नागपुर, 26 अप्रैल, देश की लगभग 78 प्रतिशत मुसलमान महिलाएं पति की ओर से एकतरफा तलाक का शिकार होती हैं। इनमें 65़ 9 प्रतिशत मौखिक रूप से तलाक बोला जाता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्र ऑर्गनाइजर में हाल में एक लेख में कहा कि 90 प्रतिशत मुसलमान महिलाएं चाहती हैं कि काजियों की पहचान के लिए कोई कानूनी प्रणाली हो। मुसलमान महिलाओं ने स्वयं तीन बार तलाक बोल कर विवाह तोड़ने को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है। मुसलमान महिलाएं मुसलमान समाज में महिलाओं की दयनीय हालत के खिलाफ अावाज उठा रही हैं। उत्तराखंड की सायरा बानो नामक महिला ने ’तीन बार तलाक’ प्रथा को बंद करने के लिए उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल की है। सायरा को 13 वर्ष के वैवाहिक जीवन के बाद ऐसे ही तलाक का सामना करना पड़ा था। इसके बाद सायरा ने उच्चतम न्यायालय में गुहार लगाई कि तीन तलाक की इस एकतरफा प्रथा पर पुनर्विचार किया जाए।
न्यायालय ने सायरा की याचिका पर संज्ञान लिया है। अखिल भारतीय मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सायरा की याचिका को चुनौती दी है। उनकी याचिका में कहा गया है कि तीन तलाक की प्रथा घृणित है और संविधान की धारा 51ए के तहत इससे बतौर भारतीय नागरिक मुस्लिम महिलाओं के मूलभूत अधिकारों का हनन होता है। सच यह है कि मुस्लिम महिलाएं हमेशा ही इस बात को लेकर मानसिक दबाव में रहती हैं कि उन्हें कभी भी किसी थोथी बुनियाद पर तलाक दे दिया जाता है जिसके बाद उनका जीवन नरक हो जाता है। सायरा (42 ) के अपनी माँ के घर जाने से नाराज पति ने उसे तीन बार तलाक बोल कर विवाह तोड़ दिया इसलिए उन्होंने याचिका दाखिल कर अदालत से जानना चाहा कि तीन बार तलाक बोलने की कानूनी वैधता क्या है। साथ ही मुस्लिम पर्सनल लॉ -शरीयत- की कानूनी वैधता क्या है। इसके तहत बहुविवाह, तीन तलाक, निकाल और हलाला की क्या वैधता है। सायरा ने याचिका में कहा कि यह प्रथा महिला और मानवाधिकार विरोधी है उन्होंने अपने तर्क में कई मुसलमान देशों में मुसलमानों में बहु विवाह प्रथा पर प्रतिबंध लगाने का उदाहरण दिया।

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