आलेख : वाह री ! पुलिस - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 8 जुलाई 2015

आलेख : वाह री ! पुलिस


व्याओं, व्याओं जैसे साईरन की आवाज दिल की धड़कनें बढ़ा देती है। और जहन में खाकी ओढ़े कुछ लोग भटकने लगते हैं। दरअसल हम यहाँ पर बात कर रहे हैं पुलिस की। जिसे समाज में शांति बनाये रखने का जिम्मा सौंपा गया है। लोगों के बीच सामंजस्य बरकरार रहे इसकी हिफाजत के लिए तैनात किया गया है। हालाँकि ये जिम्मेदारी जितनी पुलिस की है ,उतनी ही नागरिकों की। क्योंकि कहीं न कहीं दोनों एक दूसरे से एवं एक दूसरे के लिए भी हैं।  लेकिन न जाने क्यों अपराधियों के अलावा सामान्य लोगों के दिलों में भी पुलिस नाम की दहशत है। पुलिस का अर्थ न जाने क्यों जहन में नकारात्मक भाव उत्त्पन्न कर देता है।

सिर्फ इतना ही नहीं कभी कभी तो व्यक्ति इस सोच में पड़ जाता है कि बचें किससे पुलिस से या अपराधियों से। बच्चों के दिलों में भी पुलिसवालों की इमेज खूँसट और अकड़ू टाइप की होती है। बाकी अगर नहीं मानते तो जरा पुलिस का मतलब अपनों को छोड़ औरों से पूँछिये। हां कुछ लोग तो ये भी मानते हैं कि किसी दुर्घटना के बाद सुरक्षा के नाम पर फर्जदायगी के लिए आये खाकीधारी पुलिसवाले ही होते हैं। क्यों ये मतलब कितना सही है। ज़रा बताइये भी।

सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि किसी के घर में यदि पुलिस आ जाये तो निगाहें कई सारे मतलब निकालने लगती हैं। क्योंकि आज पुलिस व्यवहारिकता फ़ैलाने का काम छोड़कर अपराधी, अपराध तक सीमित हो चुकी है। हालाँकि कई बार और कई लोग चाहते हैं कि पुलिस के शब्बाशी के कारनामों को उजागर किया जाए। बहादुरी के लिए सम्मानित किया जाए। जी बिलकुल। किया भी जाना चाहिए। पर शब्बाशी के इतर उन कारनामों का क्या , जो वर्दी को चंद रुपयों में नीलाम कर देते हैं, बेगुनाहों के सर गुनाह मढ़ देते हैं। वर्दी के दम पर डराते हैं, धमकाते हैं। अपराधियों को छोड़ मासूमों पर लाठी डंडे बरसाते हैं। बलात्कार करते हैं। हत्या के मामले को एक नई दिशा देने का प्रयास करते हैं। कुछ पैसों के चलते इंसानियत बिसरा देते हैं। और तमाम बातें जो उस शपथ को शर्मसार करती हैं। देश के विकास में बाधक बनती हैं।

बुराइयों के सुर्ख़ियों के तौर पर उड़ने के साथ ही पुलिस की सकारात्मक कार्यवाईयाँ छिपी और दबी समझ आती हैं। कमोवेश वजह के तौर भ्रष्टाचार ही चिहुंकता है। ज्यादा से ज्यादा संलिप्तता दिखाई देती है। कुछ बेईमानों की वजह से कई ईमानदारों को शर्मसार होना पड़ता है।

ज़रुरत है एक दृढ़ इच्छाशक्ति वाले प्रयास की। हां यदि हालात और हालात को सुधारने या सुधरने की कल्पना की जा रही है तो इसमें ये जोड़ना न भूलें कि औदेदार धमकाकर या किसी अन्य प्रकार से पुलिस प्रशासन को गलत कार्य करने पर मजबूर न करें। साथ ही वे अपने कर्तव्य एवं कार्यों के प्रति ईमानदार रहें। पैसों की चमक के सामने नतमस्तक होकर अपने ज़मीर का सौदा न करें। ताकि उन्हें अपनी कीमत पता चल सके, समाज में अपना मतलब समेत भूमिका का बोध हो पाये।



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