड की उप राजधानी दुमका के प्रखण्ड जामा अन्तर्गत ग्राम आसनथर व बाधझोंपा में सैकड़ों एकड़ भूमि पर लगे गेहूँ फसल के नुकसान से किसानों का हुआ हाल बुरा। फसल बीमा तो दूर की बात रही, फसल उत्पादन के लिये विभिन्न बैंकों से लिये गए ऋण की कौन करेगा भरपाई ? किसान नकुल प्र0 यादव सहित कई अन्य किसानों के चेहरे से गायब है मुस्कान। सरकार ने मुआवजे की धोषणा तो कर दी है किन्तु कितने किसानों को इसका प्राप्त हो पाता है लाभ देखने वाली बात होगी। जमीनी हकीकत से रुबरु होकर लौटे वरिष्ठ पत्रकार अमरेन्द्र सुमन की रिर्पोट। 
  
farmar-jharkhand
मार्च महीनें के अंतिम सप्ताह में भारी ओलावृष्टि व बारिस तथा तब से लगातार हो रही बारिस से उप राजधानी दुमका के किसानों को काफी क्षति उठानी पड़़ी। जिले के जामा प्रखण्ड के ग्राम आसनथर व बाघझोपा के किसानों की नींदे उड़ चुकी हैं। सैकड़ों एकड़ भूमि पर गेहूँ की खड़ी बालियाँ काली पड़ चुकी है। खेतों की हँसी खामोशी में बदल चुकी है। इन किसानों के सारे किये धरे व्यर्थ चले गए। गाँवों में सन्नाटा पसरा हुआ है। किसान धर की बहु-बेटियाँ उदास व दुःखी दिख रहीं। हँसी व मुस्कुराहट कहाँ गायब हो गए पता ही नहीं चल रहा। आसनथर के किसान नकुल प्रसाद यादव ने चार एकड़ भूमि पर गेइूँ का फसल बो रखा था। वे काफी खुश थे। धान व आलू की खेती में उठानी पड़ी भारी नुकसान की भरपाई गेहूँ उत्पादन से वे कर लेगें यही सोंच रखा था, किन्तु कौन जानता है प्रकृति कब, कहाँ और किसके लिये अभिशाप बनकर सामने खड़ी हो जाऐगी ? गेहूँ अब-तब काटने की वे सोंच ही रहे थे कि अचानक भारी ओलावृष्टि व बारिस ने उनके सारे सपनों को चकनाचूर कर दिया। धूप में खिल-खिलाकर हँस रही गेहूँ की बालियाँ अपने अस्तित्व से कोसों दूर जा चुकी थी। माथे पर हाथ धरे नकुल प्रसाद यादव का यह सोंच-सोंच कर बुरा हाल हुआ जा रहा है कि फसल उत्पादन के लिये बैंक से लिया गया एक लाख रुपये का कर्ज वे चुकाऐगें कैसे। 

बार-बार बैंक से लोन चुकाने की नोटिस भी उन्हें प्राप्त हो रही है। यही हाल आसनथर व बाघझोपा के अन्य किसानों का भी है। किसान ललित यादव, कुमोद लायक, वकिल यादव, कांति प्रसाद यादव, उमाकांत यादव, अनिरुद्ध यादव, प्रदीप कुमार यादव, अरविंद यादव, गुड्डू लायक, छत्तीस यादव व अन्य का है। 10 एकड़ भूमि पर कुमोद लायक ने गेहूँ बोया था। ढाई एकड़ भूमि पर ललित यादव व चार एकड़ भूमि पर वकिल यादव ने गेहूँ का फसल बोया था। पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष उत्पादन के अच्छे आसार थे। इसके लिये कुमोद लायक ने 40 हजार रुपये, वकिल यादव ने 20 हजार रुपये, छत्तीस यादव ने 15 हजार रुपये इलाहाबाद व वनांचल ग्रामीण बैंक से वतौर कर्ज राशियाँ प्राप्त की थीं। बैंक से लिये गए कर्ज फसल उत्पादन के बाद लौटाए जाने थे। कर्ज की राशि ये किसान कैसे चुकता करेगें सोंच-सोंच कर बुरा हाल हुआ जा रहा है। इधर बैंकों का दबाब लगातार बढ़ता ही जा रहा है। इधर खेतों में सो चुकी गेहूँ की बालियाँ भारी ओलावृष्टि व बारिस से अंकुरित हो रहीं। गेहूँ की जो भी बालियाँ खड़ी हैं वे सड़ चुकी हैं। अब 25 प्रतिशत भी उपज के आसार नहीं हैं। प्रकृति की लगातार मार से महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, विदर्भ की तरह झारखण्ड के किसान भी कहीं खुदकुशी के लिये बाध्य न हो जाएँ इसके लिये राज्य सरकार को फसल क्षतिपूर्ति के जरिये किसानों में नयी उम्मीद भरनी होगी ताकि आने वाले समय में मानसिक तनाव से मुक्त होकर नये जोश के साथ किसान अपने काम पर लग सकें। 

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