पुन:इस्तेमाल योग्य प्रक्षेपण यान के विकास पर है इसरो का ध्यान - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।


सोमवार, 28 दिसंबर 2015

पुन:इस्तेमाल योग्य प्रक्षेपण यान के विकास पर है इसरो का ध्यान

isro-recycling-missiles
मैसुरु 28 दिसंबर, भारतीय अंतरिक्ष शोध संस्थान(इसरो) अंतरिक्ष अभियानों के खर्च को कम करने के लिए भारी वजन ले जाने में सक्षम तथा पुन: इस्तेमाल योग्य प्रक्षेपण यान के विकास पर ध्यान केन्द्रित कर रहा है। इसरो अध्यक्ष डॉ.अलुरु सीलिन किरणकुमार ने जे.एस.एस.विद्यापीठ स्वर्ण जयंती व्याख्यान श्रृंखला के तहत आज आयोजित ‘अंतरिक्ष तकनीक एवं सामाजिक अनुप्रयोग’ में कहा कि चक्रवाती तूफानों के पूर्वानुमान और प्राकृतिक आपदाओं की चेतावनी देने में अंतरिक्ष तकनीक के उपयोग ने कई लोगों की जान बचाने और संपत्तियों की रक्षा करने में सहयोग किया है। उन्होंने कहा कि किफायती उपग्रह ‘गगन’ ने भारतीय क्षेत्रीय नैविगेशन उपग्रहों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने कहा कि भारत ने अंतरिक्ष तकनीक का देश के विकास में प्रभावी उपयोग किया है। उन्होंने कहा कि भारत जैसे देश में, जहाँ की अधिकांश जनता गरीब और अशिक्षित है, वहां सूचना के सुगम प्रवाह के लिए प्रसारण प्रणाली का प्रक्षेपण वक्त की जरूरत है। 

डॉ कुमार ने अंतरिक्ष तकनीक के भारतीय दृष्टिकोण पर प्रकाश डालते हुए कहा कि तकनीक का देशवासियों के फायदे के लिए सशक्त और स्पष्ट दृष्टिकोण के साथ इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि अब सही लाभार्थियों तक इसकी पहुँच पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। मत्स्य पालन के क्षेत्र में तकनीक के अनुप्रयोग से देश के सकल घरेलू उत्पाद(जीडीपी) में इसरो ने 34 हजार करोड़ रुपये का योगदान किया था। डॉ कुमार ने अंतरिक्ष में भारतीय उपग्रहों पर प्रकाश डालते हुए अंतरिक्ष तकनीक के सामाजिक लाभों पर जोर दिया। उन्होंने स्वास्थ्य एवं शिक्षा, राष्ट्रीय विकास के लिए रिमाेट सेंसिंग का अनुप्रयोग, आरएस और सैटकॉम का क्षमता विकास में संयुक्त इस्तेमाल, मौसम पूर्वानुमान में नवाचार तथा जीपीएस सेवाअों में भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह तंत्र(इनसैट) के योगदान पर जोर दिया। 

उन्होंने कृषि, रेशम उत्पादन एवं मत्स्य पालन के क्षेत्र में अंतरिक्ष तकनीक के अनुप्रयोग पर भी बोला। उन्होंने बताया कि कैसे यह कुछ फसलों के बोने से एक महीने पहले ही उत्पादन का आंकलन करने, भूमि की उत्पादकता को पुन: हासिल करने, गेहूँ के फसल को पीले कीड़ों के हमले से बचाने के लिए सुरक्षात्मक उपाय करने, फसलों का पूर्वानुमान करने, मृदा एवं जल संरक्षण आदि में सहायक साबित हुआ है। डॉ कुमार ने पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी के संरक्षण में अंतरिक्ष तकनीक के इस्तेमाल पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि इसरो द्वारा विकसित तंत्र से भूतल जल संसाधन का मानचित्र तैयार करने, वनक्षेत्र की सीमा का निर्धारण करने, दावानल का पूर्वानुमान करने, औषधीय इस्तेमाल वाले वनक्षेत्र की पहचान करने, सड़कों का संरेखन करने में मदद मिली है। उन्होंने कहा कि इसरो की अंतरिक्ष तकनीक राष्ट्रीय संसाधन की गणना करने, वर्ष 2006से 2015 के दौरान बेंगलुरु अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे को जाने वाली सड़कों पर चट्टानों के उत्खनन की सही मात्रा का पता करने तथा पुरातत्व स्थलों का सीमांकन करने में महत्वपूर्ण रही है। 

कोई टिप्पणी नहीं: