न्यायपालिका स्व मूल्यांकन तंत्र बनाये : मोदी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।


रविवार, 24 अप्रैल 2016

न्यायपालिका स्व मूल्यांकन तंत्र बनाये : मोदी

udiciary-make-self-evaluation-mechanism-modi
नयी दिल्ली 24 अप्रैल, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने न्यायाधीशों के रिक्त पदों के भरने सहित विभिन्न मुद्दों पर सरकार और न्यायपालिका के मिलकर काम करने की उम्मीद जताते हुये आज कहा कि आम लोगों का न्यायपालिका पर बहुत भरोसा है और उसे स्व मूल्यांकन के लिए तंत्र बनाना चाहिए। श्री मोदी ने मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायधीशों के सम्मेलन में मुख्य न्यायाधीश टी एस ठाकुर द्वारा उठाये गये मुद्दों का उल्लेख करते हुये कहा कि न्यायमूर्ति ठाकुर की चिंताओं को वह समझ रहे हैं। उन्होंने कहा कि देश के मुख्य न्यायधीश ने जो मुद्दे उठाये हैं, उसका सरकार और कार्यपालिका मिलकर हल निकालने का प्रयास करेंगे। इससे पहले न्यायमूर्ति ठाकुर देश की अदालतों में लंबित पड़े करीब तीन करोड़ मामलों का उल्लेख करते हुये भावुक हो गये और कहा कि वर्ष 1987 में विधि आयोग द्वारा न्यायाधीशों की पदों में बढोतरी करने की सिफारिश पर कार्यपालिका अमल नहीं कर रही है। देश में अमेरिका , ब्रिटेन, कनाडा और आस्ट्रेलिया की तुलना में प्रति दस लाख आबादी पर न्यायाधीशों की संख्या बहुत कम है और दिन ब दिन न्याय प्रणाली पर बोझ रहा है। ऐसी स्थिति में न्यायपालिका की आलोचना की जा रही है। यदि सभी अदालतों में न्यायधीशों की नियुक्ति कर दी जाती है तो लंबित मामलों में भारी कमी आयेगी। प्रधानमंत्री ने सरकार द्वारा पुराने और अनुपयोगी हो चुके कानूनों को समाप्त करने की दिशा में उठाये गये कदमों का उल्लेख करते हुये कहा कि इसके लिए एक समिति बनायी गयी थी, जिसने कम से कम 1500 ऐसे कानूनों की पहचान की है। उन्होंने कहा कि कार्यपालिका की हर जगह विभिन्न संस्थानों द्वारा जांच पड़ताल की जाती है जबकि आम तौर पर न्यायपालिका को इसका सामना नहीं करना पड़ता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि न्यायपालिका पर आम लोगों का बहुत भरोसा है अौर इसके मद्देनजर उसे स्व मूल्यांकन का तंत्र बनाना चाहिए ताकि वह आम लोगों अपेक्षाओं पर खरा उतर सके।
न्यायमूर्ति ठाकुर ने यह भी सुझाव दिया कि जो सेवानिवृत्त न्यायधीश काम करना चाहते हैं, उन्हें संविधान के प्रावधानों के अनुरूप काम दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय अदालत प्रबंधन समिति ने भी लंबित मामलों के निपटान के लिए मिशन मोड में काम करने का सुझाव दिया है ताकि पांच वर्ष से अधिक कोई मामला लंबित नहीं रह सके। व्यावसायिक न्यायालयों का उल्लेख करते हुये मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि इसके लिए पूरी तरह से अलग माहौल में काम करना होता है क्योंकि वहां कार्पोरेट को सहजता का आभास होना चाहिए। इससे पूर्व विधि मंत्री डी वी सदानंद गौडा ने प्रधानमंत्री एवं देश के मुख्य न्यायाधीश का स्वागत करते हुये कहा कि उच्च न्यायालय और राज्य सरकारें राज्यों में न्यायिक प्रशासन के विकास के महती भूमिका निभा सकते हैं। उन्होंने कहा कि पिछले सम्मेलन में न्यायपालिका से जुड़ी सुविधाओं और कर्मचारियों की भर्ती से जुड़े मुद्दों के समाधान के लिए नियमित तौर पर चर्चा के लिए उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायधीशों और मुख्यमंत्रियों के मिलकर तंत्र बनाने का निर्णय लिया गया था। श्री गौडा ने अधिकतर राज्यों में इस तंत्र के बनाये जाने की उम्मीद जातते हुये कहा कि केन्द्र सरकार और राज्य सरकार न्यायिक अधोसंरचना के विकास पर पिछले तीन वर्ष से हर वर्ष दो हजार करोड़ रुपये व्यय कर रहे हैं। देश में अभी 16 हजार न्यायाधीशों के काम करने की क्षमता के अदालत उपलब्ध हैं और निकट भविष्य में इसे बढ़ाकर 20 हजार करने के लिए कई योजनायें संचालित की जा रही है।

कोई टिप्पणी नहीं: