बॉलीवुड में पांव जमाना काफी कठिन हैः रणदीप हुड्डा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 10 मई 2016

बॉलीवुड में पांव जमाना काफी कठिन हैः रणदीप हुड्डा

randeep huda
हाईवे,मैं और चार्लस,रंगरसिया जैसी अनेक फिल्मों में अपने अभिनय का जलवा दिखाने वाले रणदीप हुड्डा हमेशा चुनौतीपूर्ण भूमिकाएं निभाने में यकीन रखते हैं। इन फिल्मों में उनके अभिनय को खूब सराहना मिली। अब वे फिल्म ‘लाल रंग’ और ‘सरबजीत’ में बतौर अभिनेता दिखेंगे। पेश है रणदीप से प्रेमबाबू शर्मा कि हुई बातचीत के प्रमुख अंशः

‘सरबजीत’ में आपने शीर्षक भूमिका निभाई है। क्या आपके अभिनय करियर का यह सबसे कठिन किरदार है?
हां, ऐसा कह सकते हैं। मैंने अपने भीतर सरबजीत के दर्द को महसूस किया है। मैं इस रोल को करते समय कई बार रोया। मैंने उस अकेलेपन और डार्कनेस को महसूस किया, जो सरबजीत ने झेले थे। इस फिल्म में मैंने सरबजीत के 23 साल के संघर्ष को अभिनीत किया है।

फिल्म ‘सरबजीत’ में काम करने से पूर्व कभी सोचा था कि आपकी किसी फिल्म में ऐश्वर्य राय बहन की भूमिका में होंगी?
ऐसा कभी सोचा नहीं था। वे मेरी हीरोइन बनें, यह भी नहीं सोचा। इस फिल्म में उन्होंने ममतामयी बहन की भूमिका निभाई है। ऐश्वर्य के साथ काम करना यादगार रहा।  

फिल्म ‘लाल रंग’ में हरियाणा के युवा शंकर का किरदार निभाते हुए कैसा महसूस हो रहा है ? 
शंकर का किरदार इसलिए स्वीकार किया, क्योंकि मैं उससे खुद को रिलेट कर रहा हॅू। इसमें कोई शक नहीं है कि यह रोल मेरे दिल के करीब है। मैंने पहली बार हरियाणवी जाट का किरदार निभाया है। इस रोल को करते हुए मैं अपने बचपन में खो गया। मेरी यादें ताजा हो गईं।

इंडस्ट्री में अब तक का सफर कितना कठिन रहा है?
यह तो सच है कि बॉलीवुड में पांव जमाना काफी कठिन है। अगर आपका कोई रिश्तेदार यहां पर मौजूद है, तो आपको लोग अलग ढंग से लेते हैं। स्टार किड होने का फायदा यह होता है कि लोग आपको हतोत्साहित नहीं करते हैं।

जब बहुत मेहनत से बनाई गई कोई फिल्म फ्लॉप होती है, तो उसका एक्टर पर कितना नकारात्मक असर पड़ता है?
बहुत ज्यादा नकारात्मक असर पड़ता है। मैंने अपनी दो फिल्मों श्रंगरसियाश् और श्मैं और चार्ल्सश् के लिए काफी मेहनत की थी, लेकिन दोनों ही फिल्में नहीं चलीं। मैं बहुत दुखी हुआ। इधर श्सरबजीतश् के लिए मैंने जितनी मेहनत की है, मैं ही जानता हूं। अगर इस फिल्म के साथ कोई ऊंच-नीच होती है, तो यह मेरे लिए किसी सदमे से कम नहीं होगा।

आप अपनी फिल्मों का चयन कैसे करते हैं?
मेरे पास जो फिल्में आती हैं, मैं उन्हीं में से बेहतर को चुनता हूं। मैं स्टेट फॉरवर्ड हरियाणवी आदमी हूं। मैं किसी से कोई पंगा नहीं लेता। जब भी अभिनय से समय बचता है, तो नसीर साहब के साथ थिएटर करता हूं। वे मेरे आदर्श हैं। आज जो मैं इंडस्ट्री में थोड़ा-बहुत मकाम बना सका हूं, उन्हीं की प्रेरणा से संभव हो  सका है।

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