पटना, 25 फरवरी। केन्द्रीय रेल मंत्री सुरेष प्रभु ने जो रेल बजट संसद में पेष किया वह प्रथम द्रष्टया घोर निराषाजनक है और इसमें बिहार के हितों की जानबूझकर उपेक्षा की गयी है। भले ही रेल मंत्री किराया भाड़ा नहीं बढ़ाकर अपनी पीठ थपथवा लें, परंतु अंदर की बात तो यह है कि उन्होंने केन्द्रीय मंत्री नहीं वरन काॅरपोरेट घराने के सीईओ की भांति रेलवे के निजीकरण का मार्ग प्रषस्त करने हेतु पीपीपी मोड पर विकास का सपना दिखाया है। अत्योदय तेजष, हमसफर, दीनदयाल ट्रेन और बोगी का प्रावधान दरअस्ल नई बोतल में पुरानी शराब की रिफिलिंग जैसा हैं कुली को सहायक /सहयोगी नाम दे देने से उनकी जीवनदषा नहीं सुधर सकती, वे तो ग्रेड डी का कर्मचारी होने की मांग करते रहे हैं।
बहरहाल तेज तर्रार रेलमंत्री (कहें, सीईओ) ने अपने नायक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को खुष कर दिया है तभी तो उन्होंने इसे गरिमा, गौरव, और मुस्कान बढ़ाने का खिताव दे दिया है -सपनों के सौदार की तरह आम लोगों की जरूरत, सुरक्षा व साफ-सफाई की समस्याओं से बेखबर । झूठे सपने खोखले वादों के पीछे की हकीकत यह है कि आम भारतीय जनगण की जीवन रेखा (लाईफ-लाईन) मानी जाने वाली रेल को आम आदमी की पहुंच से बाहर ले जाने की योजना को बड़ी चालाकी से शब्द जाल में पिरोया गया है।

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