रांची 25 फरवरी, झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने आज विधानसभा में कहा कि वे इस मत के पक्षधर हैं कि यह जरूरी नहीं है कि विभागीय सचिव पद भी भारतीय प्रशासनिक सेवा(आईईएस) अधिकारी को ही सौंपा जाए। श्री दास ने सदन में झारखंड विकास मोर्चा के विधायक प्रदीप यादव के ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के जवाब के दौरान हस्तक्षेप करते हुए कहा कि आज देश में भी कई पदों पर आईएएस की जगह विशेषज्ञों की नियुक्ति की गयी है।मुख्यमंत्री ने कहा कि आज आजादी के 67वर्ष बीत जाने के बाद भी सभी गांवों में बिजली क्यों नहींए पानी क्यों नहीं पहुंचा, समुचित विकास क्यों नहीं हो सका, इस पर विचार करने की जरुरत है। उन्होंने कहा कि संविधान ने ही सरकार को अधिकार दिया है और जनता ने सरकार चलाने का जनादेश दिया है । राज्य के छह जिलों में उपविकास आयुक्त के पद पर राज्य प्रशासनिक सेवा के संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारियों की जगह भारतीय वन सेवा या संविदा पर विशेषज्ञों की नियुक्ति का निर्णय लिया है। यह फैसला राज्यहित में लिया गया है। श्री यादव ने इस मुद्दे को उठाते हुए कहा कि पूर्व में उपविकास आयुक्त के पद पर 18 अधिकारियों की नियुक्ति का प्रावधान था लेकिन पिछले दिनों राज्य सरकार ने इस पद पर नियुक्ति के सेवा विस्तार करते हुए इस पद पर आईएफएस (भारतीय वन सेवा) या संविदा पर विशेषज्ञों की नियुक्ति का निर्णय लिया। उन्होंने कहा कि राज्य मंत्रिपरिषद की बैठक में ग्रामीण विकास विभाग की ओर से यह प्रस्ताव आया जबकि उपविकास आयुक्त की नियुक्ति कार्मिक विभाग के माध्यम से होती हैएऐसी स्थिति में सरकार को साफ करना चाहिए कि किस प्रावधान के तहत यह निर्णय लिये गये।
श्री यादव ने कहा कि उपविकास आयुक्त जिले में विकास कार्याें के लिए निकासी पदाधिकारी होते हैं। उनके हस्ताक्षर से अरबों रुपये की निकासी होगी। ऐसी स्थिति में संविदा पर नियुक्त व्यक्ति को कैसे इतनी बड़ी जिम्मेवारी सौंपी जा सकती हैं। राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा ने मंत्रिपरिषद की बैठक में लिये गये फैसले को नियम संगत बताते हुए कहा कि मौजूदा नियमावली की धारा 18 के उपनियम 2 के तहत यह फैसला लिया गया है। उन्होंने बताया कि गांवों का समुचित विकास और उपविकास आयुक्त पद पर विशेषज्ञों की संविदा के आधार पर विशेषज्ञों की नियुक्ति का फैसला लिय गया है। विधानसभा अध्यक्ष दिनेश उरांव ने कहा कि वे पहले भी यह पूछ चुके हैं कि आखिर स्थायी रुप से कार्यरत सरकारी पदाधिकारियों के कार्यां से अनुबंध पर कार्यरत लोग उनका मूल्यांकन कैसे करेंगे। उन्होंने कहा कि विधायिका के प्रति कार्यपालिका जवाबदेह है। इस मामले में सदन की भावना को समझना चाहिए और झारखंड के परिप्रेक्ष्य में ही देखकर निर्णय लेना चाहिए। उन्होंने इस प्रश्न को अगले दिन के लिए स्थगित करने का नियमन दिया।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें