बिहार में आलू की खेती करना फायदे का सौदा नहीं - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।


मंगलवार, 16 अगस्त 2016

बिहार में आलू की खेती करना फायदे का सौदा नहीं


औरंगाबाद (बिहार) 16 अगस्त,  केन्द तथा राज्य सरकार की ओर से समुचित प्रोत्साहन के अभाव एवं कृषि संसाधनों के बढ़ते दाम के कारण बिहार के किसानों के लिए आलू की खेती करना अब फायदे का सौदा नहीं रह गया और इसका सीधा असर आलू के उत्पादन पर भी पड़ा है। बिहार के औरंगाबाद, रोहतास, नालंदा, कैमूर, भोजपुर, बक्सर, अरवल आदि जिलों में आलू की खेती बड़े पैमाने पर की जाती रही है और इन जिलों से आलू उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, दिल्ली, असम, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा आदि प्रदेशों में भेजी जाती रही है । हाल के वर्षों में आलू की खेती में बढ़ते जा रहे लागत के कारण किसानों के लिए इसका उत्पादन करना मुश्किल हो रहा है।



औरंगाबाद के बारून इलाके में आलू की खेती करने वाले किसानों ने बताया कि अब आलू की खेती करना आसान और फायदेमंद नहीं रहा। खेतों की उर्वरा शक्ति और सिंचाई साधनों की कमी के कारण आलू की खेती बुरी तरह प्रभावित हुई है। पहले जहां एक एकड़ खेत में 70 क्विंटल आलू का उत्पादन होता था , वह घट कर अब मात्र 45 से 50 क्विंटल रह गया है। सर्वाधिक चिंताजनक बात यह है कि जब आलू का उत्पादन होता है, तब इसका दाम काफी गिर जाता है और किसानों को औने-पौने दाम पर व्यापारियों के हाथों इसे बेचना पड़ता है। आलू के भंडारण के लिए कोल्ड स्टोरेज की सुविधा कम रहने के कारण किसानों के लिए तत्काल आलू की बिक्री करना मजबूरी है।


आलू की खेती करने वाले किसानों ने बताया कि इसकी खेती के लिए सरकार के पास कोई भी प्रोत्साहन नीति नहीं है और न ही इसके लिए किसी प्रकार का अनुदान ही मिलता है । अगर प्राकृतिक कारणों से आलू की खेती प्रभावित हुई तो भी किसानों को किसी तरह की सरकारी सहायता नहीं मिलती । भारतीय कृषि अनुसंधान केन्द्र के पूर्व सदस्य विश्वनाथ सिंह ने स्वीकार किया है कि आलू उत्पादन की लागत में वृद्धि हुई है जिससे उत्पादन पर असर पड़ा है। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा अन्य खाद्य उत्पादों की तरह आलू का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित नहीं है और किसानों से सरकारी तौर पर इसके खरीद की व्यवस्था नहीं है। यदि न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने के साथ ही आलू का क्रय कर उसका कोल्ड स्टोर में भंडारण का प्रबंध हो तो किसानों को काफी हद तक फायदा मिल सकता है। 


वहीं दूसरी ओर राज्य के कृषि उत्पादन आयुक्त विजय प्रकाश ने यहां बताया कि प्रदेश में आलू उत्पादन को बढ़ावा देने, इसके भण्डारण और विपणन को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से इस वर्ष 15-16 सितम्बर को पटना में देश-विदेश के आलू विशेषज्ञों, कृषि वैज्ञानिकों तथा आलू उत्पादक किसानों की एक कार्यशाला आयोजित की जा रही है । इस कार्यशाला में आलू से जुड़े सभी मुद्दों पर चर्चा होगी। इसके अलावा आलू के बीज उत्पादन के क्षेत्र में बिहार को अग्रणी राज्य बनाने के लिए योजना तैयार की जायेगी। उन्होंने बताया कि इस कार्यशाला में आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला के भी कृषि वैज्ञानिक भाग लेंगे। श्री प्रकाश ने बताया कि राज्य सरकार की योजना आलू उत्पादक किसानों को प्रोत्साहित करने की है। इसके लिए उन्हें विशेष तौर पर प्रशिक्षित किया जायेगा। उन्होंने बताया कि आलू का अधिक से अधिक सुरक्षित भंडारण कैसे हो, इसकी भी व्यवस्था की जा रही है।

कोई टिप्पणी नहीं: