जीएसटी का समर्थन बिहार जैसे पिछड़े प्रदेशों के हित में नहीं: कुणाल - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 16 अगस्त 2016

जीएसटी का समर्थन बिहार जैसे पिछड़े प्रदेशों के हित में नहीं: कुणाल

  • जनविरोधी-राष्ट्रविरोधी बिल का माले विधायकों ने किया जोरदार विरोध, बिल को रद्द करने की मांग की.

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पटना 16 अगस्त 2016, भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने बिहार विधानसभा के अंदर भाकपा-माले को छोड़कर अन्य पार्टियों द्वारा जीएसटी बिल का समर्थन करने की घटना को बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बताया है. उन्होंने कहा कि इससे साबित होता है कि नीतीश सरकार केवल बातों में केंद्र की भाजपा सरकार का विरोध करती है, हकीकत में वह भाजपा की ही नीतियों को आगे बढ़ा रही है. केंद्र व राज्य के बीच अधिकारों को लेकर उनकी लड़ाई भी पूरी तरह फर्जी है. उन्होंने कहा कि जीएसटी बिल के बारे में प्रचार किया जा रहा है कि इससे टैक्स संग्रह की जटिलतायें समाप्त होंगी, टैक्स का सरलीकरण होगा, महंगाई पर रोक लगेगी, मुद्रा स्फीति कम होगी, भ्रष्टाचार कम होगा आदि-आदि. इस आड़ में सच्चाई छुपायी जा रही है. बिहार जैसे पिछड़े प्रदेशों के लिए यह बिल बेहद अन्यायपूर्ण व भेदभाव पैदा करने वाला है. एक देश-एक टैक्स की व्यवस्था से बड़ी कंपनियां छोटे व स्माल स्केल वाले उद्योगों को पूरी तरह तबाह कर देंगी, जबकि ऐसे प्रदेशों में छोटे उद्योगों को सरकारी संरक्षण की जरूरत है. नीतीश सरकार जीएसटी का समर्थन करके भाजपा सरकार की कारपोरेटपरस्त नीतियों को ही बढ़ावा दे रही है.


देश के टैक्स कलेक्शन में कारपोरेटों, बड़ी कंपनियों की हिस्सेदारी महज एक तिहाई है, बाकि टैक्स देश की गरीब जनता से वसूला जाता है. जीएसटी प्रणाली में कारपोरेट घरानों पर लगाये जा रहे प्रत्यक्ष टैक्स में तो कोई बढ़ोतरी नहीं की गई, लेकिन दूसरी ओर अप्रत्यक्ष टैक्स प्रणाली को केंद्रीकृत कर दिया गया है. इससे सरकार की मंशा का पता चलता है कि वह समस्या के समाधान की बजाए टैक्स का बोझ बहुत संपत्तिशाली व अधिक आय वाले लोगों पर डालने की बजाए गरीबों और आम जनता पर लादना चाहती है. यही वजह है कि देश में प्रत्यक्ष कर का अनुपात लगातार घट रहा है. इस तरह जीएसटी टैक्स आतंकवाद है. देश की तीन चैथाई जनता के पास रहने को ठीक-ठाक घर नहीं है और बिहार में तो 91.67 प्रतिशत परिवारों में कमाने वाले किसी भी सदस्य की मासिक आय 10 हजार रु. से कम है. लेकिन ये लोग सरकार को टैक्स देते हैं. जीएसटी के बाद निश्चित रूप से इन पर टैक्स का बोझ और बढ़ जाएगा. पटना या रांची के रेस्टोरेन्ट में या किसी ट्रेवल एजेन्सी में अभी सर्विस टैक्स 9 या 12 प्रतिशत लगता है, उसे भी एकसार करके 18 या 28 या 32 प्रतिशत तक कर देने का प्रावधान है. 

 जीएसटी के लिए संविधान के संघीय ढांचे तक में संशोधन कर दिया गया है और देश की आर्थिक संप्रुभता से समझौता किया जा रहा है. जीएसटी में टैक्स वसूली की व्यवस्था निजी प्राइवेट कंपनियों के हाथों सौंपने की बात है. इससे कर दाताओं की गोपनीयता और संप्रभुता खतरे में पड़ जाएगी. वैश्वीकरण व उदारीकरण के दौर में अंतर्राष्ट्रीय वित पूंजी के दबाव में यह गरीबों के उपर टैक्स का बोझ बढ़ाने वाला बिल है. इस तरह यह देश की आर्थिक संप्रभुता पर भी हमला है. इसलिए इस जनविरोधी-राष्ट्रविरोधी जीएसटी बिल को हम पूरी तरह रद्द करने की मांग करते हैं.

माले विधायकों ने विधानसभा में बिल का किया विरोध.
बिहार विधानसभा में जीएसटी पर चर्चा के दौरान माले विधायकों ने जीएसटी बिल को जनविरोधी व राष्ट्रविरोधी करार देते हुए उसका जबरदस्त विरोध किया. माले विधायक दल के नेता महबूब आलम और सुदामा प्रसाद ने इस बिल का विरोध किया. महबूब आलम ने कहा कि जीएसटी कानून के जरिए भाजपा, कांग्रेस, जदयू-राजद ये सभी पार्टियां कारपोरेट घरानों को टैक्स में छूट देने की साजिश रच रही हैं, तो दूसरी ओर गरीबों व कमजोर वर्ग पर टैक्स का बोझ बढ़ाने के लिए जीएसटी कानून बना रही हैं.

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