- सम्मेलन से जनजीवन को ठप्प करने वाले विमुद्रीकरण के तुगलकी फरमान वापस लेने की उठी मांग.
- प्रो. भारती एस कुमार के नेतृत्व में स्वागत समिति ने किया अतिथियों का स्वागत.
पटना 14 नवबंर 2016, ऐपवा के दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में अपने वक्तव्य के दौरान ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी ने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार ने मुद्रा का विमुद्रीकरण करके गरीबों को और खासकर महिलाओं के ऊपर एक और हमला किया है. यह कालाधन को वापस लाने की कोशिश नहीं है, बल्कि लोगों का पैसा कारपोरेट घराने के कब्जे में डालने का खेल है. इसका हम जोरदार प्रतिकार करते हैं और ऐपवा के सम्मेलन के जरिए इस तुगलकी फरमान को वापस लेने की मांग करते हैं. ऐपवा की राष्ट्रीय सचिव कविता कृष्णन ने अपने संचालन के दौरान कहा कि महिला आन्दोलन और जन आन्दोलनों के लिए बहुत ही चुनौती पूर्ण समय में हम ऐपवा का 7वाँ राष्ट्रीय सम्मेलन कर रहे हैं। महिलाओं और जनता द्वारा संघर्षों में जीते अधिकारों पर केन्द्र सरकार और शासक भाजपा एवं आर.एस.एस. की ताकतें आज चैतरफा हमला बोल रही हैं। आन्दोलनों के रास्ते समाज में विकसित हुई प्रगतिशील चेतना को पीछे धकेलने का काम ऐसी ताकतें कर रही हैं। वे सामाजिक और राजनीतिक विमर्श में जहर घोल रही हैं और विभाजनकारी, नफरत से ओतप्रोत प्रतिगामी विचारों को ‘सामान्य’ और यहां तक कि ‘राष्ट्रवादी’ विमर्श के रूप में स्थापित करने की कोशिशें कर रही हैं।
अतिथियों का किया गया सम्मान
स्वागत समिति की अध्यक्ष प्रो. भारती एस कुमार ने सभी अतिथियों का स्वागत किया. स्वागत समिति की ओर से माया भट्टाचार्य, मोना झा, दीप्ति कुमारी, मीरा दत्त आदि ने मोमेंटो प्रदान करके देश के विभिन्न कोनों से आई महिला हस्ताक्षरों को सम्मानित किया. सम्मानित होने वाले प्रमुख नामों में 1. नीलम कटारा ( उत्तरप्रदेश: अपने बेटे नीतीश कटारा, जो आॅनर कीलिंग में मारे गये थे, उनके न्याय के लिए संघर्ष का नेतृत्व किया. ) 2. नताशा राथर ( कश्मीर: युवा कार्यकर्ता, जो 1991 के कुनान पोशपोरा में महिलाओं के साथसेना के जरिए गैंगरेप के पीड़ितों के न्याय की लड़ाई का नेतृत्व कर रही हैं, पुस्तक भी लिख चुकी हैं). 3. निर्झरी सिन्हा (गुजरात): 2002 में राज्य प्रायोजित दंगे में शिकार लोगों के लिए न्याय, फर्जी मुठभेड़ में मारे गये इशरत जहां, कौसर बी, सोहराबुद्दीन आदि के न्याय की लड़ाई लड़ चुकी हंै. ऊना दलित आंदोलन से भी नजदीक का संबंध है.) 4. विद्या दिनकर (मंगलूरु): बजरंग दल, संघ गिरोह द्वारा महिलाओं पर नैतिक पहरेदारी, धमकी आदि का सामना करते हुए संघर्ष करती रही हैं. 5. एडवोकेट आशा (केरला): महिलाओं के अधिकारों के लिए कार्यरत रही हैं. 6. संजीला घिसिंग (दार्जीलिंग, डेमोक्रेटिक रिवोल्यूशनरी वीमेन्स फेडरेशन की नेता) 7. रति राव, ऐपवा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, मैसूरु, वैज्ञानिक और 8. काॅ. मीरा को सम्मानित किया गया.
वक्ताओं के भाषण का प्रमुख अंश
नीलम कटारा: ‘आॅनर कीलिंग’ के खिलाफ लंब समय से संघर्षरत उत्तरप्रदेश की नीलम कटारा ने कहा कि आॅनर या स्वाभिमान तो उनका जाता है, जिनकी हत्या कर दी जाती है. जो इस तरह की घटनाओं को अंजाम देते हैं, उनका क्या जाता है? उन्होंने कहा कि उनके अपने लड़के नीतीश कटारा की 2002 में ‘आॅनर कीलिंग’ हुई थी. यूपी के अपराधी नेता डीपी यादव की बेटी के साथ उनका रिश्ता था, तो डीपी यादव के बेटों ने उनकी हत्या कर दी. युवाओं के अपनी मर्जी से जाति, धर्म के बंधनों को तोड़ते हुए जीवनसाथी चुनने का अधिकार एक मानवाधिकार है, और इससे उन्हें कोई वंचित नहीं कर सकता. लेकिन प्रशासन और पुलिस का जो रवैया रहता है, एक तरह से ‘आॅनर कीलिंग’ करने वालों का ही साथ देती है, इसपर कड़ी कार्रवाई की जरूरत है और इसके खिलाफ सख्त कानून बनाये जाने की जरूरत है. लेकिन आज तक इसपर कोई कानून नहीं बना. यह बेहद दुख का विषय है. विदित है कि अपने बेटे की हत्या के उपरांत नीलम कटारा अपने बेटे के न्याय के लिए संघर्ष में लगी हैं और आॅनर कीलिंग के खिलाफ युवाओं के अपने जीवनसाथी चुनने के अधिकार के संघर्श की अगली कड़ी में रही हैं. हाल में 2016 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया, जिसमें नीतीश कटारा के हत्यारों को कड़ी सजा सुनाई गयी.
नताशा राथर: कश्मीर में बलात्कार पीड़ितों के न्याय के लिए संघर्षरत कश्मीरी युवती नताशा राथर ने कहा कि कश्मीर की महिलायें हर दिन भीषण त्रासदी झेल रही हैं. यौन उत्पीड़न व हिंसा की शिकार हो रही हैं. लेकिन उन्हें न्याय नहीं मिल रहा है. कश्मीर पर सबको अपनी राय देने का अधिकार है, केवल कश्मीरियों को नहीं है. न्याय न मिलना, इस पर जो पीड़ा है, जो आक्रोश है, महिलाओं का, बिहार में कश्मीर में दिल्ली में हर जगह देखा जा रहा है, लेकिन कश्मीर में बीसियों साल तक न्याय नहीं दिया जाना और बलात्कारी को सम्मानित किया जाना कश्मीरियों के साथकैसा न्याय है. आज कश्मीर में एक बार फिर पिछले 100 दिनों से कई लोगों की हत्या कर दी गयी है और कई हजार लोगों की आंखें चैपट कर दी गयी हैं. विदित है कि 1991 में सेना के जवानों ने कश्मीर के कुनान पोशपारा गांवों में रेड के बहाने पूरे गांव की महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया था. उन्हें न्याय से वंचित रखा गया, न्याय नहीं मिला. 2012 में जो दिल्ली गैंग रेप में पूरे देश और कश्मीर में भी हुआ. नताशा और अन्य 4 कश्मीरी युवतियांें आपस में चर्चा किया, एक दूसरे से पूछाा, क्या तुम्हें कुनान पोशपोरा याद है? तो वहां से, उन्होंने अन्य कई कश्मीर की 50 महिलाओं के साथ मिलकर कोर्ट में पीआईएल दायर किया और नए सिरे से न्यायिक लड़ाई शुरू हुई. इन पांच युवतियां मिलकर एक किताब - क्या तुम्हें कुनान पोशपोरा याद है?
निर्झरी सिन्हा (गुजरात) 2002 में राज्य प्रायोजित दंगे में शिकार लोगों के लिए न्याय, फर्जी मुठभेड़ में मारे गये इशरत जहां, कौसर बी, सोहराबुद्दीन आदि के न्याय की लड़ाई लड़ी है. ऊना दलित आंदोलन से भी नजदीक का संबंध है. उन्होंने आज के अपने वक्तव्य में कहा कि पहले के जमाने में 2 का 5 होता था, मोदी राज में पिछले 4 दिनों से 5 का 2 हो गया है. गुजरात के जनसंघर्ष मंच की संस्थापकों में से हैं. मुकुल सिन्हा के साथ इन्होंने गुजरात में दंगा पीड़ितों के न्याय की लड़ाई और कठिन परिस्थितियों, सांप्रदायिक हमला का सीधा हमला झेला और मुकाबला किया. 2004 में इशरत जहां का फर्जी मुठभेड़ में मारी गयीं, 2005 में सोहराबुद्दीन शेख को फर्जी मुठभेड़ में मारा गया, उनकी पत्नी कौसर बी जो हत्या की गवाह थीं, को बलात्कार करके हत्या की गयी. इन मामलों में न्याय के संघर्ष में आज तक जारी रखे हैं, उनमें सरकार की तमाम दमन व दबाव को झेलते हुए निर्झरी सिन्हा व जनसंघर्ष मंच अगली कतार में है. शुरू से ही यह जनसंघर्ष मंच दलितों के लिए जमीन के सवाल पर, मजदूरों के अधिकारों के सवाल पर संघर्षरत रहे हैं. जिग्नेश मेवाणी की शुरूआत इसी संगठन से हुई है. हाल में उना आंदोलन उसके संगठकों में एक रहीं.
विद्या दिनकर (मंगलूरु) बजरंग दल, संघ गिरोह द्वारा महिलाओं पर नैतिक पहरेदारी, धमकी आदि का सामना करते हुए संघर्ष करती रही हैं. उन्होंने कहा कि संघी ताकतों से डरने की कत्तई जरूरत नहीं है, बल्कि ऐसी ताकतों के खिलाफ एकताबद्ध होकर संघर्ष की जरूरत है.
शहीदों एवं गुजर गये साथियों को दी गयी श्रद्धांजलि
इसके पूर्व आज 12 बजे अपराह्न ऐपवा का दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन आज से स्थानीय भारतीय नृत्य कला मंदिर में आरंभ हो गया है. सम्मेलन में देश के विभिन्न कोनों से संघर्षशील महिलाओं के अलावा प्रमुख महिला हस्ताक्षरों का जुटान हुआ है. इस अवसर पर ऐपवा की युवा नेत्री रमा गैरोला के नाम पर भारतीय नृत्य कला मंदिर के पूरे परिसर को रमा गैरोला का नाम दिया गया है. भवन का नाम प्रख्तया लेखिका महाश्वेता देवी के नाम पर तो मंच का नाम गीता दास के नाम पर रखा गया है. झंडोतोलन के साथ सम्मेलन आरंभ हुआ. भोजपुर की वरिष्ठ महिला नेता मीना देवी ने झंडोतोलन किया. उसके बाद शहीद व मृत साथियों को श्रद्धांजलि दी गयी. भोजपुर आंदोलन के चर्चित नेता व क्रांतिकारी किसान आंदोलन के जनक जगदीश मास्टर की पत्नी कमलेश्वरी कुंवर, रमा गैरोला, महाश्वेता देवी, गीता दास, चिंता सिंह, गीता कौर, अजंता लोहित, अपर्णा त्यागी, सियामनी मुखिया मंजू देवी, अग्नि, शीला, लहरी आदि साथियों को श्रद्धांजलि दी गयी.

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें