पुलिस की धमकी से पीड़ित सहित बुलंदशहरवासी खौफजदा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 1 अगस्त 2016

पुलिस की धमकी से पीड़ित सहित बुलंदशहरवासी खौफजदा

पुलिस ने नेट द्वारा उठाई गयी 200 से अधिक अपराधियों को फोटो को पीड़ित किशोरी से पहचान कराकर तीन लोगों को मीडिया से मुखातिब कराएं बगैर जेल भेज दिया। पुलिस की इस कार्रवाई से नाखुश पीड़ित परिवार का कहना है कि अगर न्याय नहीं मिला तो जहर खाकर जान देंगे। हालांकि यूपी पुलिस की लापरवाहियों व कार्यप्रणाली से दुखी गृह मंत्रालय ने यूपी पुलिस से पूरे घटनाक्रम व कार्रवाई की रिपोर्ट मांगी है  

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बुलंदशहर में एक महिला और उसकी नाबालिग बच्ची के साथ सनसनीखेज रेप मामले में यूपी सरकार एवं पुलिस महकमें की संसद से लेकर सड़क तक चैतरफा किरकिरी हो रही है। इस किरकिरी से खिसियाई सरकार एवं पुलिस गुंडागर्दी पर उतारु हो गयी है। हाल यह है पुलिस जहां पीड़ितों पर दबाव बनाया है कि सलामती चाहते हो तो मीडिया के सामने मुंह मत खोलों, पुलिस जो कर रही है उसमें साथ दो। शायद इसी धमकी का नतीजा रहा कि पुलिस ने नेट द्वारा उठाई गयी 200 से अधिक अपराधियों को फोटो को पीड़ित किशोरी से पहचान कराकर तीन लोगों को मीडिया से मुखातिब कराएं बगैर जेल भेज दिया। पुलिस की इस कार्रवाई से नाखुश पीड़ित परिवार का कहना है कि अगर न्याय नहीं मिला तो जहर खाकर जान देंगे। हालांकि यूपी पुलिस की लापरवाहियों व कार्यप्रणाली से दुखी गृह मंत्रालय ने यूपी पुलिस से पूरे घटनाक्रम व कार्रवाई की रिपोर्ट मांगी है। साथ ही पीड़ितों को भरोसा दी है न्याय न होने पर केन्द्र सरकार अपने तरीके से घटनाक्रम का वर्कआउट करायेगी। उधर, घटनाक्रम को लेकर बुलंदशहर में बढ़ी मीडिया की चहलकदमी से क्षेत्रीय पुलिस अधिकारियों ने ग्रामीणों को हड़काया है कि अगर किसी ने पुलिस के खिलाफ कुछ बोला तो उसकी खैर नहीं। 


उधर लोकसभा से लेकर सड़क तक विपक्षियों द्वारा अखिलेश के इस्तीफे की मांग तेज हो गया है। बुलंदशहर के सांसद भोला सिंह ने कहा कि कुछ दिन पहले नोएडा से शाहजहांपुर जाते समय एक परिवार को गुंडों द्वारा निशाना बनाया गया और लूटपाट के साथ ही परिवार की महिला तथा नाबालिग बच्ची के साथ रेप किया गया। वह केवल यही एक घटना नहीं है बल्कि पूरे यूपी में मार्च 2015 से रेप की 2752 और हत्याओं की 1246 घटनाएं हो चुकी हैं। सभी अपराध प्रदेश सरकार के संरक्षण में हो रहे हैं। सरकार के दबाव के वजह से पुलिस प्रशासन अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर पा रहा है। जबकि बीएसपी सुप्रिमों मायावती ने कहा एक परिवार को लूटने व मां-बेटी के साथ गैंग रेप जैसी वहशियाना घटनाओं से बद-से-बदतर होती जा रही उप्र की कानून-व्यवस्था। इस प्रकार की घटनाओं से यह साबित होता है कि लोगों के जान-माल, इज्जत-आबरू की कोई कीमत इस एसपी सरकार में नहीं रह गई है। लोगों के जान-माल की असुरक्षा के साथ-साथ खासकर महिलाओं का घर से बाहर निकलना काफी ज्यादा असुरक्षित हो गया है। इस दर्दनाक व शर्मनाक घटना के बारे में एसपी सरकार व इसके मुखिया जनता को यह बताएं कि वे पीड़ित मां-बेटी की अस्मत को कैसे लौटा सकते हैं? क्या इस प्रकार की घटनाओं को भी वे पैसे से तौलेंगे? वास्तव में प्रदेश में जंगलराज होने के कारण एसपी के आपराधिक तत्व बिना किसी लगाम व भय के घूम रहे हैं। इससे प्रदेश में सर्वसमाज के लोग व आम जनता का जीना दिन-प्रतिदिन काफी ज्यादा मुश्किल होता जा रहा है। 

इधर, गैंगरेप की शिकार मां-बेटी ने जिस तरह पूरी घटना को बताया, उससे किसी के भी मन में डर पैदा हो सकता है। पीड़ित परिवार के मुताबिक सड़क पर लोहे की रॉड पड़ी थी। हमारी गाड़ी फंस गई। बदमाश हमसे लड़ने लगे। हथौड़ा और सरिया मारा, फिर हमारे हाथ बांध दिए। पत्नी से जेवर लूट लिए। उसकी तलाशी लेने के लिए उसे नंगा कर दिया। मेरी बेटी और मैंने इसका विरोध किया, तो हमें मारा और गालियां दीं। बार-बार धमकी देते रहे कि चुप हो जाओ, वरना गोली मार देंगे। मैंने कहा कि रुपए-पैसे ले लो, लेकिन इज्जत मत लो। हमारे हाथ बंधे थे, पानी मांगते तो वे हमें मारते। किसी तरह मेरी भतीजी ने दांत से काटकर रस्सी खोली, तब हमारे हाथ फ्री हो पाए। हमने 20 मिनट तक 100 नंबर पर कॉल की, लेकिन नंबर बिजी रहा। कप्तान से 20 मिनट बाद बात हुई, तब 2 जिप्सी आईं। इस पूरी घटना के लिए कानून व्यवस्था जिम्मेदार है। उन दरिंदों को हमें सौंप दो। हम उनको अपनी बेटी और पत्नी से मरवाना चाहते हैं। हम उनकी आंखें निकाल लेंगे। ऐसा लगता है कि जहर खाकर मर जाऊं। अगर न्‍याय नहीं मिला तो हम मर जाएंगे। पीड़ितों का आरोप है कि पुलिस उन्हें गुमराह कर रही है। निर्दोष लोगों को शिनाख्त करने का दबाव बना रही है। पुलिस उन्हें बंधक बनाकर रखी है। उन्हें उनके परिजनों से मिलने नहीं दिया जा रहा है। 

पुलिस की धमकी से भयभीत ग्रामीणों की मानें तो बुलंदशहर पुलिस अगर पहले चेत जाती तो शायद शुक्रवार रात हुई गैंगरेप की वारदात न होती। दरअसल कोतवाली देहात इलाके में पहले भी एक्सेल फेंककर लूटपाट की दो वारदात हुईं थीं, लेकिन तब पुलिस ने उन्हें गंभीरता से नहीं लिया। सख्त कार्रवाई तो दूर लूट की वारदात छिनैती व चोरी की धाराएं लगाकर निपटा दी गईं। पुलिस सूत्रों के मुताबिक धाराओं के इस खेल में तत्कालीन एसएसपी बुलंदशहर की अहम भूमिका थी। 7 और 12 मई को कोतवाली देहात क्षेत्र में हुई वारदात का भी वही तरीका था जो शुक्रवार रात हुई वारदात में था। एक्सल गैंग ने रास्ते में एक्सल फेंककर गाड़ियां रुकवाईं और लूटपाट की। जब कोतवाली देहात पुलिस और जिले के कप्तान तक खबर पहुंची तो पुलिस उन्हें दबाने में जुट गई। 12 मई वाली वारदात को देहात पुलिस ने चोरी की धारा (379) व सात मई की वारदात को छिनैती (आईपीसी 356) में दर्ज किया। अगर ये दोनों वारदात सही धाराओं में दर्ज कर लुटेरों की तलाश की गई होती तो शायद वे सलाखों के पीछे होते। उस वक्त आईपीएस पीयूष श्रीवास्तव बुलंदशहर के एसएसपी थे। वैभव कृष्ण ने 18 मई को जिले की कमान संभाली थी। शुक्रवार को हुई वारदात के बाद उनकी जानकारी में ये दोनों मामले सामने आए। सूत्रों के मुताबिक जब हल्की धाराओं में मुकदमा दर्ज करने के बारे में संबंधित अफसरों से पूछा गया तो उन्होंने बताया, ऐसा तत्कालीन एसएसपी व अन्य अधिकारियों के कहने पर किया गया। अब डीजीपी मुख्यालय इन तथ्यों की पड़ताल करा रहा है। 


हो जो भी लेकिन यूपी के बुलंदशहर में दिल्ली-कानपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर बंधक बनाकर जिस तरह मां-बेटी से गैंगरेप और लूटपाट की गयी वह कोई पहली घटना नहीं है। इसके पहले भी केवल सालभर में वर्ष 2015 में एक-दो नहीं बल्कि 573 से भी अधिक गैंगरेप की दिल दहलाने देने वाली खौफनाक घटनाएं सामने आ चुकी हैं, जो देश के अन्य राज्यों से अधिक है। यूपी में महिलाएं कितना सुरक्षित है बुलंदशहर में शर्मसार कर देने वाली घटना खुद गवाही दे रही है। एनसीआरबी के आकड़ों के मुताबिक यूपी में रोजाना बलात्कार की 10-15, लूट की 15-20, हत्या की 16-20 घटनाएं सामने आ रही है। बलात्कार के अन्य राज्यों के मुकाबले सबसे ज्यादा वारदातें यूपी में ही हुई है। साल 2015 में बलात्कार के कुल 3025 जबकि साल 2014 में 3467, वर्ष 2013 में 3050 व वर्ष 2012 में 1963 घटनाएं बलातकार की हुई है। जबकि बलातकार की कोशिश के वर्ष 2014 में 3605 व वर्ष 2013 में 3247 और यौन शोषण के वर्ष 2014 में 4435 घटनाएं हुई है। अपहरण जैसे अपराध में यूपी देश में टाॅप पर है। देश में होने वाले अपहरण के 60 फीसदी वारदाते केवल यूपी में हुई है। 2014 में महिलाओं व युवतियों के अपहरण के 12321 व वर्ष 2013 में 11138 वारदाते हुई। ताजुब्बत इस बात है कि कानून के रखवाले पुलिस वाले ही आम आदमियों के भक्षक बन गए है। 2014 में पुलिसिया हिरासत में बलातकार के सबसे ज्यादा वारदाते यूपी में हुई। आंकड़ों के मुताबिक पुलिस हिरासत में 179 से अधिक महिलाओं का बलातकार और 536 से अधिक लोगों ने टार्चर से आत्महत्या कर ली। जबकि हत्या के 2014 में 5150, वर्ष 2013 में 5047 व वर्ष 2012 में 4966 वारदातें हई है। कत्ल की कोशिश की वर्ष 2014 में 5223, वर्ष 2013 में 5259 व वर्ष 2012 में 4811 घटनाएं हुई है। दंगा के वर्ष 2014 में 4438 व 2013 में 6080 वारदाते हुई है। 

हद तो तब हो गयी खुद पुलिस सपा के माफिया जनप्रतिनिधियों के आगे पूरी तरह से दम तोड़ दिखी। सवाल यह है कि क्या यूपी में जंगलराज है? यूपी के गुंडों में पुलिस का खौफ क्यों नहीं? हाइवे पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं? यूपी में महिलाओं की सुरक्षा की गारंटी देगा कौन? गुंडो पर सख्त कार्रवाई क्यों नहीं? गुंडों पर अखिलेश सरकार की लगाम क्यों नहीं? अपराधियों को क्या सपाई जनप्रतिनिधियों का संरक्षण हैं? यूपी में महिलाएं क्या घर से निकलना छोड़ दें? निर्भया कांड के बाद क्या यूपी पुलिस ने सबक नहीं लिया? वैसे भी सरकार बनते ही अखिलेश का दावा था कि कानून व्यवस्था उनकी पहली प्राथमिकता होगी, लेकिन मामला ठीक उसके उलट है। हाल यह है कि सुबह का घर से निकला व्यक्ति शाम को घर तक पहुंचेगा या नहीं लोगों में संशय बना हुआ है। अखिलेश को इस सवाल का जवाब देना ही होगा कि ऐसा बर्बर आपराधिक गिरोह राष्ट्रीय राजमार्ग पर क्यों सक्रिय था? पुलिस के मुताबिक यह किसी घूमंतू गिरोह द्वारा अंजाम दी गई वारदात है। यदि इस दुष्कृत्य को किसी घूमंतू गिरोह ने अंजाम दिया तो इसका यह मतलब नहीं कि पुलिस अपना पल्ला झाड़ ले। आज के युग में ऐसे घूमंतू गिरोहों का तो कोई अस्तित्व ही नहीं होना चाहिए जो भेड़ियों के झुंड में तब्दील हो गए हों। सवाल यह है कि ऐसे किसी गिरोह पर पहले ही लगाम क्यों नहीं कसी जा सकी? वे इतने दुस्साहसी कैसे हो गए कि राष्ट्रीय राजमार्ग पर इस तरह की वहशी वारदात को अंजाम दे सकें? बड़ी घटनाओं के बाद अक्सर निलंबन की कार्रवाई होती है। जिम्मेदार अधिकारियों के निलंबन को कठोर कार्रवाई के तौर पर प्रचारित किया जाता है, लेकिन सच्चाई यह है कि ऐसे निलंबन कठोर कार्रवाई के दायरे में नहीं आते। घटना की जांच के साथ ही कोई जांच पुलिस अधिकारियों को लेकर भी होनी चाहिए और यदि वे दोषी पाए जाएं तो उन्हें कठोर दंड का भागीदार भी बनाया जाना चाहिए। दोषी मिलने पर उनके खिलाफ भी रपट दर्ज होनी चाहिए। 




---सुरेश गांधी ---

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