- दलित-महिला उत्पीड़न पर रोक लगाना होगा, अनाज के बदले पैसा योजना वापस ले सरकार.
- माले ने दिया विधानसभा के समक्ष एकदिवसीय धरना.
पटना 1 अगस्त 2016, टाॅपर घोटाले के राजनीतिक सरंक्षण की न्यायिक जांच की मांग पर भाकपा-माले ने आज बिहार विधानसभा के समक्ष एक दिवसीय धरना दिया. धरना में इस प्रमुख मुद्दा के अलावा देश व बिहार में दलितों-महिलाओं पर बढ़ते हमले पर रोक, अनाज के बदले पैसा योजना वापस लेने, मध्यान्ह भोजन योजना को एनजीओ के हवाले करने का फरमान वापस लेने, कदवन जलाशय परियोजना को चालू करने, बिहार में शराब की सभी फैक्टिरयां बंद करने आदि मुद्दे शामिल थे. धरना को संबोधित करने वाले नेताओं में पूर्व सांसद व खेग्रामस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामेश्वर प्रसाद, अखिल भारतीय किसान महासभा के्र राष्ट्रªीय महासचिव व पूर्व विधायक राजाराम सिंह, भाकपा-माले विधायक दल के नेता महबूब आलम, सुदामा प्रसाद, ऐपवा की राष्ट्रीय महासचिव मीना तिवारी, बिहार राज्य अध्यक्ष सरोज चैबे, शशि यादव, ऐपवा की पटना जिला सचिव अनीता सिन्हा, पार्टी नेता राजाराम, अनीता सिन्हा, कमलेश शर्मा आदि नेताओं ने संबोधित किया. माले विधायकों ने विधानसभा से निकलकर धरना पर आए धरनार्थियों को संबोधित किया.
माले नेताओं ने कहा कि टाॅपर घोटाले ने बिहार की शिक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी है. आज पूरे देश में बिहार की डिग्रियों पर सवाल खड़े हो रहे हैं, छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया है. यह पूरे राज्य के लिए शर्म का विषय है. लेकिन इस तरह का घोटाला बिना राजनीतिक सरंक्षण के संभव नहीं है. साथ ही, यह शिक्षा नीति की असफलता को भी जाहिर कर रहा है. इसलिए हमारी मांग है कि टाॅपर घोटाले के राजनीतिक संरक्षण की जाचं न्यायिक आयोग के तहत होनी चाहिए और इसमंें शिक्षा नीति की जांच के लिए लब्ध प्रतिष्ठित शिक्षाविदों को भी शामिल करना चाहिए. वित्तरहित शिक्षा नीति को अविलंब वापस लेना चाहिए. हमने इस सवाल पर बिहार बंद का भी आह्वान किया, लेकिन नीतीश सरकार ने इस पर अब तक कोई संज्ञान नहीं लिया है. उन्होंने आगे कहा कि आज पूरे देश मंे दलितों-अल्पसंख्यकों-महिलाओं पर हमले की एक नई प्रवृत्ति देखी जा रही है. गुजरात का ऐतिहासिक दलित उभार हमारे सामने है. लेकिन अपने राज्य में भी दलितों पर दमन की नई प्रवृत्तियां उभर रही हैं. मुजफ्फरपुर के पारू के बाबूटोला में दबंगों ने दलित युवकों के मुंह में पेशाब करने जैसी निकृृष्टतम घटनाओं को अंजाम दिया. दरभंगा में भी एक ऐसी ही घटना घटी. दरभंगा के बिरौल में महादलितों को उजाड़ने में जिला प्रशासन व दबंगों का गठजोड़ काम कर रहा है, जबकि आपकी सरकार गरीबों को बसाने का आह्वान करती है. हमारी मांग है कि दलित उत्पीड़न की घटनाओं पर रोक लगाने के लिए सख्त से सख्त कदम उठाये जाएं.
उन्होंने कहा कि केद्र सरकार की तर्ज पर आपकी सरकार बिहार में अनाज के बदले पैसा योजना लागू कर रही है. इसके जरिए होगा यह कि किसानों से अनाज खरीदने की योजना समाप्त कर अनाज व्यवसाय को निजी पूँजीपतियों के हाथों में सौंप दिया जाएगा। इससे भारत का किसान और तबाह होंगे और आम गरीबों की परेशानी और बढ़ेगी। 25 किलो अनाज पाने वाले परिवारों के खाते में 300-400 रूपये की राशि जाएगी और उन्हें बाजार से उँची दर पर अनाज खरीदना होगा। जनवितरण व्यवस्था समाप्त होते ही चावल, गेहूँ और दाल की कीमतें आसमान छूने लगेंगी। इससे भूखमरी की समस्या बढ़ेगी। आज के समय में 300-400 रुपये का एक महीना में कोई महत्व नहीं है। लेकिन 25 किलो अनाज गरीबों के लिए मायने रखता है। तमिलनाडु में जहाँ प्रति परिवार 20 किलो चावल मुफ्त में मिलता है वहीं चीनी, दाल और तेल भी मिलता है। आन्ध्र और पंजाब में भी दाल मिलता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी जनता के इस संवैधानिक अध्किार को दुरूस्त करने, मजबूत बनाने और अन्य जरूरी खाद्यान्न को जनवितरण में शामिल करने का निर्देश दिया है। इसलिए बिहार में जनवितरण प्रणाली को दुरूस्त किया जाए. वक्ताओं ने कहा कि मध्यान्ह योजना कर्मियों को न तो उचित मानेदय मिला और न सामाजिक सुरक्षा, लेकिन आज उनको एनजीओअ के हवाले करने की कोशिशें चल रही हैं. हम इसे तत्काल वापस लेने की मांग करते हैं. उन्होंने यह भी जोड़ा कि दलित व वंचित तबके के छात्रों की छात्रवृत्ति में कटौती कहीं से जायज नहीं है. यह आपके नारे ‘सामाजिक न्याय’ का ही माखौल उड़ाता है. कदवन जलाशय परियोजना को अविलबं चालू करने, बाढ़-सूखाड़ का स्थायी समाधान करने की भ्ीा मांग की गयी. उन्होंने यह भी कहा कि बिहार सरकार शराबबंदी का प्रचार तो खूब कर रही है, लेकिन बिहार में शराब बनने का कारोबार अब भी चल रहा है. इस पर अविलंब रोक लगायी जानी चाहिए.

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