तीन दशक पूर्व महमूद की एक फिल्म आई थी,‘सबसे बडा रूपया’। फिल्म के माध्यम से बताया कि गया कि रूपया सबसे बड़ा है। अब युवा निर्देशक संजय अमन पोपली ने भी उसी विषय को एक फिर से अपने नाटक ‘बाप बड़ा न भइया,सबसे बड़ा रुपइया’ के माध्यम से चुना हंै।चुंकि संजय अमन रंगकर्मी भी हंै, इसलिए उन्होंने हर कलाकारों को प्रतिभा दिखाने का पूरा मौका दिया हंै। ये सही है, कि दौलत के आगे समाज में इंसानियत मायने नही रखती,लेकिन हालात इंसान को ही बदल देते हंै। नाटक में ऐसे कई बिन्दूओं को उठाया है,जो कि वर्तमान में प्रचलित है। भव्य कलचरल सोसायटी प्र्रस्तुति नाटक ‘बाप बड़ा न भइया,सबसे बड़ा रुपइया’ का मंचन पिछलंे दिनों रोहणी स्थित मेट्रोवाक के मेड आडिटोरियम मे हुआ। हास्य से परिपूर्ण इस नाटक में कई समाजिक पहलूओं पर कटाक्ष था,जो हमें वर्तमान का आयना दिखाता हैं।
इसकी कहानी इस प्रकार है, धनी राम, गांव से ललूराम को शहर में अपना बेटा बनाकर लाते है लेकिन उसपर बहुत अत्याचार करते हंै एक दिन उनका पड़ोसी ललूराम को एक लाटरी का टिकट लाकर देता है और कुछ समय बाद ये सूचना मिलती है कि ललू की लाटरी निकल गई है तब सबका व्यवहार ही बदल जाता है, लेकिन उसी समय फोन आता है कि ललू की लाटरी नही लगी, तब पूरा परिवार ललू को शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करते हैं। बेवस ललू सब सहता है ,लेकिन उसकी किस्मत उस समय जाग जाती है,जब एक फिर से धनी राम के परिवार को सूचना मिलती है कि लाटरी ललू को ही लगी है तो पूरा ही परिवेश बदल जाता है,और धनी राम का पूरा परिवार अब झूठे आंसू बहाते हुए ललू के प्रति सहानुभूति का मलहम लगाते हंै। ललू,एक ज्ञानी की भांति पूरी स्थिति को समझ चुका,और भोलेपन का नाटक शुरू कर देता है। ये नाटक आज समाज मे पैसों के बढते महत्व को बताता है। अभिनय की दृष्टि से सभी कलाकारों ने किरदार के साथ न्याय किया है। संजय पोपली,मंजीत सिंह और राकेश शर्मा का अभिनय दमदार रहा । खास करके जब वे एक दूसरे पर कटाक्ष करते हंै।

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