नयी दिल्ली,12 जून, फसलों के नुकसान का हवाला देकर नील गायों, जंगली सुअरों और बंदरों जैसे वन्य जीवों को मारने की सरकारी अनुमति के बेजा इस्तेमाल से आगे इस मामले में पेंच फंस सकता है और सरकार को अपने कदम पीछे खींचने पड़ सकते हैं। बिहार में बड़ी संख्या में नीलगायों की हत्या किए जाने कोे लेकर महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी के इस सख्त बयान के बाद कि पर्यावरण मंत्रालय वन्य जीवों की हत्या की खुली छूट दे रहा है वन्य जीव संरक्षण से जुड़े गैर सरकारी संगठन भी उनके साथ लामबंद हो गए हैं। उनका कहना है कि वन्य जीवों को मारना समस्या का हल नहीं है इसके लिए उनकी जनसंख्या घटाने के उपायों का सहारा लिया जाना चाहिए।
उनका यह आरोप भी है कि सरकारी आदेश का दुरुपयोग हो रहा है। खबर है कि बिहार के सीतामढ़ी में जहां 250 नील गायों को गोलियों से भूना गया है वहां ऐसा करने की सरकारी अनुमति संभवत नहीं दी गई थी। यह अनुमति अन्य जिलों के लिए थी सीतामढ़ी के लिए नहीं । पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने इस मामले में सरकार का बचाव करते हुए कहा है कि वन्य जीव संरक्षण कानून 1972 की व्यवस्थाओं के अनुसार यदि कोई वन्य जीव फसल या मानव को नुकसान पहुंचाता है तो राज्य सरकारों के अनुरोध पर पर्यावरण मंत्रालय उन्हें हिंसक की श्रेणी में डालकर वैज्ञानिक प्रबंधन के तहत एक निश्चित समय और सीमित क्षेत्र में उन्हें मारने की अनुमित देता है। उन्होंने कहा पिछले एक साल में वन्यजीवों के साथ संघर्ष में 500 लोगों की जान जाने का हवाला भी दिया है। हालांकि बिहार के मामले में जिस तरह से सरकारी अनुमति का इस्तेमाल किया गया है उसे लेकर मंत्रालय में नाराजगी है। ऐसी खबर हेै कि मंत्रालय अपनी यह अनुमति वापस ले सकता है। नील गायों को मारने के लिए महराष्ट्र और गुजरात सरकार का आवेदन अभी मंत्रालय के विचाराधीन है।

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