नयी दिल्ली,18 मार्च, कामकाजी महिलाओं को यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए बनाए गए ‘यौन-उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) कानून-2013’ का फायदा कार्पोरेट और सरकारी क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं तक तो पहुंचा है लेकिन असंगठित क्षेत्र की महिलाएं अभी भी इसके लाभ से वंचित हैं। कार्यस्थलों में महिलाओं का यौन उत्पीड़न राेकने के कानून और उसके प्रभावी क्रियान्वयन पर आज यहां आयोजित एक परिचर्चा में सरकारी संगठनों,स्वयंसेवी संस्थाआें और कार्पोरेट जगत से जुड़ी महिलाकर्मियों ने यह विचार व्यक्त किया। उनका कहना था कि इस कानून का मकसद तभी पूरा होगा जब असंगठित क्षेत्र की महिलाएं भी इससे लाभान्वित होंगी क्योंकि देश में महिला श्रम बल का 92 फीसदी हिस्सा असंगठित क्षेत्र में काम कर रहा है।
कानून के तहत स्थानीय स्तर पर गठित शिकायत सुनवाई समिति की गुड़गांव इकाई की अध्यक्ष अनुराधा शर्मा ने कहा कि अज्ञानता,अशिक्षा और भाषाई समस्याओं के कारण असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिला श्रमिकों में से ज्यादातर को यह तक नहीं पता है कि ऐसा कोई कानून भी है जो कार्यस्थलों में उन्हें अनुकूल और सुरक्षित माहौल उपलब्ध कराने के लिए बनाया गया है। ऐसे में अपने खिलाफ होने वाले ऐसे अपराधों को लेकर ये महिलाएं अक्सर चुप्पी साध लेती हैं। उन्होंने कहा कि असंगठित क्षेत्र में ऐसे मामलों के पीछे ज्यादातर नियोक्ताओं का ही हाथ रहता है ऐसे में वह अपनी नौकरी जाने के डर से चुप रह जाती हैं,नतीजा यह होता है के उनके खिलाफ ऐसे अपराध करने वालों का हौसला बढ़ता जाता है। कानून के तहत जिन कंपनियों और सरकारी कार्यालयों में यौन उत्पीड़न की शिकायतों की सुनवाई के लिए आतंरिक समितियों का गठन किन्ही कारणों से नहीं हो पाता, वहां स्थानीय स्तर पर शिकायत सुनवाई समितियों के गठन का प्रावधान किया गया है।

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