विशेष आलेख : “क्या मौत या छात्र भी दलित होता है?” - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 19 जनवरी 2016

विशेष आलेख : “क्या मौत या छात्र भी दलित होता है?”

भारत आजादी के बाद से जिस नेहरूवियन शिक्षा पद्यति में जकड़ा है उसका खामियाजा देश के युवा वर्ग उठा रहे है.भारत का युवा दिग्भ्रमित हो इस देश के नेताओं के गुलाम बनते गये क्योंकि अंग्रेजो की विरासत को आगे बढाने वाली नेहरु-गांधी परिवारों ने मार्क्स –मैकाले और मुल्लो के सहयोग से वैसी शिक्षण प्रणाली को ही विकसित किया.कभी भी नेहरुवियनो ने देशप्रेम को प्रश्रय नही दिया उसके स्थान पर समाज को बाटने बाले सूचकों को प्राथमिकता देकर समाज में सतत विद्वेष की भाव को भरा ताकि वोटो के लोकतंत्र में अपनी राजनीति सुरक्षित रहे.

आज जब विश्व एक परिवार की तरह होता जा रहा जहाँ शिक्षा ही सर्वोपरी है. वैसे में भारत के शिक्ष्ण संस्थानों में भारतीय मूल्यों से दूर ऐसी शिक्षा को, ऐसे विचारों को तरजीह दी गयी जो स्वतंत्र मन में गुलाम मानसिकता को बनाए रखे. देश और समाज भाव से कोसो दूर की शिक्षा देकर विद्यार्थी के स्थान पर उत्पाद का निर्माण कर हम गौरवान्वित होते गये . जब हमने अपने युवा को उत्पाद के रूप में चुना तो उसकी स्थिति कितनी भयावह होगी इसका अंदाजा आप खुद लगा सकते है?क्या भारत जैसे विश्व गुरु रहे नैतिक मूल्यों को संजोने बाले देश में गुरु शिष्य की परम्परा के स्थान पर उत्पाद और उत्पादक की सोच कल्याणकारी है?

जिस तरह की विचारधारा देश के अधिकाँश शैक्षिक संस्थानों में भरे पड़े है वहां हम सिर्फ उत्पाद को वैश्विक बाज़ार में बेचने को विवश है जिससे ना तो विश्व का कल्याण होगा ना समाज का और ना ही उस उत्पाद रूपी छात्र का?बगैर सांस्कृतिक और राष्ट्रीय मूल्यों से रहित शिक्षा समाज में विषमता का जनक होती है जिसका अंत दुखदाई होता है.जो विचारधारा यह मानती है की साम्प्रदाईकता सांस्कृतिक खोल में छिपकर आती है वह राष्ट्र या समाज के लिए घातक है क्योंकि साम्प्रदाईकता समाज का विध्वंसक है और संस्कृति उस देश के स्वाभिमान से जुडी समाज और राष्ट्र को सुदृढ़ करने वाली संजीवनी होती है.किसी भी देश की संस्कृति से खासकर वह तबका हमेशा चिढा रहता है जिसने उस देश की संस्कृति के साथ विश्वासघात किया है ? 

भारत के संस्कृति के साथ जिन तबको और विचारधाराओं ने अवसरवादिता के चोंगे के सहारे देश की सत्ता पर काविज हुए वैसे तथाकथित सेकुलर गिरोहों के कुनवो ने भारत के स्वर्णिम इतिहास को तोड़-मरोड़ कर सिर्फ लिखा ही नही बल्कि इस देश की सांस्कृतिक मूल्यों को कलंकित करने का दुस्साहस भी किया .किन्तु सत्य को कुछ समय के लिए छुपाया जा सकता है. जैसे जैसे शोध हो रहे है इन कलमपिपासुओ की काली करतुत की कलई खुलती जा रही है. अपने स्याह पुते चेहरे को समाज के सामने लाने से बचने के लिए अब यही गिरोह कभी असहिष्णुता का स्यापा करते कुछ युवाओं और अपने कठपुतलियो के सहारे देश की छवि को धूमिल करने का दुस्साहस कर रहे है.

उच्तर शैक्षणिक संस्थानों में कुंडली मारे इन मदारिओं ने कुछ छात्रों को साप बना नचा रहे है जिसका भोंडे प्रदर्शन देश के बिकाऊ मिडिया करती रहती है.भारत के मिडिया में इन मदारिओं से दीक्षित ज़मुरे जो है वे इनकी कलाबाजियां दिखा देश की जनता को कुछ देर के लिए दिग्भ्रमित करने का भी प्रयास करती है. हैदराबाद विश्वविद्यालय में इन मदारियो के जमूरों के इंद्रजाल में फंसकर एक होनहार विद्यार्थी जिससे देश और समाज एक नयी दिशा पाता उसने अपनी जीवन समाप्त कर ली.इन ज़मुरों के दबाव में हमारा एक नौज़वान जो देश के लिए कुछ कर सकता था उसने आत्महत्या कर ली.

रोहित वेमुला नामक होनहार छात्र ने जिस परिस्थिति में आत्महत्या करना उचित समझा उसका मूल कारण देश में नेहरु-गांधी परिवारों की नीति और मार्क्स –मैकाले-मुल्लो द्वारा नियंत्रित शिक्षा पद्यति है.पीएचडी स्कालर रोहित पिछले दो वर्षो से शोध कर रहा था.एक होनहार छात्र के रूप में वह आरम्भिक दिनों में प्रवेश किया किन्तु इस होनहार शोधार्थी पर मार्क्स –मैकाले और मुल्लो के ज़मुरों की नजर पड़ी और इन ज़मुरों ने रोहित को इस मुकाम पर ला खड़ा किया की वह आत्महत्या करने को विवश हुआ.विश्वविद्यालय में इन जमूरों के इंद्रजाल में फंसा रोहित ऐसा कदम उठाता गया जो उसके जीवन को लील कर ही रुका.

किसी भी देश का एक होनहार युवा का असमय निधन देश के लिए अपूर्णीय क्षति है.वह इस देश का हीरा था जिसके असमय निधन से हम सब मर्माहत हैं किन्तु इसे दलित छात्र शब्द से जोड़ना देश के लिए घातक है.आज भी यह तथाकथित बुद्धिजीवी जिस मानसिकता में जी रहे है वह भारत की एकता और संप्रभुता के लिए घातक है.आखिर कब तक भारत के समाज को इन शब्दों से बाँटकर समाज के हर तबकों में अलगाव की भाव को बनाए रखोगे. छात्र छात्र होता है उसकी मौत मौत होती है वह ना तो दलित होता है ना सवर्ण, ना अल्पसंख्यक होता है और ना बहुसंख्यक. देश को ऐसे शब्दों में बाटने का घृणित प्रयास करने बाले इस देश के गद्दार ही है जिसका असली मंशा देश और समाज को खंडित करने का है . 

देश में आतंक का मूल मार्क्स –मैकाले और मुल्लो की विचारधारा है. एक पढ़ा लिखा विद्यार्थी इन विध्वंसकों के नज़र में आते ही आतंक का या आत्महत्या का रास्ता चुनता है आखिर क्यों? आज विश्व इस्लामी आतंक से त्रस्त है, भारत के अनेक भागो में नक्सली आतंकवाद है तो इन्ही विध्वंसक विचारधाराओ के कारण .भारत के अधिकाँश उच्चतर शिक्ष्ण संस्थानों में इन विध्वंसक विचारधारा के आतंकियो का कव्जा है जिसके कारण रोहित वेमुला जैसे युवा या तो आत्महत्या के लिए मज़बूर होते है या नक्सली या आतंकवादी बनते है. 




death-and-cast

---संजय कुमार आज़ाद ---
शीतल अपार्टमेंट ; 
निवारणपुर ;रांची -834002
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