रेलवे का हाल खस्ता,यात्रियों की बढ़ेगी परेशानियां : लालू यादव - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

रेलवे का हाल खस्ता,यात्रियों की बढ़ेगी परेशानियां : लालू यादव

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पटना,22 फरवरी, पूर्व रेल मंत्री एवं राष्ट्रीय जनता दल(राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने आज कहा कि नरेन्द्र मोदी सरकार भले ही गरीबों के लिए अच्छे दिन लाने का सपना दिखा रही हो लेकिन इस सरकार के कार्यकाल में रेलवे का हाल इतना खस्ता हो गया है कि आम यात्रियों को अच्छी सुविधायें मुअस्सर नहीं हो पा रही हैं और आने वाले दिनों में किराये का बोझ इतना बढ़ जायेगा कि उनका यात्रा करना दूभर हो जायेगा । श्री यादव ने यहां जारी बयान में कहा कि नरेन्द्र मोदी सरकार का तीसरा बजट पेश करते समय रेल मंत्री सुरेश प्रभु को इस हकीकत का एहसास होगा कि रेलवे गरीब जनता,अपने यात्रियों तथा कर्मियों के लिए अच्छे दिन लाने में असफल साबित हुई है । मीडिया में आ रही बयानबाजी के ठीक उलट रेलवे में चारों तरफ निराशा एवं हताशा का माहौल है । उन्होंने कहा कि अपना पहला बजट पेश करते वक्त श्री प्रभु इस तथ्य से अच्छी तरह वाकिफ थे कि रेल ऐसे दुष्चक्र में फंस चुकी है,जिसमें यात्री एवं माल भाड़े बढ़ते जा रहे हैं,लेकिन व्यापार घटता जा रहा है। पूर्व रेल मंत्री ने कहा कि रेल परिचालन की लागत जहां बढ़ती जा रही है वहीं मुनाफा और बाजार में हिस्सेदारी कम होती जा रही है । इसी का परिणाम है कि उत्पादकता और लाभप्रदता उत्तरोत्तर बिगड़ती जा रही है । उन्होंने कहा कि इन तथ्यों को जानते हुए भी व्यावहारिक सुझाव देने वाले लोगों की आवाज को दबाकर सिर्फ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को खुश करने की नीयत से ऐसे लक्ष्य निर्धारित किये गये जिन्हें प्राप्त करना नामुमकिन था । रेलवे के गौरवशाली इतिहास में पहली बार बजट अनुमान की अपेक्षा यातायात आमदनी अनुमान से 11 प्रतिशत यानी 17 हजार करोड़ रूपये कम रहने की संभावना है । 

श्री यादव ने कहा कि यात्री एवं माल यातायात में तीन प्रतिशत की ऋणात्मक वृद्धि दर्ज की जा रही है,जबकि बजट पांच से सात प्रतिशत की वृद्धि दर पर निर्धारित किया गया था । इसके कारण गत वर्ष की अपेक्षा यातायात आमदनी 17 प्रतिशत के लक्ष्य के विरूद्ध मात्र छह प्रतिशत बढ़ी है जो कि यात्री एवं माल भाड़ों में की गई औसत वृद्धि दर से भी कम है । वर्तमान वित्तीय वर्ष में तो रेलवे किसी तरह खर्च चला लेगी, लेकिन अगले वर्ष सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट लागू होने के बाद उसे अपने खर्च की भरपाई करने के लिए 30 हजार करोड़ रूपये के लिए वित्त मंत्रालय के दरवाजे खटकाने होंगे । पूर्व रेल मंत्री ने कहा कि हालांकि वित्त मंत्रालय ने अगले तीन-चार वर्षों के लिए सालाना 30 हजार करोड़ रूपये के राजस्व अनुदान की रेलवे की गुहार को सिरे से खारिज कर दिया है,लेकिन सच्चाई यह है कि रेलवे का चक्का लगातार चलाने के लिए 30 हजार करोड़ रूपये का अनुदान भी नाकाफी होगा । रेलवे को अपनी जर्जर संपतियों को बदलने एवं यातायात को सुगम बनाने के लिए इस राजस्व अनुदान के अलावा 30 हजार करोड़ रूपये की अतिरिक्त अनुदान की भी जरूरत पड़ेगी। श्री यादव ने कहा कि 60 हजार करोड़ रूपये की इस कुल ग्रांट के अलावा वित्त मंत्रालय को पूँजीगत कार्यों को पूरा करने के लिए इस वर्ष की तरह 40 हजार करोड़ रूपये के सकल बजटीय सहयोग की व्यवस्था भी करनी होगी । इन तथ्यों से यह स्पष्ट हो जाता है कि (वर्ष 2007-08) में रेलवे का ऑपरेटिंग कैश मुनाफा छह अरब अमेरिकी डॉलर और ऑपरेटिंग रेशियों 76 प्रतिशत ) से (2016-17) में ऑपरेटिंग कैश लॉस पांच अरब डॉलर तथा ऑपरेटिंग रेशियों 120 फीसदी) की ओर बढ़ रही है। 

पूर्व रेल मंत्री ने कहा कि रेलवे ने अपने गौरवशाली इतिहास में अनेक संकटों का सामना किया है लेकिन इन विपत्तियों का बहादुरी के साथ एक चुनौती के रूप में मुकाबला कर हर बार रेलवे पहले से ज्यादा मजबूत होकर उभरी है । ऐसे ही एक वित्तीय संकट के बादल 2001 में रेलवे पर मंडराये थे, जब राकेश मोहन कमेटी ने भविष्यवाणी की थी कि धीमी विकास दर के पुराने ढर्रे पर चलकर भारतीय रेल अगले 15 वर्षों में 61 हजार करोड़ रूपये का दिवाला घोषित करेगी लेकिन 2004-2009 के दौरान रेलवे ऐसी सभी भविष्यवाणियों को गलत साबित कर अपना वित्तीय कायाकल्प करने में कामयाब रही । रेलवे के कायाकल्प की तत्कालीन रणनीति को इन चंद शब्दों में बयां किया जा सकता है- व्यापार बढ़ाओ, प्रति इकाई लागत एवं यात्री एवं मालभाड़े कम करो, मुनाफा तथा बाजार हिस्सेदारी बढ़ाओ और अरबों डॉलर का मुनाफा कमाओ ।उन्होंने कहा कि यह रणनीति आम आदमी,रेलकर्मियों और यात्रियों के हितों को केन्द्र बिन्दु में रख कर रेलवे की तरक्की में भागीदार बनाने के मूल उद्देश्य से प्रेरित थी । श्री यादव ने कहा कि इस सच्चाई को स्वीकार करना होगा कि रेलवे के मौजूदा वित्तीय हालात पहले के सभी संकटों से अब काफी गंभीर हैं । इस समस्या का सामना करने में रेलवे को काफी समझदारी से काम लेना होगा । उन्होंने कहा कि इन दिनों रेल विभाग में पलक झपकते ही समितियां गठित की जा रही हैं।इनके सुझावों से घाटे वाली उत्पादन इकाइयों एवं रेल सेवाओं को बंद करने, रेलकर्मियों की छंटनी करने तथा रेलवे का विभाजन और निजीकरण कर उन्हें देश और विदेश के पूँजीपतियों के हवाले करने की अफवाहों को बल मिल रहा है, जिससे रेलकर्मियों में इस बात को लेकर भय व्याप्त है कि कल उनकी नौकरी बचेगी या नहीं । 

पूर्व रेल मंत्री ने कहा कि अभी सब कुछ नहीं बिगड़ा है और उन्हें पूरा विश्वास है कि रेलवे की वित्तीय स्थिति को फिर से पटरी पर लाया जा सकता है । रेलवे में अभी भी असीम संसाधन एवं संभावनाएं हैं, जिनका दोहन कर इसे फिर से सोने की चिडि़याँ बनाया जा सकता है बशर्ते केन्द्र सरकार गरीब,ग्राहक एवं कर्मचारी विरोधी नीतियों का परित्याग कर तो रेलवे वित्तीय संकट से बाहर निकल आयेगी । उन्होंने कहा कि ऐसा करने के लिए यह पहली शर्त है कि केन्द्र सरकार रेलवे के कायाकल्प के लिए समावेशी सुधार की ऐसी रणनीति अपनाये जिससे जनता, ग्राहकों, व्यापार एवं उद्योग, रेलकर्मियों और देश की अर्थव्यवस्था सभी को एक साथ लाभ मिल सके। 

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