2016 में भाजपा के खिलाफ दिखा दलित-गरीबों, मजदूर-किसानों का देशव्यापी गुस्सा. - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 31 दिसंबर 2016

2016 में भाजपा के खिलाफ दिखा दलित-गरीबों, मजदूर-किसानों का देशव्यापी गुस्सा.

  • रोहित वेमुला हत्याकांड से लेकर नोटबंदी तक जनता पर किए गए लगातार हमले.
  •  बिहार में दलित-गरीबों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों की हत्या-प्रताड़ना का वर्ष रहा 2016 
  • नये साल में भाजपा को परास्त करने और लोकतंत्र व सामाजिक बदलाव के संघर्ष को आगे बढ़ाने का लें संकल्प.

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पटना 31 दिसंबर 2016, भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल और अखिल भारतीय खेत व ग्रामीण मजदूर सभा के राष्ट्रीय महासचिव काॅ. धीरेन्द्र झा ने कहा है कि 2016 का साल भाजपा व संघ गिरोह द्वारा दलित-गरीबों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों पर बर्बर हमले, देश में आर्थिक आपातकाल थोपने के खिलाफ जनता के विभिन्न तबकों के जोरदार संघर्षों साल रहा है. रोहित वेमुला की हत्या से लेकर, जेएनयू पर हमले, कश्मीर में लोकतंत्र पर हमला, गुजरात में दलितों पर बर्बर दमन और साल के अंत में नोटबंदी के जरिए जनता के हक-अधिकार को कुचलने की लगातार कोशिशें की गयीं. भाजपा द्वारा लोकतांत्रिक संस्थाओं को नष्ट कर देश में तानाशाही स्थापित करने की कोशिशों को करारा जवाब दिया गया. आज देश की जनता भाजपा के असली चेहरे को बखूबी समझ चुकी है. उन्होंने कहा कि आज नोटबंदी ने गरीबों, मजदूरों, किसानों और आम नागरिकों की कमर तोड़ दी है. रोजी-रोजगार की तलाश में बिहार के मजदूर दूसरे राज्यों मंे पलायित होते रहे हैं, लेकिन नोटबंदी के बाद वे वापस बिहार लौट रहे हैं. जहां कोई काम नहीं है. रोजगार ठप्प पड़ गये हैं और गरीबों की हालत बेहद नाजुक हो गयी है. खेती भी मारी गयी है. चारो तरफ हाहाकार मचा हुआ है. यह वही तबका है, जिसने भाजपा के खिलाफ नीतीश को वोट किया था. लेकिन दुख व संकट के वक्त उनके पक्ष में खड़े होने की बजाए नीतीश जी भाजपा के सुर में सुर मिलाते दिखते हंैं. यह बिहार की जनता के साथ धोखा नहीं तो क्या है?

नेताओं ने कहा कि 2016 का वर्ष देश के स्तर पर दलित जागरण के लिए चर्चित रहा. गुजरात में दलितों के ऊपर ढाये गए जुल्म ने राष्ट्रव्यापी बहस को जन्म दिया. भाजपा दलितों की दुश्मन नंबर एक है, इसमें किसी को शक नहीं है. लेकिन ठीक जिस समय गुजरात में ऊना घटित हो रहा था, बिहार में मुजफ्फरपुर में एक दर्दनाक घटना को अंजाम दिया गया. दो दलित युवकों के मुंह में सामंती ताकतों ने पेशाब कर किया और उन्हें पूरी तरह जलील किया. भूमि अधिकार का संघर्ष करते हुए साल 2016 में कई माले व वामपंथी कार्यकर्ताओं और दलित-युवकों की हत्या की गयी. हाल ही में, सहरसा में चमरखला की जमीन को लेकर सामंती-अपराधियों के हमले में चानो राम व वकील राम की हत्या कर दी गयी. बेगूसराय में महेश राम, रामप्रवेश राम, गारो पासवान, राजाराम पासवान, अनिता देवी; दरभंगा में जगमाया देवी व हीरा पासवान; नालंदा में पुट्टु मांझी, सिवान में माले नेता संजय चैरसिया, भोजपुर के प्रखर किसान नेता राजेन्द्र महतो आदि की बर्बर तरीके से हत्या कर दी गयी. नवादा के अकबपुर के कझिया गांव में गरीबों की 150 झोपड़ियां आग के हवाले कर दी गयी. तो अररिया में दलित समुदाय के 10 लोगों पर तेजाब से हमला किया गया. इन घटनाओं के पीछे भूमि का संघर्ष ही रहा है. भागलपुर से लेकर पटना तक दलित-गरीबों के ऊपर बर्बर जुल्म ढाये गए. भागलपुर में वास-आवास की जमीन की मांग कर रहे दलितों-गरीबों के दमन, चंपारण में बेनामी जमीन पर बसे गरीबों को उजाड़ने के खिलाफ आंदोलनरत माले नेताओं की गिरफ्तारी, राजधानी पटना में मांझी जाति के बेदखल गरीबों पर बर्बर पुलिसिया दमन आदि घटनायें लगातार जारी रही हैं. नीतीश कुमार 7 निश्चय की जितनी जुगाली कर लें, वास्तविकता में सामंती-अपराधियों ने गरीबों को जमीन से बेदखल करने का अभियान छेड़ रखा है और सरकार की बोलती बंद है. 

दलितों के साथ-साथ अल्पसंख्यक समुदाय को भी लगातार हमलों का शिकार होना पड़ा है. सारण जिले में सांप्रदायिक उन्माद की घटना दिल दहला देने वाली थी और बेहद चिंताजनक. इस सांप्रदायिक उन्माद में भाजपा के साथ-साथ राजद का सामाजिक आधार भी दंगे-उत्पात में शामिल था. दशहरा-मुर्हरम के समय भोजपुर के पीरो से लेकर सहरसा तक सांप्रदायिक उन्माद की कई घटनाओं को अंजाम दिया गया. जाहिर है कि इसके निशाने पर अल्पसंख्यक समुदाय के लोग थे. साल बीतते-बीतते वैशाली जिले से भी सांप्रदायिक उन्माद की घटना का समाचार मिल रहा है. महिलाओं पर हमले की नई श्रृंखला खड़ी हो गयी है. राजद-जदयू-कांग्रेस-भाजपा इन तमाम पार्टियों से जुड़े प्रतिनिधियों पर बलात्कार-छेड़खानी के आरोप लगे. चंपारण में महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया. अपराध की घटनाओं में तेजी से बढ़ोतरी हुई और आम लोगों का जीवन एक बार फिर से मुश्किल में दिख रहा है. नेताओं ने कहा कि नये साल में सामंती-अपराधियों के मनोबल को पीछे धकेलते हुए लोकतंत्र व सामाजिक बदलाव के संघर्ष को आगे बढ़ाने का संकल्प लेना चाहिए. हमें उम्मीद है कि नया वर्ष बिहार की संघर्षशील जनता के लिए नई ऊंचाइयों का साल साबित होगा.

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