पटना 25 फरवरी, बिहार की अर्थव्यवस्था पिछले एक दशक में 10.52 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ी है जो देश के सभी प्रमुख राज्यों में लगभग सर्वाधिक है। बिहार विधानसभा में आज पेश आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2015-16 के अनुसार वर्ष 2005-06 से 2014-15 के बीच बिहार की अर्थव्यवस्था 10.52 प्रतिशत की वार्षिक दर से विकसित हुई है जो देश के सभी प्रमुख राज्यों में लगभग सर्वाधिक है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2012-13 में बिहार की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत का 37 प्रतिशत थी जो 2014-15 में बढ़कर 40.6 प्रतिशत हो गयी। इसी तरह 2005-06 से 2014-15 के बीच राज्य में कृषि के क्षेत्र में वृद्धि दर 6.02 प्रतिशत रही है। इसी अवधि में संचार क्षेत्र में 25.38 प्रतिशत , निबंधित विनिर्माण में 19.31 , निर्माण में 16.85 , बैंकिग एवं बीमा में 17.70 और परिवहन , भंडारण एवं संचार में 15.08 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है। वित्त मंत्री अब्दुल बारी सिद्दिकी ने सदन में आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट पेश करने के बाद संवाददाता सम्मेलन में कहा कि 14वें वित्त आयोग की अनुशंसाओं के अनुसार करों के विभाज्य पूल में बिहार का हिस्सा 10.917 प्रतिशत से घटकर 9.665 प्रतिशत रह गया। इसके कारण 14वें वित्त आयोग की अवधि में बिहार को लगभग 50 हजार करोड़ का नुकसान होगा। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने बेहतर वित्तीय प्रबंधन के जरिए सकल राजकोषीय घाटे को तय सीमा के नीचे रखा है और रिण समस्या पर भी नियंत्रण पाया है।
वित्त मंत्री ने कहा कि वर्ष 2014-15 में राजस्व प्राप्ति में गत वर्ष से 9, 499 करोड़ रूपये की वृद्धि हुई है जो बढ़कर 78,418 करोड़ रूपये हो गयी। वहीं , 2014-15 के दौरान राजस्व व्यय 10,093 करोड़ रूपये बढ़कर 72,570 करोड़ हो गया है । राज्य व्यय में वृद्धि का कारण विकास मूलक व्यय में 57 प्रतिशत की वृद्धि है । श्री सिद्दिकी ने बताया कि वर्ष 2010-11 से 2014-15 के बीच पांच वर्षो के दौरान कुल राजस्व प्राप्तियां 44 हजार 532 करोड़ रूपये से 1.76 गुणा बढ़कर 78 हजार 418 करोड़ रूपये हो गयी है । साथ ही कर और करेतर को मिलाकर कुल राजस्व इस अवधि में 20 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़कर 10 हजार 855 करोड़ रूपये के मुकाबले 22 हजार 309 करोड़ रूपये हो गया । वित्त मंत्री ने कहा कि राज्य सरकार पर बकाया ऋण 2010-11 में 47 हजार 285 करोड़ रूपये था जो सकल राज्य घरेलू उत्पाद के 23.2 प्रतिशत के बराबर था । उन्होंने कहा कि 2014-15 में बकाया ऋण बढ़कर 74 हजार 570 करोड़ रूपया पहुंच गया लेकिन ऋण और सकल राज्य घरेलू उत्पाद के बीच का अनुपात काफी गिरकर 18.5 प्रतिशत रहा गया जो बारहवें वित्त आयोग द्वारा 28 प्रतिशत की निर्धारित सीमा से काफी नीचे है।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें