बिहार : टाॅपर्स घोटाले के राजनीतिक संरक्षण की जांच से भाग रही सरकार - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 5 जुलाई 2016

बिहार : टाॅपर्स घोटाले के राजनीतिक संरक्षण की जांच से भाग रही सरकार

  • उच्चस्तरीय न्यायिक आयोग का किया जाए गठन.
  • संस्थाबद्ध घोटाले के लिए गलत शिक्षा नीति है जिम्मेवार, नीतीश ने किया बिहार की शिक्षा बर्बाद.
  • माले ने किया ‘शिक्षा बचाओ-बिहार बचाओ’ का आह्वान, 11 जुलाई को बिहार बंद 
  • दलित एंव कमजोर छात्रों की छात्रवृत्ति काटने वाली ‘सामाजिक न्याय’ नहीं, सामाजिक अन्याय की है सरकार.

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5 जुलाई 2016, पटना. भाजपा शासित मध्यप्रदेश में व्यापम की तर्ज पर बिहार में घटित ‘टाॅपर्स घोटाला’ ने आज पूरे देश में ‘बिहारी गौरव’ की नाक कटवा दी है, जिसकी चर्चा करते हमारे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अघाते नहीं हैं. आज यहां की शिक्षा व यहां के संस्थानों से प्राप्त डिग्रियां राष्ट्रीय स्तर पर मजाक का विषय बन कर रह गयी हंै. बिहार के उन होनहार छात्र-छात्राओं का भी भविष्य दांव पर लग गया है, जिन्होंने अपनी कठोर मिहनत से डिग्रियां हासिल की हैं और उनकी प्रतिभा पर कहीं से कोई शक नहीं किया जा सकता है. आज उन्हें दूसरे देशों व प्रांतों में अनावश्यक रूप से प्रताड़ित होना पड़ रहा है. नेपाल में 50 बिहारी डाॅक्टरों को निकाल बाहर किया गया है. यह बेहद शर्मनाक है. बिहार की शिक्षा व यहां के छात्रों के भविष्य को गत्र्त में ढकेल देने की इस आपराधिक कार्रवाई के लिए बिहार की जनता नीतीश कुमार को कभी माफ नहीं करेगी.
    
टाॅपर्स घोटाले ने बिहार में शिक्षा के क्षेत्र में व्याप्त संस्थागत भ्रष्टाचार की परतें उघाड़ दी हैं. फिर भी बेशर्म नीतीश सरकार इस घोटाले में ‘छोटी मछलियों’ को निशाना बनाकर इस पूरे मामले को गोल-माल कर देना चाहती है. जबकि इस तरह का घोटाला बिना राजनीतिक संरक्षण के संभव नहीं है. वित्तरहित काॅलेजों से कहा कि जो जितना बेहतर परिणाम देगा, सरकार उसे उसी अनुरूप सहायता देगी. इसका नतीजा यह हुआ कि वित्तरहित काॅलेज डिग्रियां खरीदने लगे, अनुचित तरीके से अपने संस्थानों की मान्यता हासिल करने लगे और टाॅपर बनाने लगे. इंटरमीडिएट को स्कूलों में स्थानांतरित करके भी सरकार ने संस्थागत भ्रष्टाचार को जन्म दिया, क्योंकि इंटरस्तरीय योग्य शिक्षकों की बहाली कहीं हुई ही नहीं. और इस तरह पढ़ाई को चैपट कर डिग्रियां खरीदने-बेचने के कारोबार को खुल कर प्रोत्साहित किया गया.

पिछले 11 वर्षों से ‘शिक्षा सुधार’ के नाम पर बिहार में जो यह खेल चल रहा था, उसमें इस तरह के घोटाले को सामने आना ही था. जदयू-भाजपा गठबंधन की सरकार के समय नीतीश कुमार ने शिक्षा सुधार के लिए मुचकुंद दूबे आयोग का गठन किया था. आयोग ने समान स्कूल प्रणाली की सिफारिश की. लेकिन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की बजाए ठीक इसके विपरीत शिक्षा में निजी पंूजी व वित्तरहित शिक्षा को बढ़ावा दिया गया. आज इसी का नतीजा हैै कि प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा महज एक खरीद-फरोख्त की वस्तु बन गयी है. शिक्षा पर माफियाओं ने कब्जा जमा लिया है, महंगे प्राइवेट स्कूलों की बाढ़ आ गयी है और छात्रों को चूस लेने के लिए कुकुरमुत्ते की तरह कोचिंग संस्थान उग आए हैं. शिक्षा में निजी पूंजी व वित्तरहित शिक्षा को बढ़ावा देने की नीति ने इस तरह के घोटालों को संस्थाबद्ध किया है. जदयू-भाजपा से लेकर राजद ये सभी पार्टियां शिक्षा की बर्बादी के लिए जवाबदेह हैं.

ऐसी स्थिति में हमारी पार्टी ने तय किया है कि बिहार में ‘शिक्षा बचाओ-बिहार बचाओ’ अभियान चलाया जाएगा. हम टाॅपर्स घोटाले के राजनीतिक संरक्षण की संपूर्णता में जांच के लिए उच्चस्तरीय न्यायिक आयोग के गठन की मांग करते हैं. साथ ही, हमारी यह भी मांग है कि इस तरह के संस्थाबद्ध घोटाले के लिए जवाबदेह शिक्षा नीति को भी जांच के दायरे में लाया जाए और किसी राष्ट्रीय ख्याति के शिक्षाविद् को भी न्यायिक आयोग में शामिल किया जाए.. इस सवाल पर हमने 11 जुलाई को बिहार बंद का आह्वान किया है.

नीतीश-लालू ‘सामाजिक न्याय’ का नाम लेते अघाते नहीं, लेकिन आज एक सिरे से दलित व कमजोर वर्गो के  छात्रों की छात्रवृत्ति में भारी कटौती की गयी है. दलितों को नौकरियों में प्रोन्नति में आरक्षण को समाप्त कर दिया गया है. यह गरीब व वंचित तबके के छात्रों को शिक्षा से वंचित करने और उनको समाज में आगे आने से रोकने की गहरी साजिश है, जिसका हम जोरदार प्रतिवाद करते हैं. यह सामाजिक न्याय नहीं सामाजिक अन्याय की सरकार है. यह विगत चुनाव में दलित-गरीबांे से मिले जनादेश का भी अपमान है. हम छात्रवृत्ति में कटौती वापस लेने तथा दलित कर्मियों की प्रोन्नति में आरक्षण पर लगी रोक को भी वापस लेने की मांग करते हैं.

शिक्षा के स्तर को उन्नत करने के नाम पर बिहार में करीब आधे छात्रों को मैट्रिक की परीक्षा में असफल कर दिया गया. जबकि इसके लिए सरकार की नीतियां जवाबदेह है. आज सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई का कार्य पूरी तरह समाप्त हो चुका है. प्राथमिक विद्यालय महज मध्याह्न भोजन योजना के लिए ही जाना जा रहा है, जहां घोर भ्रष्टाचार है. एक ओर, लगभग आधे छात्रों को असफल कर उनके भविष्य को अंधकार में ढकेल दिया गया, वहीं दूसरी ओर जालसाजी करके अयोग्य छात्रों को टाॅपर बनाया जा रहा है. यह बिहार की जनता के साथ मजाक नहीं तो और क्या है? इससे बिहार के छात्रों व अभिभावकों में गहरी निराशा व क्षोभ है. हम सरकार से मैट्रिक परीक्षा के रिजल्ट के पुनरीक्षण की मांग करते हैं.

मुख्यमंत्री के गृह जिले नालंदा में भी 193 करोड़ रुपये का शिक्षा घोटाला उजागर हुआ है, जिसमें 27 हेडमास्टर को सस्पेंड करके इस मामले को  भी रफा-दफा करने की कोशिश की जा रही है. बीपीएसी की परीक्षा में बैठने वाले छात्र लंबे समय से परीक्षा की तिथि बढ़ाने के लिए आंदोलनरत है, लेकिन सरकार उनकी बातों पर ध्यान नहीं दे रही. अभी हाल में समस्तीपुर में यात्रा भत्ता के भुगतान की मांग पर अनशन पर बैठीं मुख्य संसाधन सेवी पिंकी कुमारी का निधन हो गया. यह संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है.
   
दूसरी ओर, पटना आटर््स व क्राफ्ट काॅलेज में दलित समुदाय से आने वाले छात्र नीतीश कुमार द्वारा आत्महत्या की कोशिश ने रोहित वेमुला परिघटना को पूरी तरह से ताजा कर दिया है. बिहार में पिछले 25 वर्षों से तथाकथित सामाजिक न्याय की ही सरकार चल रही है, लेकिन इस सरकार में भी दलित समुदाय से आने वाले छात्र सामाजिक तौर पर उत्पीड़ित हो रहे हैं और उन्हें आत्महत्या की ओर धकेला जा रहा है. पटना आटर््स काॅलेज की घटना कोई अलग-थलग घटना नहीं है, बल्कि बिहार में घोर शैक्षणिक अराजकता व कैंपसांे को कत्लगाह बनाने का एक उदाहरण भर है. यदि जेएनयू में छात्रों को ‘देशद्रोही’ कहकर उत्पीड़ित किया गया, तो पटना विश्वविद्यालय में उन्हें ‘आतंकवादी’ कहकर उत्पीड़ित किया जा रहा है. जेएनयू, बीएचयू, हैदराबाद व यादवपुर विश्वविद्यालय आदि संस्थानों की कड़ी में अब राज्य का सबसे प्रतिष्ठित पटना विश्वविद्यालय का भी नाम जुड़ गया है. भाजपा विरोध का दंभ भरने वाली नीतीश सरकार भी भाजपा के ही नक्शे-कदम पर चल रही है. बिहार की शिक्षा की चैतरफा बर्बादी का यह उदारहण है.

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