कांग्रेस के बागी विधायकों की सदस्यता पर सुनवाई 28 को - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 27 अप्रैल 2016

कांग्रेस के बागी विधायकों की सदस्यता पर सुनवाई 28 को

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नैनीताल/देहरादून, 26 अप्रैल, कांग्रेस के नौ बागी विधायकों को विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित करने के मामले में अब उच्च न्यायालय नैनीताल में 28 अप्रैल को सुनवाई होगी। बागी विधायकों की सदस्यता के मामले में आज न्यायमूर्ति यूसी ध्यानी की एकल पीठ में बहस हुई। विधानसभा के अध्यक्ष की ओर से अधिवक्ता अमित सिब्बल ने दलील देते हुए कहा कि सत्ताधारी दल के साथ ही बाहर से समर्थन देने वाले भी मनी बिल का विरोध नहीं करते। विधानसभ अध्यक्ष ने लोकतंत्र की मजबूती के लिए सही कार्रवाई की। बागियों ने राज्यपाल से मिलकर सत्ताधारी दल का होने के बावजूद कहा कि सरकार गिर चुकी है। श्री सिब्बल ने अदालत के सवाल का जवाब देते हुए कहा कि सदन में मनी बिल ध्वनिमत से पारित हुआ। विधानसभा अध्यक्ष के फैसले पर बाहरी समीक्षा प्रतिबंधित है। 

श्री सिब्बल ने कहा कि बागी विधायकों ने भाजपा के साथ मिलकर नई सरकार बनाने का बयान दिया। साथ ही मुख्यमंत्री की सार्वजानिक आलोचना की। उन्होंने दलील दी कि भाजपा के 26 विधायकों के साथ कांग्रेस के नौ बागी विधायक राजभवन गए। उन्होंने संयुक्त ज्ञापन देकर दल बदल कानून को तोड़ा है और असंवैधानिक तरीके से सरकार को अल्पमत में बताया। सरकार को 18 की सुबह ही बर्खास्त करने की मांग कर दी। उन्होंने सवाल किया कि राज्यपाल से मिलकर मत विभाजन की मांग क्यों की गयी। इन विधायकों द्वारा 44 हजार करोड़ के विनियोग विधेयक का विरोध किया गया जिसमें सरकार की महत्वपूर्ण योजनाएं शामिल थीं। अमित सिब्बल ने कहा कि उत्तराखंड का मामला कर्नाटक के येद्दियुरप्पा मामले से अलग है। वहां विधायकों ने मुख्यमंत्री पर भ्रष्ट, तानाशाह होने तथा भाई-ंभतीजावाद का आरोप लगाया तथा विधायक श्री येद्दियुरप्पा के खिलाफ थे जबकि यहां विधायक सरकार के खिलाफ हैं। बागी विधायकों ने राज्यपाल से अपनी सरकार को बर्खास्त करने की मांग की। सदन में क्या हुआ, उसका पता नहीं और उस पर बहस नहीं हो सकती। श्री सिब्बल ने दलील दी कि राज्यपाल को सौंपा ज्ञापन ऐसा दस्तावेज है, जिसके बाद बागी विधायकों पर कार्रवाई जायज थी। बागी सिर्फ अपनी सरकार गिराने का काम कर रहे थे, इसलिये मनी बिल का विरोध किया गया। बागी विधायकों ने भाजपा विधायकों के साथ मिलकर अपनी सरकार को बर्खास्त करने की मांग की। ज्ञापन में दस्तखत भी किये। इसका मतलब कांग्रेस की सदस्यता का स्वेच्छा से परित्याग किया गया जो दसवीं अनुसूची के 2(1)क के तहत दलबदल कानून की श्रेणी में आता है।

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