- सच कहें जान बचाना जरुरी कि चुनाव जीतना ...?
बहुत कम जानते हैं कि केदार आपदा के नाम से जानी गयी भीषण तबाही के बाद उत्तराखंड के लिए केंद्र द्वारा दो डाप्लर रडार की स्वीकृति दे दी गयी थी जिसके लिए लगभग 8 मिलियन डालर स्वीकृत भी हो गए थे. और तो और अल्मोड़ा में लगने वाले डाप्लर रडार के लिए केंद्र द्वारा 6 करोड़ की स्वीकृति मिल भी गयी थी लेकिन उत्तराखंड सरकार भूमि मुहैय्या नहीं करवा सकी. पूछिए क्यों...! क्योंकि इसमें कई तरह के तकनीकी पेंच थे जिनमें रक्षा मंत्रालय की ओर से क्लीन चिट के साथ बेहद पारदर्शिता बरती जाती है. यानि कमीशन तो होती है लेकिन रोटी में रखे नमक की तरह.
तीन डाप्लर पडोसी राज्य हिमाचल के लिए स्वीकृत हुए थे जोकि वहां की सरकार ने स्थापित भी कर दिए हैं. लेकिन उत्तराखंड सरकार अल्मोड़ा जिले में सुरक्षा की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण इस रडार के लिए जमीन मुहैय्या नहीं करवा सकी. कारण वही शुद्ध घूस का बड़ा खेल बड़ा फायदा दूर दूर तक आकाओं व उनके अधीनस्थ कर्मियों को नजर नहीं आया, अगर आया होता तो जिंदल की स्कूल की तरह रडार के लिए रातों रात कई एकड़ जमीन पर कब्जा हो जाता है.. बस यही खेल मुझे आजतक अपने वर्तमान मुख्यमंत्री का समझ नहीं आया कि वे जमीन के सौदों को किस नजरिये से देखते हैं.
मुझे इस राजनीति ने एक बात तो सिखा दी है कि यहाँ जनता की जान-माल से ज्यादा महत्वपूर्ण चुनाव जीतना है. जिसके लिए पार्टी फण्ड व अपना करोड़ों अरबों रूपय्या अंदर होना जरुरी है. अफ़सोस कि हम ऐसे प्रदेश में रहते हैं जिसे देवभूमि के रूप में पूरा राष्ट्र पूरा विश्व पूजता है लेकिन ये लूट और लुटेरों की फ़ौज इसे नरकभूमि में बदलने को आमादा है. आतंक पूरे देश में सर फैलाए हुए है इसमें भी कोई गुंजाइश नहीं कि आतंक के आकाओं ने प्रदेश के कई सॉफ्ट टारगेट की रेकी की होगी. ईश्वर करे ऐसा न हो. अगर ऐसा सचमुच हुआ तो फिर हम कहाँ सुरक्षित हैं.
डाप्लर रडार इंडिया डीआरडीओ (INDIA'S DRDO) द्वारा भारतीय जल थल व नभ सेना के लिए विकसित की गयी रडार टेक्नोलाजी है जिससे मौसम बारिश मोबाइल सर्विलांस ग्लेशियर सहित कई महत्वपूर्ण स्थानों पर होने वाली हलचल का ब्यौरा प्राप्त होता है. और हर उस घटना का त्वरित ब्यौरा प्राप्त होता है जो देश की सुरक्षा से जुडी हुई हो. इतने महत्वपूर्ण रडार सिर्फ प्रदेश में अभी तक इसलिए नहीं लगाए गए क्योंकि इसमें बड़ा खेल नहीं है. प्रदेश व देश रहे ठेंगे पर, राजनीतिज्ञों को अपनी जेब किसी भी सूरत में भरनी ही है. क्योंकि जान की सुरक्षा से ज्यादा पसंद इन लोगों को चुनाव जीतना है.

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