नयी दिल्ली, 03 जनवरी, मोदी सरकार मुंबई से यूरोप तक माल परिवहन के लिये अहम मानी जा रही अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (आईएनएसटीसी) परियोजना को पूरी तरह से रेल लाइन पर आधारित बनाने के लिये पाकिस्तान रेलवे से पारगमन सुविधा प्राप्त करने के प्रयास शुरू करेगी। भारत अभी इस काॅरिडोर से मुंबई के जवाहर लाल नेहरू बंदरगाह से जुड़ा हुआ है। यह काॅरिडोर ईरानी समुद्र तट पर बंदर अब्बास से उत्तरी ईरान में कैस्पियन सागर के तट पर बंदर अंजाली तक रेलमार्ग से तथा वहाँ से कैस्पियन सागर में रूस के अस्त्राखान तक समुद्रीमार्ग और अस्त्राखान से सेंटपीटर्सबर्ग तक रेलमार्ग पर बनाया गया है। इस परियोजना को भविष्य में दक्षिण एवं पश्चिम एशिया तथा यूरोप एवं मध्य एशिया के बीच अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रमुख मार्ग के रूप में देखा जा रहा है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रूस, अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान की यात्रा तथा भारत ईरान संयुक्त अायोग की बैठक में इस परियोजना की समीक्षा की गयी और इसमें अवरोधों को दूर करने एवं अधिक उपयोगी बनाने पर सहमति बनी है। भारत ने पाकिस्तान के लाहौर को ईरान की पूर्वी सीमा पर ज़ायदान से रेलवे लाइन को जोड़े जाने के प्रस्ताव को आगे बढ़ाना शुरू किया है। हाल ही में तेहरान में हुई एक बैठक में भारतीय रेलवे के अधिकारियों ने इस प्रस्ताव पर चर्चा की है। उन्होंने बताया कि भारत से लाहौर के बीच रेलवे लाइन चालू है। उस पर समझौता एक्सप्रेस संचालित होती है। पाकिस्तान रेलवे का ईरान के रेलवे से ज़ायदान सीमा पर संपर्क है। अगर पाकिस्तान भारत से मालगाड़ियाें को ज़ायदान तक पारगमन की इजाज़त दे दे और ईरान में बंदर-अंजाली के पास रष्ट से लेकर ईरान - अजरबैजान सीमा पर अस्तरा तक रेलवे नेटवर्क बन जाये तो भारत से सीधे सेंटपीटर्सबर्ग तक रेलवे नेटवर्क होगा।
सूत्राें का कहना है कि खस्ताहाल अर्थव्यवस्था के लिहाज से पाकिस्तान के लिये भारत की ओर से आने वाला प्रस्ताव कई मायने में लाभदायक हो सकता है। पाकिस्तान अगर रेलवे पारगमन सुविधा दे देता है तो वह भी इस बहुदेशीय परियोजना में शामिल हो सकता है और उसके विदेश व्यापार में भी खासा इजाफा हो सकता है। इसके साथ ही भारत ने ईरान सरकार के साथ रष्ट से लेकर अस्तरा तक रेलवे नेटवर्क बनाने की संभावनाओं पर बात की है। आईएनएसटीसी के बारे में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में सितंबर 2000 में भारत, ईरान और रूस ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किये थे। इसके तहत यूरोप एवं रूस के लिये भारत से माल परिवहन का एक वैकल्पिक मार्ग का प्रस्ताव किया गया था। इस परियोजना में मुंबई से सड़क मार्ग से ईरान के बंदर अब्बास तक समुद्री मार्ग से, वहां से देश की उत्तरी सीमा पर अमीराबाद बंदरगाह से कैस्पियन सागर में रूस के अस्त्राखान बंदरगाह तक पुन: समुद्री मार्ग से तथा अस्त्राखान बंदरगाह से आगे रूस के सेंटपीटर्सबर्ग तक रेलमार्ग से माल परिवहन करने का प्रस्ताव रखा गया। एक अन्य मार्ग बंदर अब्बास से सड़क मार्ग से अजरबैजान की राजधानी बाकू और वहाँ से रेल मार्ग से आगे माल परिवहन का प्रस्ताव भी है। लेकिन इस मार्ग में ईरान में बंदर-अंजाली के पास रष्ट से अस्तरा के बीच संपर्क का अभाव एक बाधा है।
सितंबर 2014 में भारत की पहल पर मुंबई से बंदर अब्बास और वहाँ से कैस्पियन सागर में अमीराबाद बंदरगाह से अस्त्राखान बंदरगाह और फिर वहाँ से रेलमार्ग से सेंटपीटर्सबर्ग तक का खाली कंटेनरों का ड्राई रन किया गया था जो पारंपरिक स्वेज नहर और अटलांटिक महासागर के मार्ग की तुलना में लागत में 40 फीसदी सस्ता और मालवहन अवधि में तीस प्रतिशत की बचत वाला साबित हुआ है। इसके बाद सदस्य देशों ने इस परियोजना पर अधिक दिलचस्पी दिखानी शुरू की। इस संपूर्ण परियोजना की व्यवहार्यता को देखते हुए दस अन्य देशों - ओमान, अजरबैजान, कजाखस्तान, किर्गीजिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्की, यूक्रेन, आर्मेनिया, बेलारूस और सीरिया ने भी साझेदारी के लिये हस्ताक्षर किये। इसके अलावा बुल्गारिया की इच्छा पर उसे विशेष पर्यवेक्षक के रूप में शामिल किया गया। इस परियोजना में उज़्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान विशेष आमंत्रित के रूप में मौजूद हैं जबकि अफग़ानिस्तान और कुवैत ने भी इस परियोजना में शामिल होने की इच्छा जतायी है। इस बीच ईरान-कजाखस्तान रेलमार्ग भी इस परियोजना में शामिल किये जाने से मध्य एशियाई देश भी सक्रिय रूप से आईएनएसटीसी के मानचित्र पर आ गये हैं जिससे खाड़ी देशों की भी दिलचस्पी इस परियोजना को लेकर बढ़ गयी।
उल्लेखनीय है कि भारत ईरान में रणनीतिक रूप से अति महत्वपूर्ण चाबहार बंदरगाह काे विकसित कर रहा है। कूटनीतिक सूत्रों के अनुसार भविष्य में ईरान के सभी बंदरगाह तथा भारत के अरब सागर के तट पर स्थित अन्य महत्वपूर्ण बंदरगाह भी आईएनएसटीसी परियोजना का अंग बनेंगे। तुर्की ने भी काला सागर आर्थिक सहयोग संगठन को इस परियोजना से जोड़ने का प्रस्ताव किया है। सूत्रों के अनुसार भारत ने पहली बार इस महापरियोजना पर माल के परिवहन के लिये अंतर्राष्ट्रीय पारगमन समझौते का मसौदा पेश किया है जो मालपरिवहन को वैधानिक अमलीजामा पहनाने में मददगार होगा। गत वर्ष अगस्त में यहाँ हुई आईएनएसटीसी समन्वय परिषद की एक बैठक में इस परियोजना को तेजी से आगे बढ़ाने की दिशा में कई अहम निर्णय लिये गये। इसी दौरान एक विशेषज्ञ समूह की बैठक हुई जिसमें दो कार्यसमूहों का गठन किया गया जो 13 देशों की इस साझा महापरियोजना में सीमाशुल्क एवं संचालनात्मक मुद्दों पर सर्वसम्मति कायम करने का काम कर रहे हैं।
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार पारगमन समझौते के मसौदे का सदस्य देश अध्ययन कर रहे हैं। सदस्यों से इस मसौदे का अध्ययन करके जल्द से जल्द अपनी टिप्पणियां देने को कहा गया है ताकि विशेषज्ञ समूह की अगली बैठक में उसे अंतिम रूप दिया जा सके। इसके अलावा एक कार्यसमूह एकसमान सीमाशुल्क दस्तावेज तैयार कर रहा है जो सभी देशों के नियमों के अनुरूप एवं सर्वसम्मत होगा। भारत ने परस्पर सम्मत साझा दस्तावेज तैयार करने के साथ कॉरिडोर के संचालन के लिये वाणिज्यिक आधार पर काम करने वाली एक अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी के गठन का भी प्रस्ताव किया है। सूत्रों के अनुुसार जनवरी में वाणिज्यिक विषयों एवं संचालन संबंधी कार्यसमूह की बैठक होगी जिसमें भारत द्वारा पेश की गयी रिपोर्ट के साथ साथ बंदरगाह सुविधाओं एवं वीसा प्रणाली पर भी चर्चा होगी।

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