एक होनहार लड़का...जो पढ़ाई में अव्वल रहा करता था। उसके पिता रसूखदार थे। लेकिन कुछ लोगों ने पिता की हत्या कर दी। जिसके बाद वो होनहार लड़का जरायम की दुनिया में चला गया। इंतकाम के लिए भटकने लगा। और बन गया माफिया....अरे नहीं भई ये कोई कहानी नहीं बल्कि हकीकत है। जी हां हकीकत..एक ऐसे व्यक्ति की जो पूर्वांचल में खौफ का नाम है। बीते कल उसकी एंंट्री पॉलिटिक्स में हो गई। कुछ फिल्मी स्क्रिप्ट टाइप का लग रहा है न....पर ये रील लाइफ नहीं बल्कि रीयल लाइफ है। पूर्वांचल की गर बात हो और बृजेश सिंह का जिक्र न हो वास्तव में कुछ अधूरा सा जान पड़ता है। पूर्वांचल के माफिया के तौर पर विख्यात बृजेश सिंह ने एमएलसी पद की शपथ ली। बृजेश सिंह ने जेल में रहते हुए 3 मार्च को एमएलसी का चुनाव लड़ा था। वो भी निर्दलीय तौर पर। हालांकि इससे पहले भी वह विधानसभा चुनावों में अपनी किस्मत आजमा चुके हैं। पिछले विधानसभा चुनावों में भारतीय समाज पार्टी से सैयदराजा विधानसभा सीट चुनावी मतदान में उतरे थे। लेकिन उस वक्त बृजेश सिंह के हाथ खाली रह गए।
जरायम की दुनिया में बृजेश सिंह की दस्तक
1984 में इंटर के एग्जाम में अच्छे अंक मार्क्स लाने वाले बृजेश उर्फ अरूण कुमार सिंह के बारे में शायद ही किसी ने ही सोचा हो कि आने वाले वक्त में ये डर का दूसरा पर्याय बन जाएंगे। वाराणसी में जन्मे बृजेश के पिता रविंद्र सिंह इलाके के रसूखदार लोगों में से एक थे। सियासीतौर पर भी उनकी अच्छी खासी पहचान थी। पिता रविंद्र सिंह के दुलारे बृजेश ने इंटर की पढ़ाई के बाद यूपी कॉलेज से बीएसई की पढ़ाई की। वहां पर भी वे अव्वल छात्रों में ही गिने जाते थे। लेकिन वक्त अचानक ही बदल गया। होनहार बच्चा एक अलग रास्ते में निकल पड़ा। दरअसल 27 अगस्त 1984 को वाराणसी के धरहरा गांव में बृजेश के पिता रविंद्र सिंह की हत्या कर दी गई। इस हत्या को अंजाम उनके सियासी विरोधी हरिहर सिंह और पांचू सिंह ने अपने साथियों की मदद से दिया। राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई में पिता की इस तरह मौत ने बृजेश सिंह के मन में इंतकाम की भावना जगा दी। जिसके चलते वे जरायम की दुनिया में पहुंच गए।
पिता के मुख्य कातिल की हत्या
करीबन एक साल बाद यानि की 27 मई 1985 को बृजेश सिंह के पिता रविंद्र सिंह का हत्यारा हरिहर सिंह बृजेश के हत्थे चढ़ गया। जिसके बाद बृजेश सिंह ने उसकी हत्या कर दी और फरार हो गया। हालांकि यह पहला मौका था कि पुलिस थाने में बृजेश सिंह के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था।
बृजेश सिंह ने की पांच लोगों की हत्या
तारीख 9 अप्रैल 1986 को बृजेश सिंह ने बनारस के सिकरौरा गांव में अपने पिता की हत्या में शामिल पांचों हत्यारों को मौत के घाट उतार दिया। वारदात को अंजाम देने के बाद बृजेश सिंह की गिरफ्तारी हो गई। जेल में रहने के दौरान बृजेश सिंह की दोस्ती गाजीपुर के मुडियार गांव के त्रिभुवन सिंह से हुई। दोनों यूपी में शराब, रेशम और कोयले के धंधे में उतर आए।
जब मुख्तार और बृजेश हुए आमने-सामने
कोयले की ठेकेदारी को लेकर मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह आमने सामने आ गए। बृजेश सिंह मुख्तार अंसारी के रूतबे को आंकने में चूक कर बैठे। जिसका खाामियाजा उन्हें भरना पड़ा। कई बार दोनों गैंग के बीच गोलीबारी हुई। जान-माल का नुकसान हुआ। इस दौरान मुख्तार अंसारी के प्रभाव की वजह से बृजेश पर पुलिस हो या फिर नेताओं का दोनों का ही प्रभाव बढ़ने लगा। फलस्वरूप बृजेश के सामने दिक्कतें खड़ी होने लगीं।
राजनीति की शरण में आ गए बृजेश
बृजेश सिंह के मित्र त्रिभुवन सिंह के पिता की हत्या करने वाले साधू सिंह की हत्या करने के बाद बाद साधू सिंह के बाकी साथी या कहें गैंग मुख्तार के साथ आ गए। जिससे मुख्तार को और बल मिला। इसी दौरान बृजेश सिंह ने विधायक कृष्णानंद राय का दामन थाम लिया। कुछ वक्त बाद विधायक कृष्णानंद की हत्या कर दी गई। जिसका आरोप मुख्तार अंसारी के लोगों पर था। इसी दौरान बृजेश सिंह यूपी छोड़कर फरार हो गए। 2005 में मुख्तार अंसारी की गिरफ्तारी हुई तो2008 में बृजेश सिहं को भी उड़ीसा से गिरफ्तार कर लिया गया।
आखिरकार माफिया डॉन बृजेश सिंह ने आज एमएलसी सदस्य के रूप में शपथ ली। विधान भवन में ओमप्रकाश शर्मा ने बृजेश सिंह को 11 बजे पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। इस चुनाव में बृजेश सिंह ने 1984 मतों से जीत हासिल की थी। बृजेश सिंह ने अपनी प्रतिद्वंदी मीना सिंह को शिकस्त दी थी।
बृजेश सिंह को भाजपा का अप्रत्यक्ष समर्थन
आपको बता दें कि भारतीय जनता पार्टी ने बृजेश सिंह के अप्रत्यक्ष तौर पर समर्थन की वजह से अपना एमएलसी प्रत्याशी नहीं उतारा था। कौन दागदार, कितना दागदार ये सारे सवाल राजनीति के तमगे के साथ ही बियाबान में गुम हो जाते हैं। सारी मुखालिफत बंद हो जाती है। माननीय हो जाते हैं। साहब बन जाते हैं। पर क्या ये सही है कि जुर्म की दुनिया में कल तक बादशाहत कायम रखने वाले अपने गुनाहों को छिपाने, दबाने के लिए खादी का बहाना लेने लगे हैं।
--हिमांशु तिवारी--

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