किसान आंदोलन के वरिष्ठ नेता काॅ. रमेश चंद्र पांडेय की स्मृति में श्रद्धांजलि सभा आयोजित. - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 2 मई 2017

किसान आंदोलन के वरिष्ठ नेता काॅ. रमेश चंद्र पांडेय की स्मृति में श्रद्धांजलि सभा आयोजित.

  • भाजपा को जनांदोलनों के आवेग के जोर से ही पीछे धकेलना संभव: रामजतन शर्मा
  • सांप्रदायिक फासीवाद के उभार के दौर में रमेशचंद्र पांडेय जैसे कम्युनिस्टों का चला जाना बेहद नुकसानदेह: कुणाल


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पटना 2 मई, भाकपा-माले के वरिष्ठ नेता व बिहार के चर्चित व पुराने किसान नेता काॅ. रमेशचंद्र पांडेय के निधन पर आज पटना के आइएमए हाॅल में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया. इसमें माले के वरिष्ठ नेता रामजतन शर्मा, राज्य सचिव कुणाल, पोलित ब्यूरो सदस्य रामजी राय, पूर्व सांसद रामेश्वर प्रसाद, काॅ. केडी यादव, मीना तिवारी, अनिल मणि, उमेश सिंह, कर्मचारी नेता नवल जी, साहित्यकार शेखर, पूर्व विधायक एन के नंदा सहित कई लोगों ने अपने विचार रखे. सभा का संचालन किसान महासभा के राज्य सचिव रामाधार सिंह ने किया. स्मृति सभा को संबोधित करते हुए भाकपा-माले के वरिष्ठ नेता रामजतन शर्मा ने कहा कि काॅ. रमेशचंद्र पांडेय बिहार में माले द्वारा गठित बिहार प्रदेश किसान सभा के संस्थापक नेताओं में थे और नक्सलबाड़ी के उभार के दौर में तब के स्थापित कम्युनिस्ट नेता सत्यनारायण सिंह से बेहद निर्मम वैचारिक संघर्ष चलाते हुए जौहर व काॅ. विनोद मिश्र के नेतृत्व वाली भाकपा-माले से आ जुड़े थे. वे जीवनपर्यंत एक आदर्श कम्युनिस्ट बने रहे और आज हम सबके लिए प्रेरणास्रोत के हैं. उन्होंने कहा कि काॅ. पांडेय ऐसे दौर में हमें छोड़कर गए, जब देश में एक तरफ सांप्रदायिक उन्माद की राजनीति चल रही है, तो दूसरी ओर किसानों पर कई तरह से हमले किए जा रहे हैं. देश में कृषि संकट लगातार बढ़ता जा रहा है और किसानों का जीवन बदतर होता जा रहा है. काॅ. रमेशचंद्र पांडेय किसानों की मुक्ति की लड़ाई लड़ने वाले योद्धा थे, दलित-गरीबों की मुक्ति लड़ाई लड़ रहे थे. इस लड़ाई को और मजबूती से आगे बढ़ाना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

 इस मौके पर माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा कि काॅ. पांडेय कम्युनिस्ट आंदोलन के भीतर की वैचारिक बहसों की उपज थे और सीपीआई व सीपीआइएम होते हुए माले तक पहंुचे थे. उनकी समझदारी थी कि सांप्रदायिक ताकतों को जोड़-तोड़ के जरिए नहीं, बल्कि जनांदोलनों के आवेग से ही पीछे धकेला जा सकता है. लेकिन यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि काफी नुकसान उठाने की बजाए आज भी कुछेक वाम पार्टियां एक बार फिर भाजपा को रोकने के नाम पर कांग्रेस की पिछलग्गू बन रही है. लेकिन इतिहास ने हमें यह सबक दिया है कि कांग्रेस अथवा अन्य दूसरी बुर्जुआ वर्ग की पार्टियों का पिछलग्गू बनकर कम्युनस्टिों को केवल नुकसान उठाना पड़ा है और भाजपा को भी इस तरीके से नहीं रोका जा सकता है. पूर्व सांसद रामेश्वर प्रसाद ने कहा कि काॅ. पांडेय किसानों के नेता थे. आज केंद्र व बिहार सरकार चंपारण सत्याग्रह का जश्न तो मना रही है, लेकिन चंपारण सत्याग्रह की मूल आत्मा को खत्म करने पर तुली हुई है. न तो गरीबों-भूमिहीनों को जमीन मिल रही है, न बटाईदारों का पंजीकरण हो रहा है. ऐसे में काॅ. पांडेय के बताए रास्ते पर और मजबूती से चलने की जरूरत है. चंपारण सत्याग्रह के मूल में जमीन का सवाल था, लेकिन ये सरकारें इन विषयों पर एक शब्द तक बोलती तक नहीं है.


काॅ. मीना तिवारी ने कहा कि 1967 में नक्सलबाड़ी का किसान विद्रोह हुआ और उसकी चिंगारी भोजपुर पहंुची, तो उससे रमेशचंद्र पांडेय अछूते न रह सके. दरअसल उनके बड़े भाई विंदेेश चंद्र पांडेय, रमाकांत द्विवेदी रमता, बबन तिवारी, परमहंस तिवारी, सुराजी तिवारी आदि सीपीआइ-एम के सभी प्रतिष्ठित नेता नक्सलवादी विद्रोह से गहरे तौर पर प्रभावित हुए और सीपीआइ-एम के भीतर इन लोगों ने गंभीर बहस छेड़ दी. भोजपुर में मास्टर जगदीश के नेतृत्व में ‘हरिजनिस्तान’ बनाओ आंदोलन से भी काॅ. पांडेय काफी प्रभावित हुए. भाकपा-माले के प्रति उनका आकर्षण व लगाव काफी गहरा होता गया.  श्रद्धांजलि सभा में विधायक सुदामा प्रसाद, किसान महासभा के राज्य अध्यक्ष काॅ. विशेश्वर प्रसाद यादव, सरोज चैबे, शशि यादव, कृपा नारायण सिंह, गोपाल रविदास, मधु,  आदि उपस्थित थे.

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