भोपाल, 8 मई (हि.स.)। पिछले दिनों मेरे आवास परिसर के कार्यालय एफ-88/19, तुलसी नगर, सेकेण्ड स्टॉप भोपाल में 5 व्यक्तियों द्वारा रात्रि में लगभग साढ़े 10 बजे तोडफ़ोड़ की। मेरा भाग्य अच्छा था कि मैं भोपाल से बाहर था तथा मेरा बेटा ललित किसी कार्य से घर के अंदर गया था। हमलावरों की संख्या मेरे पुत्र के अनुसार 5 से अधिक थी। यदि मैं अथवा मेरा पुत्र घटनास्थल पर होते तो किसी का शारीरिक नुकसान हो सकता था जिसकी भरपाई असंभव थी।
मैं आंध्रप्रदेश और तेलांगना के प्रवास से 1 मई 2015 को सायंकाल भोपाल आया। घटना स्थल का निरीक्षण किया एवं फोटो लिये, उसके बाद टी.टी. नगर थाने गये। मेरे साथ मेरा पुत्र ललित, छिंदवाड़ा से आई जिला सदस्यता प्रभारी श्रीमती सारिका श्रीवास्तव एवं अन्य मेरे साथ थे।
थाने में मैंने सारे घटनाक्रम को बताया। पहले तो पुलिस अपनी बात पर अड़ी थी कि लिखित आवेदन दे। मेरे द्वारा मना करने पर एफ.आई.आर. के स्थान पर पुलिस हस्तक्षेप, अयोग्य अपराध की सूचना में अपराध धारा 427 में दर्ज किया गया तथा अभियोगी को सक्षम न्यायालय में कार्यवाही करने को बतलाया गया।
मेरी रिपोर्ट के बाद सब इंस्पेक्टर त्रिपाठी ने मौके पर आकर निरीक्षण किया। मैंने उनसे आग्रह किया कि फिंगर प्रिंट लिये जा सकते हैं। उनके द्वारा अनसुनी की गई। इसी तरह पांच व्यक्ति बताने पर उनके द्वारा तीन-चार लिखे गये। मुझे लगा कि पुलिस अपनी मर्जी से काम करती है। अत: चुप रहना ही उचित समझा।
उपरोक्त लिखने का कारण फेसबुक, वॉटसप एवं मेल से घटना की जानकारी प्रदेश एवं देश के कई पत्रकार साथियों को हुई और मित्र आगे की कार्यवाही की जानकारी ले रहे है। क्योंकि मैं इंडियन फेडरेशन ऑफ मीडिया का राष्ट्रीय अध्यक्ष, वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन का प्रदेश अध्यक्ष, दैनिक निष्पक्ष समाचार ज्योति का स्थानीय संपादक एवं पत्रकार भवन समिति का कोषाध्यक्ष हूँ। सभी मित्रों का सवाल है कि राजधानी में पत्रकार के कार्यालय में घटना को पुलिस ने पुलिस हस्तक्षेप योग्य नहीं माना।
मित्रों जीवन ईश्वर ने दिया है, मृत्यु का स्थान, कारण एवं समय उसने निर्धारित कर रखा है। मैं इसे मानता हूँ और इसके कई उदाहरण आपको मिल जायेंगे। मैंने स्वयं को ईश्वर के हवाले कर रखा है। कई बार कारण हम तत्काल नहीं समझ पाते हैं, घटना होने के बाद हम कारण पर विचार करते है।

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