विशेष : मोदी लिखेंगे दलितों के उत्थान की नयी इबारत - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

विशेष : मोदी लिखेंगे दलितों के उत्थान की नयी इबारत

  • पूर्व मंत्री दीनानाथ भास्कर ने किया दलितों को भाजपा से जुड़ने का आह्वान 

बसपा सुप्रीमों मायावती चार बार यूपी की मुख्यमंत्री रही, लेकिन एक बार भी रविदास मंदिर में मत्था टेकने नहीं पहुंची। जबकि केजरीवाल का दलितप्रेम व मंदिर पहुंचना सिर्फ और सिर्फ ढोंगी राजनीति का हिस्सा है  

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दलितों के उत्थान व विकास के लिए संकल्पित है। अभियान के तहत दलितहित में शहर-शहर, गांव-गांव कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे है। यही वजह है कि लोकसभा चुनाव से लेकर हाल के दिनों में बड़ी संख्या में दलित समाज का झुकाव भाजपा की ओर बढ़ा है। यह बाते मान्यवर कांसीराम के जमाने के कैडरबेस नेता एवं पूर्व मंत्री दीनानाथ भास्कर ने सीनियर रिपोर्टर सुरेश गांधी से एक विशेष मुलाकात में कहीं। बातचीत के दौरान श्री भास्कर ने कहा कि अब दलितों का झुकाव मायावती की तरफ से हट रहा है। इसकी बड़ी वजह है कि उन्होंने कुछ क्रीमीलेयर दलितों को छोड़ दे ंतो सामान्य तबके के दलितों के उत्थान के लिए कुछ भी नहीं किया। उनके लिए जो कल्याणकारी कार्यक्रम चलाएं भी गए उसका लाभ उन्हें नहीं मिला। श्री भास्कर ने दलितों का आह्वान करते हुए कहा कि वह भाजपा से जुड़े। क्योंकि मोदी दलितों के हित में कई कल्याणकारी योजनांए चला रहे है और आगे चलाने वाले है। 

कहने को हर बार 22 फरवरी को संत शिरोमणि रविदास जी की जयंती मनाई जाती है। लेकिन इसके पहले तक इस दिन कार्यक्रम में भाग लेने कोई नेता या प्रधानमंत्री नहीं पहुंचा था। अब जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहुंचे है तो गैर भाजपा दलों में खलबली मच गयी है। पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने न सिर्फ संत शिरोमणि रविदास मंदिर पहुंचे है बल्कि नागपुर स्थित डा भीमराव अंबेडकर की जन्मस्थली, मुबई स्थित इन्दू मिल, दिल्ली आवास एवं लंदन स्थित आवास को खरीदकर यादगार के रुप में पंचतीर्थ नाम मोदी ने ही दी है, जो अपनेआप में बेमिसाल है। एमएलसी चुनाव के मद्देनजर सीरगोवर्धन में मोदी जी कोई सभा व बड़ा ऐलान तो नहीं कर पायेंगे लेकिन भविष्य में कुछ ठोस पहल जरुर करेंगे। खास बात यह है कि मोदी जी ने मंदिर पहुंचकर एक नयी परंपरा की शुरुवात की है जहां अब हर जयंती के मौके पर कोई न कोई बड़ी सख्सियत जरुर पहुंचेगा।  

वाराणसी में संत रविदास जयंती पर सीरगोवर्धन स्थित मंदिर में मत्था टेकने पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी का फूलमालाओं से स्वागत करने के बाद भास्कर ने कहा, बसपा सुप्रीमों मायावती चार बार यूपी की मुख्यमंत्री रही, लेकिन एक बार भी रविदास मंदिर में मत्था टेकने नहीं आयी। क्योंकि ऐसा करना उनके जेहन में है ही नहीं। रविदास गेट तथा रविदास पार्क बनाने का श्रेय मान्यवर कांसीराम जी का रहा है। मायावती को तो पार्क उद्घाटन में भी आने का वक्त नहीं था। जबकि सच तो यह है कि जयंती मौके पर पीएम के पहुंचने से बसपा में बौखलाहट पैदा हो गयी है। बीएसपी के मंच पर आजतक गुरु रविदास जी को याद करना तो दूर फोटो तक नहीं रखा जाता। अब अलग जयंती मनाने का ढोंग रचा गया है। शायद मायावती भूल रही है दलित समाज अब जागरुक हो गया है। वह जान गया है उसके वोटों का सौदा किस तरह होता है और किस तरह उसके वोटों की कीमत लगायी जाती है। 

श्री भास्कर का कहना है कि अगर मायावती को संत रविदास जी से जरा सा भी लगाव होता तो वह मंदिर के आयोजकों की निमंत्रण को ठुकराती नहीं। समयाभाव का बहाना बताकर जयंती समारोह में आने से मना कर मायावती ने लाखों अनुयायियों एवं दलितों की भावनाओं की जीते जी तिलाजंलि दे दी है। सीरगोवर्धन में बीते कई सालों से स्थानीय परम्परागत झांकियों को जाने से रोकना, मायावती को भारी पड़ने वाला है। इसके पीछे मकसद सिर्फ एक ही है कि वह दिखावे की खातिर संदेश देना चाहती है कि स्थानीय रैदासी समाज के लोग बसपा के साथ हैं। लेकिन दलित समाज व लाखों-करोड़ों अनुयायी मायावती के इस कृत्य को कभी माफ नहीं करेगा। श्री भास्कर ने केजरीवाल पर ही निशाना साधते हुए कहा, जब वह 2014 में वाराणसी संसदीय क्षेत्र नरेन्द्र मोदी जी के सामने चुनाव मैदान में थे तो एक दिन भी सीर गोवर्धन स्थित रविदास मंदिर में मत्था टेकने नहीं पहुंचे, जबकि सारनाथ स्थित गौतम बुद्ध स्थली पर कई बार पहुंचे थे। अफसोस है जब नरेन्द्र मोदी दलितों को न सिर्फ हक बल्कि उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए सतत् प्रयत्नशील है और इसी कड़ी में मंदिर मत्था टेकने पहुंच रहे है तो ठेकेदारों को अपनी वोट खिसकने का डर सता रहा है। जबकि सच तो यह है कि चुनाव के दौरान केजरीवाल ने गला-गला फाड़-फाड़कर कहा था, वह चुनाव हारे या जीते बनारस हर महीने पहुंचेंगे, लेकिन अब याद आई भी तो रविदास जयंती पर, वह भी सिर्फ वोटबैंक की खातिर। 

केजरीवाल को अगर कुछ करना ही था तो सबसे पहले वह दिल्ली के दलितों के लिए कुछ करते, वहां उनकी जयंती मनाते, लोगों के सामने रविदास जी के विचारों को रखते, लेकिन ऐसा उन्होंने करने की जहमत नहीं उठाई। सच तो यह है कि दिल्ली में दलितों का खुल्लमखुल्ला शोषण किया जा रहा है, उनके हक का गला घोटा जा रहा है। दलितों को मकान देने का वादा सिर्फ वादा ही रहा। थोड़ी देर के लिए मान भी लिया जाय कि केजरीवाल दिखावा के लिए ही मंदिर आ रहे है तो उन्हें बताना चाहिए कि वह मंदिर व दलित समाज के लिए क्या करने वाले है। वरना उन्हें दलितों के वोटों की राजनीति बंद करनी चाहिए। जबकि सच तो यह है कि प्रधानमंत्री जी के आने से उच्च पदों पर आसीन लोगों को मंदिर में आने का रास्ता खुलेगा। मायावती को अलग जयंती मनाने के बजाय सीर गोवर्धन में ही मत्था टेकना चाहिए था। भास्कर ने कहा सीरगोवर्धनपुर ही रविदास जी की जन्‍म स्‍थली है। दलितों को नीचा दिखाने के उद्देश्य से सपा नेता शतरुद्र प्रकाश ने रविदास जी की जन्मस्थली मडुवाडीह बताई है। खासकर उनका बयान उस वक्त आया है जब पीएम उनकी जयंती में भाग लेने पहुंच रहे है। मतलब साफ है सत्रुद्र का बयान सिर्फ और सिर्फ दलितों को गुमराह करने के सिवाय कुछ भी नहीं है। उनके इस तरह के बेबुनियाद बयान तथ्य से परे, भाम्रक, दलित समाज को बांटने व गुमराह करने वाला है। वह सपा से है और इनके आका वह है जो अंबेडकर व रविदास जी को नहीं मानते। ऐसे में उनके द्वारा जन्मस्थली को लेकर दिया गया विवादित बयान का कोई मतलब नहीं है। भास्कर ने दलित समाज के लोगों से इस तरह के बयानों व नेताओं से सजग रहने की अपील की है। 

श्री भास्कर दलित छात्रों से दिखावे की राजनीतिक पचड़े में दन पड़ने की अपील करते हुए कहा कि जेएनयू प्रकरण एक साजिस के तहत कांग्रेस, कम्युनिष्ट व केजरीवाल जैसे नेताओं की उपज है। पहले हैदराबाद में रोहित प्रकरण को उछालकर दलित छात्रों को भरमाने की कोशिश की अब जेएनयू प्रकरण में दलितों व अल्पसंख्यकों को झुलसाना चाहते है। ऐसे में दलितों को चाहिए  िकवह अपने हक की लड़ाई अपने बूते लड़े न कि इन ठेकेदारों के बहकावें में आकर। इसके लिए उन्हें अपना आंदोलन अलग से चलाना चाहिए। हैदराबाद प्रकरण को मोदी जी ने काफी गंभीरता से लिया है और वाकये पर पहले ही अफसोस जता चुके है और आवश्यक कार्यवाही के निर्देश दिए जा चुके है। 





(सुरेश गांधी)

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