मधुबनी विशेष : तिरहुत सरकार की पहली राजधानी भौड़ागढ़ी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।


शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

मधुबनी विशेष : तिरहुत सरकार की पहली राजधानी भौड़ागढ़ी

  • (वर्त्तमान में मधुबनी का पुलिस लाइन)

tirut-first-capital-bhaudagadi
भौड़ागढ़ी, तिरहुत सरकार की पहली राजधानी थी और करीब 200 साल (1760तक) तिरहुत   प्रभुत्व का अदभुत केंद्र है । भारत में खंडवाला राजवंश को छोड कर किसी राजवंश के पास यह आधिकारिक जानकारी नहीं है कि उसका पहला डीह कौन सा है। तिरहुत सरकार की पहली राजधानी भौडागढी का इतिहास अब तक अनजाना सा ही है। मुगल बादशाह ने गरीब पंडित महेश ठाकुर के पांडित्य को देखकर तिरहुत का राज 27 मार्च 1556 को दिया था, लेकिन महेश ठाकुर जब तक राज पाट समझते 1559 में उनका निधन हो गया (#1,  म.म. महेश ठाकुर, 1556-1559 )। महेश ठाकुर के निधन के बाद  उनके 5 बेटे में सबसे बडे पुत्र रामचंद्र ठाकुर ने राजा बनने से इंकार कर दिया, तब उनके दुसरे पुत्र गोपाल ठाकुर खंडवाला कुल के दुसरे राजा बने।  उन्होंने करीब 12 वर्षो तक राजा के रूप तिरहुत पर राज किया  (#2, म.म. गोपाल ठाकुर, 1569-1571) । उनके निधन के बाद उनके पुत्र ज्योतिर्विद हेमागंद ठाकुर (ग्रहणमालाकार) ने तीसरे राजा के रूप में राजगद्दी संभाली। लेकिन कर नहीं देने कारण उन्हें प्रताडीत होना पड़ा और उन्होंने बाद में इसके कारण राजगद्दी त्याग दी । इसी समय उन्होंने ग्रहणमाला का निर्माण किया जिसके कारण उन्हें इस इस समस्या से मुक्ति मिली (#3, ज्योतिर्विद हेमागंद ठाकुर, 1571-1572) ।  ज्योतिर्विद हेमागंद ठाकुर के गद्दी छोड़ने के बाद महेश ठाकुर के तीसरे बेटे म.म.अच्युत ठाकुर (वैयाकरणकेसरी) को सिंहासन मिला और वो राजवंश के चौथे शासक बने । लेकिन इन्‍हें भी पुत्र नहीं हुआ और अल्पायु में ही निधन हो गया  (#4, म.म. अच्युत ठाकुर, 1572-1573) । इसके बाद म.म.महेश ठाकुर के चौथे पुत्र परमानन्द ठाकुर(राजर्षि) राजा बने और उन्होंने करीब 10 वर्षो तक राज किया (#5, परमानन्द ठाकुर,1573-1583) । 

राजा परमानन्द ठाकुर के 1583 में निधन के बाद म.म.महेश ठाकुर के 5 बेटे में सबसे छोटे बेटे  म.म.शुभंकर ठाकुर राजकाज संभालने को तैयार हुए। इसी दौरान उन्‍हें डीह बदलने की सलाह मिली,  वो भौडग्राम(ग्राम- राजग्राम, अंचल-पंडौल, जिला- मधुबनी) से भौड़ागढ़ी (वर्तमान में मधुबनी जिला का पुलिस लाइन) आ गये और यहां अपनी नूतन राजधानी  बनवाया । उन्‍होंने राज में लगान को नियमित करना शुरु किया और आसपास के राजवारे सक्रिय होने लगे। म. म. सुभंकर ठाकुर ने करीब  34  तक राज किया, उनका 34 वर्षो का कार्यकाल खंडवाला कुल के किसी भी शासक का दूसरा सबसे बड़ा कार्यकाल कहलाया (#6, म.म.शुभंकर ठाकुर, 1583-1617) । उनके निधन के बाद 7 भाइयों में सबसे बड़े बेटे  म.म. पुरुषोत्तम ठाकुर पिता की जगह राजा बने। 

1623 में पडोसी राज्‍य नेपाल ने तिरहुत पर आक्रमण कर दिया। इस दौरान तिरहुत सरकार पुरुषोत्तम ठाकुर वीरगति को प्राप्‍त हुए। खंडवाला कुल में वो अकेले राजा हैं, जो युद्ध के दौरान मारे गये (#7, म.म.पुरुषोत्तम ठाकुर, 1617-1623) ।  पुरुषोत्‍तम ठाकुर के निधन के बाद उनके अनुज और  म.म.शुभंकर ठाकुर के चौथे बेटे  नारायण ठाकुर  ने आठवें राजा के रूप में गद्दी संभाली । करीब 18 वर्षो का शासनकाल शांतिपूर्ण बिता और  सन् 1641 में उनका निधन हो गया (#8, नारायण ठाकुर, 1623-1641) । उनके बाद  उनके बेटे शत्रुघन प्र. लाला ठाकुर ने राजगद्दी नहीं लिया और तब  म.म.शुभंकर ठाकुर के 7 बेटे  में सबसे छोटे बेटे म.म.सुन्दर ठाकुर ने गद्दी संभाली । करीब 26 वर्षो तक राज करने के बाद 1647 में म.म. सुन्दर ठाकुर  का निधन हो गया (#9, म.म.सुन्दर ठाकुर, 1641-1647)। म.म. सुन्दर ठाकुर के बाद उनके पहले पुत्र  म.म. महिनाथ ठाकुर नें खंडवाला कुल के दसवें  राजा के रूप में  राज किया (#10, म.म.महिनाथ ठाकुर, 1667-1690)।  म.म.महिनाथ ठाकुर के बाद उनके छोटे भाई म.म.नरपति ठाकुर ने राजगद्दी संभाली  (#11, म.म.नरपति ठाकुर, 1690-1701) । 

म.म.नरपति ठाकुर के बाद उनके 6 बेटे में सबसे बड़े बेटे राधव सिंह ने खंडवाला कुल के 12वें    शासक के रूप में गद्दी संभाली।  खंडवाला कुल के  शासक राजा राधव सिंह जब तिरहुत के सिंहासन पर बैठे तो सन् 1701 से 1739 के दौरान राजा  राधव सिंह ने तिरहुत का  न केवल सीमा विस्‍तार किया, बल्कि भौड़ागढ़ी में नए महल और किले का भी निर्माण कराया। वर्तमान महल उसी नींव पर बना है, कहा जाता है कि यह बिहार में जमीन के ऊपर बना सबसे पुराना महल है। इसकी नींव तो 1739 के पूर्व की है, लेकिन पुनरुद्धार के बाद का  इसका वर्तमान स्‍वरूप भी 1880 के आसपास का है। सन्  1939 तक खंडवाला कुल के शासक के रूप में उन्होंने करीब 38 वर्षो तक राज्य संभाला जो खंडवाला राजवंश  के किसी भी  एक शासक का तिरहुत पर सबसे लम्बा  शासनकाल रहा (#12, राजा माधव सिंह, 1701-1739) ।  राजा राधव सिंह के बाद उनके बड़े पुत्र राजा विष्णु सिंह ने करीब 4 वर्षो तक राज किया, उनका निधन सन् 1743 में हो गया (#13, राजा विष्णु सिंह,  1739- 1743)। राजा विष्णु सिंह के मृत्यु के उपरांत उनके छोटे भाई(अनुज) राजा नरेन्द्र सिंह ने गद्दी0 संभाली। मिथिला का भयानक युद्ध जो "कन्दर्पी- घाट, हरिना" के युद्ध के नाम से जाना जाने लगा वो युद्ध  राजा नरेन्द्र सिंह ने ही जीता था । मिथिलेश राजा नरेन्द्र सिंह माँ काली भगवती के भी बहुत बड़े भक्त थे। महान युद्ध के तुरंत बाद ही उन्होंने रणभूमि(ग्राम-हरिना, प्रखंड-झंझारपुर, जिला- मधुबनी) में माँ काली भगवती का भव्य मंदिर बनवाया जिसका नाम "नरेन्द्र विजया काली" है और यह कमला बलान के  बाएं तटबंध पर है । उनके इस महान और भयानक युद्ध के प्रतिक के रूप में कन्दर्पी-घाट, हरिना में बना " मिथिला विजय स्तंभ" आज वहां है । निःसंतान राजा नरेन्द्र सिंह के निधन के बाद उनकी पत्नी महारानी पद्मावती उनके पार्थिव शरीर के साथ सती हो गई ।  राजा नरेन्द्र सिंह और उनकी महारानी पद्मावती का जहाँ निर्वाण हुआ वो सतिस्थान भौड़ागढ़ी के पास स्थित काली मंदिर के बिलकुल पास ही है (#14, राजा नरेन्द्र सिंह, 1743-1760 )। निःसंतान राजा नरेन्द्र सिंह के बाद उनके दत्तक पुत्र राजा प्रताप सिंह ने राजगद्दी संभाली। 

1762 में राजा प्रताप सिंह ने तिरहुत की राजधानी भौड़ागढ़ी से दरभंगा ले आये। वैसे राजा नरेंद्र सिंह ही दरभंगा में सिंहासन ले जाने की मंजूरी दे चुके थे। 15 अगस्त 1947 को खंडवाला राजवंश का भारत के गणतंत्र में विलय हो गया, परन्तु ठीक 200 साल बाद 1 अक्टूबर1962 को खंडवाला राजवंश के आखिरी राजा कामेश्‍वर सिंह का निधन हो गया। भौडागढ़ी में 110 एकड में फैला राज महल के अलावा खंडवा से लायी गयी काली की प्रतिमा है। साथ ही 20वीं शताब्‍दी में यहां एक छोटा सा एयरपोर्ट का भी निर्माण कराया गया था।

कोई टिप्पणी नहीं: