नयी दिल्ली, 03 जनवरी, माेदी सरकार ने अपनी महत्वाकांक्षी निर्मल और अविरल गंगा योजना के लिए 2015 में कई कदम उठाते हुए अपने ‘नमामि गंगे’ अभियान को मजबूत आधार प्रदान किया है लेकिन अब उसके समक्ष इसको क्रियान्वित करने की बड़ी चुनौती है। जल संसाधन, नदी विकास तथा गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती ने हाल ही में कहा था कि वह जनवरी में गंगा के तट पर बसे दस शहरों में निर्मल गंगा के अभियान कार्यक्रम को जमीनी स्तर पर क्रियान्वित करना शुरू कर देंगी। इन शहरों में हरिद्वार, गढमुक्तेश्वर, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, पटना, साहिबगंज, कोलकाता, नवादविप तथा गंगा सागर शामिल है। गंगा हरिद्वार से ही प्रदूषित होना शुरू होती है और उसके बाद उसमें शहरों तथा उद्योगों का कचरा गिरना शुरू हो जाता है और सरकार के लिए इस कचरे का प्रबंधन आसान नहीं है। इस संबंध में कई उद्योगों को नोटिस जारी किए गए हैं और स्थानीय निकायों को गंगा में कचरा नहीं डालने को कहा गया है लेकिन उनकी समस्या के समाधान के लिए फिलहाल कोई ठोस योजना नजर नहीं आती है।
मोदी सरकार ने गंगा की सफाई के कार्यक्रम को विशेष संकल्प के रूप में अपनाया है। इसके लिए अलग मंत्रालय बनाने के साथ ही ‘नमामि गंगे’ नाम से योजना शुरू की गयी है जिसके लिए 20,000 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है। मंत्रालय इस काम में स्थानीय लागों को जोड़कर गंगा की निर्मलता के लिए जगारूकता अभियान भी शुरू किया है लेकिन यह अभियान लोकप्रिय नहीं हो पा रहा है और जब तक अभियान से लोगों को जोड़कर उसे लोकप्रिय नहीं बनाया जाता तब तक किसी भी मिशन के सफल होने की संभावना क्षीण रहती है। सरकार और सुश्री भारती जहां इस मिशन के सफल होने के दावे कर रही हैं वहीं इसकी सफलता को लेकर प्रश्न भी उठाये जा रहे हैं। उच्चतम न्यायालय ने भी गंगा की सफाई की कार्ययोजना और उसे क्रियान्वित करने की सरकार की गति को लेकर उसे फटकार लगा चुका है। न्यायमूर्ति टी एस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार से पूछा कि क्या वह इसी कार्यकाल में गंगा की सफाई का काम पूरा कर देगी। सरकार की तरफ से कहा गया था कि 2018 में गंगा की सफाई का काम पूरा कर दिया जाएगा। न्यायालय ने कड़ा रुख अपनाते हुए सरकार से कहा था कि इस योजना को लेकर उसके काम की रफ्तार को देखते नहीं लगता कि काम समय पर पूरा कर लिया जाएगा।
इसी तरह राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने भी अक्टूबर में कहा कि सरकार गंगा की सफाई के अभियान में सफल नहीं हो रही है। एनजीटी ने केंद्र से पूछा कि वह 2500 किलोमीटर लम्बी गंगा नदी में एक भी जगह बताएं जहां गंगा में प्रदूषण की स्थिति में सुधार हुआ है। न्यायाधिकरण यहीं नहीं रुका उसने और कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि सरकार का कहना है कि वह गंगा की सफाई के लिए बहुत प्रयास कर रही है लेकिन उसकी कोशिश कहीं भी रंग लाती नजर नहीं आ रही है। इस कार्यक्रम के तहत मंत्रालय ने पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय ने व्यापक स्वच्छता कार्यक्रम में शामिल करने और खुले में शौच की समस्या से मुक्ति दिलाने के लिए गंगा से सटी 1,649 ग्राम पंचायतों की पहचान की है। मंत्रालय द्वारा गंगा ग्राम के रूप में पायलट परियोजना शुरू की गयी है जिसे गंगा के तट पर बसे 66 ग्राम पंचायतों में लागू किया जाना है। यह परियोजना एक जिले में एक ही ग्राम में लागू होगी। रक्षा मंत्रालय ने सैद्धांतिक तौर पर पूर्व सेवाकर्मियों के साथ टेरीटोरियल आर्मी (प्रादेशिक सेना) के अंतर्गत गंगा टास्क फोर्स की 4 बटालियन बनाने को मंजूरी दे दी है।
गंगा उत्तराखंड के गंगोत्री से निकलकर पांच राज्यों से गुजरते हुए गंगा सागर में जाती है और इसमें प्रदूषण की स्थिति में सुधार के लिए वन अनुंसधान संस्थान देहरादून ने एक डीपीआर तैयार की है और सरकार उसके अनुरूप इसे जल्द क्रियान्वित कर रही है। इसके अलावा शोधन क्षमता बढाने तथा सीवर नेटवर्क विकसित करने के लिए 7,350.38 करोड़ रुपए की 93 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है। सुश्री भारती का कहना है कि उन्होंने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को गंगा में प्रदूषित पानी बहाने वाले उद्योगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। इसके साथ ही पिछले माह प्रदूषण बाेर्ड ने गोमुख से हिरद्वार तक गंगा में प्लास्टिक कचरा डालने पर रोक लगा दी है। नमामि गंगे योजना को मूर्तरूप देने तथा गंगा में प्रदूषण रोकने के लिए निर्मल गंगा मिशन के तहत गंगा तट पर बसी 118 स्थानयी इकाइयों को उसमें कचरा नहीं डालने के लिए नोटिस जारी किया गया है। इन निकायों से गंगा में दो तिहाई प्रदूषण पैदा होता है।

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