- 15 अगस्त के बहाने मोदी सरकार ‘कश्मीर बनाम शेष भारत’ का पैदा कर रही उन्माद.
- एआइपीफ द्वारा आयोजित कन्वेंशन में दलितों-अल्पसंख्यकों और आदिवासयिों पर हमले पर तत्काल रोक लगाते हुए संविधान की हिफाजत व आजादी की उठी मांग.
पटना 13 अगस्त 2016, देश की आजादी की लड़ाई में जिन ताकतों की कोई भूमिका नहीं रही है, वे आज 15 अगस्त का राजनीतिक इस्तेमाल करना चाहती हैं. 15 अगस्त के बहाने मोदी सरकार देश में ‘कश्मीर बनाम शेष भारत’ का माहौल बनाकर अंधराष्ट्रवादी उन्माद पैदा करना चाहती है. जबकि वास्तविकता यह है कि एक तरफ आर्थिक मोर्चे पर्र गुलामी क नए दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किया जा रहा है, तो दूसरी ओर अपने हक-अधिकार के लिए संघर्षरत दलितों-अल्पसंख्यकों-आदिवासियों पर संघ ब्रिगेड का हमला भी लगातार जारी है. उक्त बातें माले महासचिव काॅ. दीपंकर भट्टाचार्य ने आज पटना के आइएमए हाॅल में एक विचार-गोष्ठी को संबोधित करते हुए कही. उन्होंने कहा कि मोदी शासन में आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया और तेज करते हुए देश में कंपनी राज स्थापित किया जा रहा है. जिस प्रकार से सेज के सवाल पर सारी पार्टियां एकजुट होकर जनता के खिलाफ कारपोरेट घराने पक्ष में खड़ी हुई थीं, आज ठीक उसी प्रकार जीएसटी के सवाल पर भाजपा के नेतृत्व में अमेरिकी दबाव में कानून बनाया जा रहा है. टैक्सों को कम करने का दावा करने वाली मोदी सरकार आज टैक्स टेरोरिज्म की सरकार बन गयी है.
उन्होंने कहा कि एक तरफ जहां मोदी सरकार देश की आजादी को नए सिरे से अमेरिका के हाथों बेच रही है, वहीं दूसरी ओर आरएसएस सामाजिक गुलामी को बरकरार रखने के लिए पूरी मुस्तैदी से खड़ा है. हमें क्या बोलना है, क्या खाना है, यह सबकुछ अब ये लोग तय करेंगे. लेकिन भाजपा जिस गुजरात माॅडल की दुहाइयां दिया करती थी, उसका सच पूरी दुनिया के सामने आ गया है. आबादी के लिहाज से गुजरात में दलितों की आबादी कम है और वह संधियों का सबसे मजबूत किला माना जाता रहा है. लेकिन आज दलितों के जबरदस्त उभार ने उस गुजरात माॅडल की हवा निकाल दी है. गुजरात दलित आंदोलन के मुद्दों में जमीन की मांग शामिल है और इस प्रकार से उन्होंने बाबा साहेब डाॅ. भीमराव अंबेडकर को फिर से सामने लाया है, जिसकी शुरूआत रेाहित वेमुला ने की थी. डाॅ. भीम राव अंबेडकर ने सत्ता-संपत्ति व संसाधनों में गैरबराबरी पर आधारित सामाजिक-आर्थिक ढांचे को खारिज कर दिया था, लेकिन यह विडंबना रही कि उन्हें केवल आरक्षण के दायरे में बांध दिया गया था.
इसके पूर्व पटना के आइएमए हाॅल में ‘दलितों-अल्पसंख्यकों-आदिवासियों पर बढ़ता हमला: संविधान और आजादी का सवाल’ विषय पर आयोजित कन्वेंशन का विषय-प्रवेश करते हुए एआइपीएफ के संयोजक संतोष सहर ने कहा कि आज दलितों-छात्रों व समाज के विभिन्न तबकों का संघर्ष मजबूती से उभकर सामने आ रहा है. आज जब दलितों-अल्पसंख्यकों व आदिवासियों पर हमला बढ़ रहा है, तब संविधान व आजादी के सवाल को फिर से देखने की जरूरत है. कन्वेंशन को संबोधित करते हुए महंथ मांझी ने कहा कि एक तरफ भाजपा शासित प्रदेशों में गोमांस का निर्यात बढ़ रहा है, तो दूसरी ओर दलितों पर हमले भी बढ़ रहे हैं. यह एक बड़ी विडंबना है. लेकिन दलितों पर हमले केवल भाजपा शासित राज्यों में नहीं हो रहे बल्कि तथाकथित समाजवादी सरकार के शासन में भी हो रहा है. बिहार में अपने को समाजवादी कहने वाली सरकार ने दलित छात्रों की छात्रवृत्ति काट दी है.
गुजरात से लौटने के उपरांत माले के पूर्व सांसद रामेश्वर प्रसाद ने कहा कि जिन दलितों ने आज भाजपा सरकार के खिलाफ लड़ाई छेड़ रखी है, उन्होंने ही बताया कि 2002 के राज्य प्रायोजित दंगा के समय उन्हें अल्पसंख्यकों के खिलाफ लड़ाया गया था. लेकिन आज वहां दलित-अल्पसंख्यक मिलकर लड़ रहे हैं. सामाजिक कार्यकत्र्ता मो. कासिब ने कहा कि आंदोलनकारी ताकतों की एकता फिलहाल बिखरी हुई है और यदि यह एकजुट नहीं होती तो भाजपा जैसी ताकतों केा पीछे हटाना मुश्किल है. इसलिए सबसे अहम सवाल यह है कि आंदोलन की ताकतें अपने मामूली मतभेदों को छोड़कर एक बड़ी एकता का निर्माण करें. अनुसूचित जाति/जनजाति कर्मचारी नेता हरकेश्वर राम ने कहा कि आरएसएस ने जानबूझकर दलितों व अल्पसंख्कों केा टारगेट कर रखा है. जो आज जितना नीेचे है, उतना ही अपमानित है. बिहार सरकार भी हमारे अधिकारों में तरह-तरह से लगातार कटौती कर रही है. कन्वेंशन का अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए अर्जुन राम ने कहा कि संविधान को कार्यान्वित करने वाले लोग गलत हैं. जातियों को हम आज क्यों ढो रहे हैं? आज जरूरत है कि अवैज्ञानिक और दकियानूसी विचार को मजबूती से चुनौती दें और प्रगतिशील व वैज्ञानिक चेतना के पक्ष में मजबूती से खड़े हों.

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें