जिस तरह जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट से लेकर लोकसभा में सीताराम येचुरी, गुलाम नबी आजाद समेत अन्य लोग मोदी सरकार को नसीहत देने की कोशिश कर रहे है वह सिर्फ और सिर्फ सेना का मनोबल डाउन करने से अधिक कुछ भी नहीं है। जो लोग आतंक की राज चल पड़े कुछ कश्मीरियों को अपने जैसा ही समझना की दुहाई दे रहे है वह क्यों नहीं अपनी नसीहत प्रदर्शनकारियों, पत्थरबाजों को देते है। ‘पैलेटगन‘ का इस्तेमाल तो बहुत कम है, लगातार पैसे लेकर अशांति फैलाने वाले लोगों से तो और सख्ती से निपटना ही एकमात्र विकल्प है। अगर नही ंतो बडा सवाल यही है कब तक हम जवानों की शहादत देकर शांति की आस करते रहेंगे? कब तक बुरहान वानी जैसे आतंकियों को बर्दाश्त कर मौत के घाट उतारने में हम खुद को रोकते रहेंगे?
बेशक जिस तरह मौजूदा दौर में संसद में विपक्ष कश्मीर मसले को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दबाव में लेने की कोशिश कर रहा है। कश्मीरी युवाओं पर सेना द्वारा ज्यादीति की दुहाई दे रहा है वह सिर्फ और सिर्फ वोट की सियासत से अधिक कुछ भी नहीं। क्योंकि विपक्ष सेना द्वारा चलाई गयी प्लेटगन से पत्थरबाजों की हुई मौतें व घायलों की चर्चा कर रहा तो रहा है लेकिन शायद उसे नहीं मालूम की इन पत्थरबाजों के हमलों में कई जवान भी शहीद होने के साथ घायल भी हुए है। खासकर जब मोदी पाकिस्तान हुक्मरानों समेत आतंकी संगठनों को कश्मीर में उपजे हालात को लेकर यूएन में घेर रहे है उससे उसकी बोलती बंद हो गयी है। जबकि राजनीतिक सियासतवश विपक्षी पार्टिया सेना पर ही सवाल खड़े कर रहे है। बरहान वानी जैसा आतंकी व कश्मीर की अमन-चैन छीनने वाले कुछ पत्थरबाजों की यहकर तरफदारी कर रहे है, वह निहत्थे व निर्दोष है। मतलब साफ है लोकसभा चुनाव ठोक-पीट चुके कांग्रेस समेत अन्य पार्टिया मोदी को सिर्फ इसलिए घेर रहे है जिससे पत्थरबाजी की आड़ में पाकिस्तान से फंड मिलता रहे। और जब मोदी ने कहा, यह 70 साल की नाकामी का दुष्परिणाम है कि कश्मीरी युवा लैपटाॅप की जगह हाथ में पत्थर उठा रहे है।
यहां प्रधानमंत्री को समझना होगा कि कौन सा ऐसा धड़ा है जो बेरोजगारी दूर करने के लिए आप पत्थर की जगह लैपाटाॅप देने की बात कर रहे है तो विपक्ष सिर्फ इसलिए आप पर दवाब बना रहा है कि जांच एजेंसियों से राहत मिल सके। पर अब वक्त है जब हम उसे मानने पर मजबूर करें। कश्मीर पर कड़े फैसले लें। हम कब तक सुरक्षाकर्मियों की शहादत सहते रहेंगे? हमें अब कश्मीर के संपूर्ण हल की ओर बढना चाहिए। माना पाकिस्तानी सेना के दबाव में नवाज शरीफ बयान दे रहे हैं तो कट्टरपंथी युद्ध की चेतावनी। तो ऐसे में मोदी का चुप होना जाना, सवा सौ करोउ़ देशवासियों के साथ घिनौना मजाक नही ंतो और क्या है। रक्षाकर्मियों से मुठभेड़ में हिजबुल मुजाहिदीन आतंकवादी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद आठ जुलाई से कश्मीर में जो हिंसा शुरू हुई वह अब भी रुकने का नाम नहीं ले रही है। जबकि 50 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और 3,783 से ज्यादा लोग जख्मी हो गए हैं। इसका मुख्य कारण है, पाकिस्तान का बुरहान को शहीद का दर्जा देना, पाकिस्तान में काला दिवस घोषित करना और कट्टरपंथियों का भारत के प्रति रवैया, जो कश्मीर में आतंकवादियों को हवा दे रहा है और स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि करीब 10 जिलों में कफ्र्यू लगाना पड़ा। अगर हम परिस्थितियों का विवेकपूर्ण आकलन करें तो पाते हैं कि कश्मीर घाटी में लगातार अलगाववादियों को पाकिस्तान प्रश्रय प्रदान कर रहा है। करोड़ों की तादाद में धन आ रहा है। आतंकियों और घुसपैठियों के रूप में भारतविरोधी ताकतें अपने पैर जमा रही हैं। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ लगातार कश्मीर मुद्दे को हवा दे रहे हैं। कट्टरपंथी विरोध किए जा रहे हैं और भारत केवल शांति की बात कर नसीहतें देता रहता है।
सच तो यह है कि आतंकवाद, संगठित अपराध को अपने ‘राष्ट्रहित’ के लिए जायज हथियारों की तरह लगातार इस्तेमाल करने वाले राज्यों को कटघरे में खड़ा कर दंडित करने का वक्त आ चुका है। मानवाधिकारों के कवच का इस्तेमाल बहुत हो चुका। कश्मीर घाटी में असंतोष और आक्रोश के कारण अनेक हैं। माना केंद्र व राज्य सरकार को उसकी जिम्मेवारी-जवाबदेही से बरी नहीं किया जा सकता, लेकिन अलगाववादी हिंसा को भड़काने की पाकिस्तानी साजिश को सुलह के नाम पर लगातार नजरअंदाज करना आत्मघातक साबित होता रहा है। यह आशा की जानी चाहिए कि गृह मंत्री की पाकिस्तान यात्रा के बाद इस बारे में कोई भ्रम बचा नहीं रहेगा। इसके पहले जब कभी प्रधानमंत्री मोदी ने उभयपक्षीय रिश्ते सुधारने की पहल की है, निराशा ही हाथ लगी है। भारत-पाक संबंध ऐतिहासिक कारणों से इस कदर जटिल और दूषित हैं कि नेताओं की व्यक्तिगत दोस्ती भी इसका कायाकल्प नहीं कर सकती। पाकिस्तान और चीन तथा पाकिस्तान और अमेरिका के सामरिक संबंध आधी सदी से अधिक समय से आत्मीय हैं और इस तिकोनी धुरी का मकसद दक्षिण एशिया में भारत का कद बौना करना ही रहा है। अतः मोदी ही राजनयिक असफलता के लिए जिम्मेवार हैं, यह सोचना गलत है।
हो जो भी लेकिन मोदी को चाहिए कि वह विपक्षी साजिशों में आने के बजाय इस बात का पता लगाएं कि परमाणु युद्ध की धमकी देने वाले हिज्बुल सरगना सैयद सलाहुदीन को शह कहां से मिल रही है? हाफिज सईद और मसूद अजहर जैसे आतंकियों को पनाह कौन दे रहा है? कूटनीतिक स्वार्थों से परे हट कर वैश्विक स्तर पर भी इस घातक समस्या के समाधान की ठोस पहलों की जरूरत है। आतंक पर राजनीति करने वाले देशों को यह भी समझना होगा कि इसका भुक्तभोगी अंततः जनता ही है। क्वेटा जैसी घटनाएं दुनिया में कहीं भी हों, इसका शिकार बनने के लिए आम लोग ही अभिशप्त हैं। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी चाहिए कि वह पाकिस्तान पर समुचित दबाव बनाए। क्योंकि स्थिति अब हद से बाहर जा चुकी है। बुरहान वानी आतंकवादी था और रहेगा, उस जैसे आतंकियों को ऐसे ही मौत के घाट उतारा जाना चाहिए। एनआईटी में जिस तरह पोस्टर लगाकर दहशत फैलाने की कोशिश की जा रही है, उसमें लिखा है कि कश्मीर को पूरी आजादी की जंग शुरू की जानी है। अब सवाल यह है कि फिर इसका इलाज क्या है? कब तक हम जवानों की शहादत देकर शांति की आस करते रहेंगे? कब तक बुरहान वानी जैसे आतंकियों को बर्दाश्त कर मौत के घाट उतारने में हम खुद को रोकते रहेंगे? जबकि राजस्थान, यूपी, हरियाणा, तमिलनाडु के छात्र भी वहां पढ़ाई कर रहे हैं। क्या कभी किसी ने सोचा कि जिन परिवारों के बच्चों वहां है उन पर मंडराते खतरे को लेकर क्या बितती होगी। लोग यह कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं कि अपने मुल्क में ही उनके बच्चे दहशत में रहकर पढ़ाई करें। इसलिए सरकार को इन छात्रों को फिलहाल अन्यत्र एनआईटी में स्थान देकर भविष्य की चिताओं से मुक्त करना चाहिए।
यह सही है कि पड़ोसी (पाकिस्तान) है कि मानता नहीं। पर अब वक्त है जब हम उसे मानने पर मजबूर करें। कश्मीर पर कड़े फैसले लें। हम कब तक सुरक्षाकर्मियों की शहादत सहते रहेंगे? हमें अब कश्मीर के संपूर्ण हल की ओर बढना चाहिए। यह ठीक है कि बातचीत कश्मीर समस्या को सुलझाने का सबसे अच्छा रास्ता है लेकिन इंतहा हर बात की होती है। मैं नहीं समझता कि अब और बर्दाश्त किया जा सकता है। बगैर किसी के दबाव में आएं हमें आर-पार का फैसला करना होगा। कश्मीर को अतिरिक्त सुविधाओं से मुक्त करना और सामान्य राज्य में परिवर्तित करना पहला काम होना चाहिए। आजाद कश्मीर को भारत को अपने कब्जे में लेना चाहिए। आतंकियों और अलगाववादियों को सख्ती से सबक सिखाना होगा। हमें यह विचारधारा समाप्त करनी होगी कि कश्मीर कोई विशेष राज्य है। उसे अनुच्छेद 370 से मुक्त करना अतिआवश्यक हो गया है। गलतफहमियां मिटानी जरूरी हैं। पिछले करीब एक माह से लगातार धारा-144 और कफ्र्यू के कारण कश्मीर का हाल बेहाल है। खरीदे गए लोग कश्मीरियों और वहां पर पढ़ रहे छात्रों में दहशत फैलाकर ऐसा माहौल पैदा करना चाहते हैं कि कश्मीर में लगातार अशांति बनी रहे और दुनिया को यह संदेश जाए कि कश्मीर की अवाम आजादी चाहती है।
(सुरेश गांधी)

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