रोमिला समेत कई लेखकों ने सरकार के रूख के प्रति जताया विरोध - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।


मंगलवार, 23 फ़रवरी 2016

रोमिला समेत कई लेखकों ने सरकार के रूख के प्रति जताया विरोध

writers-oppose-government-view-on-jnu
नयी दिल्ली, 23 फरवरी, जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू) मामले में केन्द्र सरकार की कड़े शब्दों में भर्त्सना करते हुये रोमिला थापर अौर कृष्णा सोबती समेत कई लेखकों, इतिहासकारों ने अाज जेएनयू के छात्रों पर दर्ज सभी मामलों को वापस लेने की मांग की। सिटिजंस कमेटी फ़ॉर द डिफ़ेन्स ऑफ़ डेमोक्रेसी के बैनर तले विरोध दर्ज कराने वाले लेखकों और इतिहासकारों ने दिल्ली पुलिस और जेएनयू प्रशासन की भी आलोचना की और कहा कि दोनों ही केन्द्र सरकार के दबाव में काम कर रहे हैं। उन्होंने एक बयान में कहा, “हमारा यह पक्का विश्वास है कि असहमति को राष्ट्रद्रोह करार देना, राष्ट्रद्रोह संबंधी क़ानूनों को छात्रों पर लागू करना, कैंपस में पुलिस का घुसना, ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से एक छात्र-नेता को गिरफ़्तार करना, अनेक छात्रों पर हिंसा भड़काने के आरोप दर्ज करना, छात्रों, शिक्षकों और एक गिरफ़्तार छात्र पर अदालत के परिसर में हमला करना, यह सब देश के नागरिकों के बुनियादी अधिकारों पर गंभीर हमले हैं। असहमति के अधिकार के बिना लोकतंत्र का बने रहना संभव नहीं है और हाल की घटनाचक्र ने लोकतंत्र की बुनियाद को ही हिला दिया है।” 

बयान में कहा गया है, “हमारे लिए यह भी अत्यंत चिंताजनक है कि छात्रों, कार्यकर्ताओं और शिक्षकों पर खुलेआम हमले होते हैं। आंदोलनकर्ता छात्रों के विरुद्ध नफ़रत और हिंसा भड़काई जाती है और पुलिस मूक दर्शक बनी रहती है। पुलिस ऐसे दुर्भावनापूर्ण वक्तव्य देती है जिनसे शांतिमय ढंग से रहने वाले नागरिकों को खतरा महसूस होता है। असहमत होना और सवाल खड़े करना हर नागरिक का अधिकार है और जेएनयू के छात्र सभ्य एवं शांतिपूर्ण तरीक़े से, संयत रहकर महज़ अपने इस अधिकार का इस्तेमाल कर रहे हैं।” इसके साथ ही संस्था ने उन टेलीविज़न चैनलों, अख़बारों और पत्र-पत्रिकाओं की निन्दा की कि जिन्होंने पक्षधरतापूर्ण और ग़ैर-ज़िम्मेदाराना ढंग से ख़बरें दीं तथा दुष्प्रचार से दर्शकों, श्रोताओं और पाठकों को गुमराह किया। उन्होंने कहा कि वे यह महसूस करते हैं कि शहर के सभी विचारशील लोग संकट की इस घड़ी में एक साथ होकर विचार की आज़ादी और असहमति के अधिकार के पक्ष में आवाज़ उठाएं और लोकतांत्रिक विरोध की हर जगह रक्षा करें। संस्था ने आरोप लगाते हुये कहा जेएनयू प्रशासन पुलिस से मिलकर छात्रों के विरुद्ध झूठे आरोप गढ़ने, अपनी जांच प्रक्रिया पूरी करने करने और शिक्षक समुदाय या पदाधिकारियों को सूचित किये बिना के बजाय पुलिस को विश्वविद्यालय परिसर में बुलाकर जगह जगह और छात्रावासों की तलाशी लेने और उन्हे गिरफ़्तार करने के के लिए पूरी तरह जवाबदेह है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने सरकार के दबाव में आकर विश्विद्यालय की स्वायत्तता को क्षति पहुँचाई है और इसका प्रभाव छात्रों की शिक्षा और उनके कॅरियर पर पड़ सकता है। 

उन्होंने मांग की कि पुलिस ज़िम्मेदारी से अपना कर्तव्य का पालन करते हुए विश्वविद्यालय से बाहर, अदालतों में और सार्वजनिक स्थलों पर छात्रों शिक्षकों और जे एन यू के साथ एकता रखने वाले लोगों की सुरक्षा करे और अपने सरोकारों को अभिव्यक्त करने के उनके क़ानूनी अधिकार का सम्मान करे। इसके अलावा मांग की कि असामाजिक तत्वों को विश्वविद्यालय समुदाय पर हमले के लिए उकसाने के बजाय पुलिस इन तत्वों की हरकतों को प्रभावी ढंग से रोके। रोमिला थापर और कृष्णा सोबती के अलावा हरबंस मुखिया, हर्ष मंदार, नवशरण सिंह, नलिनी तनेजा, असद ज़ैदी, मंगलेश डबराल, सुभाष गाताडे, उमा चक्रवर्ती, सैयदा हमीद, सुकुमार मुरलीधरन, प्रवीर पुरकायस्थ, पुनीत बेदी, राहुल राय, सबा दीवान, उर्वशी बुटालिया, तपन बोस, नंदिता नारायण, पैगी मोहन, फ़राह नक़वी जैसे लोगों ने केन्द्र सरकार के कदम की आलोचना की।

कोई टिप्पणी नहीं: