अहमदाबाद, 13 जून, गुजरात के गोधरा में 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे को जलाये जाने के एक दिन बाद यहां मेघाणीनगर इलाके में अल्पसंख्यक समुदाय के परिवारों की रिहायश वाले गुलबर्ग सोसायटी में भीड द्वारा जिंदा जला कर मार दिये गये 69 लोगों, जिनमें कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी भी शामिल थे, से जुडे चर्चित गुलबर्ग सोसायटी नरसंहार मामले में दोषी ठहराये गये 24 लोगों को यहां एक विशेष अदालत 17 जून को सजा सुनायेगी। इस बीच, इस मामले के एक फरार दोषी कैलाश धोबी, जो हत्या के लिए दोषी करार दिये गये 11 लोगों में शामिल है और जो पेरोल की अवधि पूरी होने के बाद भी अदालत में हाजिर नहीं हुआ था, ने आज विशेष न्यायाधीश पी बी देसाई की अदालत में समर्पण कर दिया। अदालत के आदेश के अनुरूप दोषियों के जेल रिकार्ड भी आज अदालत के समक्ष रखे गये। इस विशेष अदालत ने गत 2 जून को इस प्रकरण फैसला सुनाते हुए विश्व हिन्दू परिषद के नेता अतुल वैद्य समेत 24 आरोपियों को दोषी करार दिया था तथा भाजपा के तत्कालीन और वर्तमान पार्षद विपिन पटेल, कांग्रेस नेता मेघजी चौधरी और पुलिस अधिकारी के जी एरडा समेत 36 अन्य को दोषमुक्त कर दिया था। कुल 66 आरोपियों में से छह की मुकदमें की सुनवाई की अवधि में मौत हो गयी थी। अदालत ने हालांकि इस मामले को पूर्व नियोजित षडयंत्र मानने से इंकार करते हुए सभी आरोपियाें के खिलाफ लगायी गयी संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी को हटा लिया था। दोषियों में से 11 को हत्या, एक को हत्या के प्रयास और 12 को दंगा करने और अन्य सामान्य अपराधों का दोषी ठहराया गया है। दोषी करार दिये गये विहिप नेता अतुल वैद्य के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 143, 147, 148, 149, 153, 186, 188, 427, 435, 436 के तहत ही मामला दर्ज किया गया है। उन्हें हत्या अथवा अन्य गंभीर अपराधों का आरोपी नहीं बनाया गया है। अदालत ने सजा के बिंदु पर अलग से सुनवाई की बात कही थी। इस बारे में सुनवाई दस जून को पूरी हो गयी थी।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) के वकील आर सी कोडकर ने आज बताया कि 17 जून को अदालत जब सजा सुनायेगी तो दोषियों को सशरीर उपस्थित रहना होगा। अदालत ने गत नौ जून को उन्हें सशरीर पेशी से छूट दी थी। ज्ञातव्य है कि सुनवाई के दौरान श्री कोडकर ने अदालत से 24 में से 11 दोषियों जिन्हें हत्या का दोषी ठहराया गया है को फांसी अथवा कम से कम उम्रकैद की सजा देने की मांग की है। उन्होंने इस घटना को ठंडे कलेजे (कोल्ड ब्लडेड)से की गयी हत्या तथा कभी कभार होने वाली घटनाओं में से भी यदा कदा ही होने वाली घटना (रेयरेस्ट ऑफ रेर) करार दिया था। बचाव पक्ष के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा था कि दोषियों को फांसी की सजा नहीं दी जानी चाहिए तथा उन्हें सुधरने का मौका दिया जाना चाहिए। वे पेशेवर अपराधी नहीं है तथा उन्होंने जमानत की अवधि के दौरान भी कभी साक्ष्य से छेडछाड का प्रयास नहीं किया। बचाव पक्ष के वकीलों ने अदालत से नरमी का रूख दिखाने की मांग करते हुए कहा है कि दोषी ठहराये गये लोग पेशेवर अपराधी नहीं हैं और उक्त घटना स्वर्गीय जाफरी के उस दिन उकसावे वाली गोलीबारी की घटना के कारण हुई। उनकी ओर से की गयी गोलीबारी में एक व्यक्ति की मौत हो गयी थी तथा 15 घायल हुए थे। इस मामले में बाकायदा प्राथमिकी भी दर्ज हुई थी।
पीडितों के वकील एस एम वोरा ने दोषियों पर हर्जाना लगा कर पीडितों मुआवजा दिलाने की भी मांग की है। ज्ञातव्य है कि यहां मेघाणीनगर में स्थित उक्त सोसायटी में यह घटना गोधरा में साबरमती एक्सप्रेेस के एक डिब्बे में आग लगाये जाने के एक दिन बाद यानी 28 फरवरी 2002 को हुई थी। यह मामला गुजरात दंगों से जुडे उन नौ मामलों में शामिल है जिसकी जांच उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर गठित विशेष जांच दल यानी एसआईटी ने की थी। सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2008 में गुजरात की तत्कालीन नरेन्द्र मोदी सरकार को सीबीआई के पूर्व निदेशक आर के राघवन की अध्यक्षता में एक विशेष जांच दल गठित करने के आदेश दिये थे। एसआईटी ने फरवरी 2009 से इस मामले की जांच शुरू की थी। इस मामले में श्री मोदी की भूमिका पर भी सवाल उठाये गये थे पर बाद में एसआईटी ने उन्हें क्लिन चिट दे दी थी। उच्चतम न्यायालय ने इस मामले की रोज सुनवाई तथा बाद में फैसला सुनाने पर रोक लगाने के आदेश दिये थे। गत फरवरी माह में अदालत ने फैसला सुनाने पर रोक हटा ली थी उक्त घटना में मारे गये कुल 69 में 30 के शव नहीं मिल सके थे। इसे गुजरात के 2002 के दंगों के सबसे बडे नरसंहारों में से एक माना जाता है।

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