विशेष : महिला दिवस को सार्थक बनाने के लिए 7 कदम! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 21 मार्च 2016

विशेष : महिला दिवस को सार्थक बनाने के लिए 7 कदम!

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महिला दिवस , सभी अखबारों, टीवी चैनलों और रेडियो पर महिलाओं के बारे में बातें होंगी। चर्चा, बहस और लेख सब जगह महिलाओं की बात होनी हैं। इस बारे में मेरा भी कुछ चिंतन है। हजारों सालों से महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक, बल्कि गीता जैसे कथित धर्मग्रंथ के अध्याय : 9 के 32वें श्लोक में स्त्री को पाप यौनि में जन्मी जीव समझा गया है। अनेक ग्रन्थों में स्त्री को हजारों सालों से दासी, गुलाम और अमानवी प्रावधानों की त्रासदी झेलनी पड़ी है। बलात्कार केवल स्त्री का होना। लज्जा, शर्म और हया को केवल स्त्री का आभूषण बताया जाना। बहुत सी बातें और ऐसे हालात हैं, जो स्त्री को पुरुष से कमतर बनाने के लिए लगातार काम अवचेतन स्तर पर कार्य करते रहते हैं। वास्तव में स्त्री की नैसर्गिक प्रजनन की अनुपम क्षमता और उसके जन्मजात संवेदनशील स्वभाव को समाज ने स्त्री की कमजोरी समझ लिया और उसके साथ हजारों सालों से गुलामों की तरह से व्यवहार किया गया। इन सब मनमानियों से स्त्री की मुक्ति के लिए बातें तो हम खूब करते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर क्या कुछ होता है, किसी से छिपा नहीं है। मेरा मानना है कि शेष बातें तो बाद में सबसे पहले स्त्रियों को मानवीय दर्जा देने के लिए बहुत थोड़े कदम उठाने की जरूरत है। जैसे-

1. संविधान के अनुच्छेद 13 में मूल अधिकार विरोधी होने के कारण-शून्य घोषित स्त्री विरोधी सभी धर्मग्रंथों के लेखन, प्रकाशन, मुद्रण और विक्रय को आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध घोषित किया जाए।
2. अंधश्रद्धा, अंधविश्वास और अवैज्ञानिक मन्त्र-तंत्रों पर प्रतिबन्ध और इनका उल्लंघन करना आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध हो।
3. शराब हिंसा, दहेज और कन्यादान स्त्री की दुर्दशा के मूल हैं। स्त्री के मानवी होने को ये 3 बातें पल-प्रतिपल कुचलती हैं। अत: इनको कठोरता से निषिद्ध किया जाए और उल्लंघन करने वाले को उम्र कैद की सजा दी जाए।
4. अपनी इच्छानुसार न्यूनतम स्नातक तक की शिक्षा हर लड़की के लिए अनिवार्य और मुफ़्त मूल अधिकार हो, जिसका आवासीय सुविधाओं सहित सम्पूर्ण और वास्तविक खर्चा सरकार वहन करे।
5. कन्या भ्रूण हत्या में किसी भी रूप में लिप्त डॉक्टर और अन्य अपराधियों को कम से कम उम्र कैद की सजा मिले।
6. स्त्रियों को विधायिका में 50 फीसदी भागीदारी हो, लेकिन यह भागीदारी हर वर्ग की स्त्री को आबादी के अनुपात में होनी चाहिए।
7. स्त्रियों के मान-सम्मान को उनकी निजी या पारिवारिक इज्जत से नहीं, बल्कि देश और समाज की इज्जत से जोड़ा जाए। जिससे ऑनर किलिंग की समस्या से निजात मिले।

उक्त मुद्दों पर सरकार, समाज और प्रशासन को मिलकर लगातार काम करने की जरूरत है।




लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
संपर्क : 9875066111

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