- अंतराष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमतों में कमी के बावजूद रेलवे का किराया क्यों नहीं घटा, चोर दरवाजे से बढ़ाया जा रहा रेलवे का किराया
- पिछड़े इलाकों में रेलवे के विस्तार की उपेक्षा चिंताजनक, इससे बढ़ रहा क्षेत्रीय असंतुलन
पटना 25 फरवरी 2016, आज संसद में पेश रेलवे बजट पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए माले के राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि सरकार पूरी तरह से रेलवे के निजीकरण के रास्ते पर बढ़ रही है, यह बेहद खतरनाक और देश के हित के खिलाफ है. हम देश के संसाधनों को विदेशी पंूजी के हवाले करने का विरोध जारी रखेंगे. देश की राष्ट्रीय एकता का प्रतीक रेलवे को पीपीपी माॅडल के तहत पुनर्गठित करने की बात हो रही है. दरअसल, यह पुनर्गठन रेलवे के निजीकरण व उसमें विदेशी पूंजी के निवेश के रास्ते को और ज्यादा खोलने की साजिश है. यह पूरी तरह से देश की स्वायत्तता से खिलवाड़ होगा. यह देशभक्तों की कैसी सरकार है, जो देश के संसाधनों को ही बेचने पर तुली है? उन्होंने आगे कहा कि पारदर्शिता के नाम पर आॅडिट के लिए थर्ड पार्टी को शामिल किया जाना भी पूरी तरह गलत है. यह निजी घुसपैठ को बढ़ावा देने का ही उदाहरण है. सरकार कह रही है कि रेलवे में किराया बढ़ोतरी नहीं हुई है, लेकिन चोर दरवाजे से पहले ही कैंसिलेशन आदि मदों में भारी कटौती कर दी गयी है. अंतराष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमत में भारी कमी के बावजूद यात्री किराये अथवा माल ढुलाई में कोई कमी नहीं की गयी है. रेलवे में बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर मिलते रहे हैं, लेकिन सरकार अब ठेका आधारित बहाली कर रही है. इस बजट में कोई नई बहाली नहीं है, उलटे उसे खत्म करने की साजिश हो रही है.
बजट में कूली का नाम बदलकर सहायक करने की बात हो रही है, लेकिन कुलियों के सामाजिक सुरक्षा, पेंशन आदि विषयों पर बजट में एक शब्द भी नहीं बोला गया है. देश की बड़ी संख्या सामान्य श्रेणी में यात्रा करती है. लेकिन सामान्य श्रेणी की ट्रेनों की संख्या बेहद कम है. सामान्य तौर पर किसी भी ट्रेन में सामान्य डिब्बे 2 या तीन होते हैं. सरकार को सामान्य श्रेणी के ट्रेनों व डिब्बों की संख्या बढ़ानी चाहिए थी. महिला डिब्बों की भी वही स्थिति है. उसकी स्थिति बेहद नारकीय होती है, और उसमें सुरक्षा के भी कोई उपाय नहीं हैं. बजट में पिछड़े इलाके में रेलवे के विस्तार, पुरानी पटरियों के दोहरीकरण आदि विषयों पर एक शब्द भी नहीं है. देश के बड़े क्षेत्र में अभी भी रेल की पटरियां नहीं है, जिससे आर्थिक असंतुलन पैदा हो रहा है. रेलवे का बोझ राज्य के कंधों पर देना गरीब व पिछड़े राज्यों के साथ घोर अन्याय है. बिहार जैसे पिछड़े राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा देना चाहिए था, लेकिन उलटे रेलवे का बोझ डाला जा रहा है.

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