देहरादून 04 मई, उत्तराखंड के जंगलों में आग से जैव विविधिता और ग्लेशियर पर बुरा असर पड़ा है। साथ ही आने वाले दिनों में पानी की गुणवत्ता और पेयजल पर भी खतरे के संकेत हैं। वैज्ञानिकों व आपदा प्रबंधन जानकारों ने आज यहां इस नए खतरे के संकेत दिया। वैज्ञानिकों के अनुसार बारिश होने पर जले जंगलों में तेजी से भू-कटाव होता है। साथ ही कार्बनयुक्त पानी लोगों के पेयजल स्रोतों तक पहुंचेगा। इसका असर पानी की गुणवत्ता पर भी पड़ेगा।
गोविंद बल्लभ पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान (अल्मोड़ा) के वरिष्ठ वैज्ञानिक कीर्ति कुमार का कहना है कि जब जंगलों में आग लगती है तो घास, पत्ती और झाड़ियों के साथ कीट पतंगे, पक्षी अन्य वन्य जीव भी जल जाते हैं। आग लगने के बाद जो बारिश होती है तो पानी पूरी कार्बन युक्त राख को बहा ले जाता है। पानी पेयजल स्रोतों तक पहुंच कर लोगों के घरों तक जाता है। इससे विभिन्न तरह की बीमारी फैलने का अंदेशा बन जाता है। श्री कुमार ने बताया कि पिछले वर्षों तक इस तरह का अध्ययन उन्होंने अल्मोड़ा की कोसी नदी पर किया है। इस वर्ष वह पौड़ी जनपद की नयार नदी की सहायक नदी ईड़ा गाड़ पर करने जा रहे हैं।
उत्तरकाशी के जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी देवेंद्र पटवाल इस बात से चिंतित है कि बारिश होने पर जले हुए जंगल पानी का संरक्षण नहीं कर पाएंगे। बारिश का पानी राख और जली हुई मिट्टी को तेजी से बहाकर ले जाएगा। इससे होनेवाले काटव से बाढ़ की आशंका भी बढ़ सकती है। जंगलों में पेड़ों की पत्तियां, खर-पतवार व झाड़ियां बारिश के पानी के बहाव के वेग को कम करती है। इससे जमीन के अंदर पानी जाता है और इससे जल संरक्षण भी होता है।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें