विशेष : नीतियों से मुक्ति ने दिया खुद को साबित करने का मौका - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 30 अप्रैल 2018

विशेष : नीतियों से मुक्ति ने दिया खुद को साबित करने का मौका

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सुशीला शेट्टी पाटिल कर्नाटक के धारवाड़ जिले के धारवाड़ तालुका के नरेन्द्र पंचायत में अध्यक्ष के तौर पर काम काज संभाल रही हैं। सुशीला एस.एस.एल.सी. (दसवीं के बराबर) तक पढ़ी हैं। इनकी उम्र 47 वर्ष है व परिवार में पति व तीन बच्चों को मिलाकर कुल पांच सदस्य हैं। परिवार में आमदनी का मुख्य खेती है। सुशीला का एक बेटा भारतीय फौज में नौकरी करता है।  शिक्षा व स्वच्छता अभियान के मामले में धारवाड़ एक प्रगतिशील जिला है। 2011 की जनगणना के अनुसार जिले के धारवाड़ तालुका में शिक्षा का दर 72.13 प्रतिशत था जिसमें महिलाओं का शिक्षा दर 55.12 प्रतिशत था। नरेन्द्र पंचायत की कुल जनसंख्या तकरीबन 14000 है जिसमें महिलाओं की जनसंख्या तकरीबन 48 प्रतिशत है। 
                      
सुशीला लगातार 2010 से नरेन्द्र ग्राम पंचायत की अध्यक्ष हैं। पहले सुशीला के पिता नरेन्द्र ग्राम पंचायत के अध्यक्ष थे। 2010 में भी सुशीला ने ग्राम पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव जीता था। 2010 और 2015 के चुनाव में नरेन्द्र ग्राम पंचायत की सीट सामान्य महिला के लिए आरक्षित थी। चुनाव में भाग लेने के लिए सुशीला को उनके पति के अलावा, गाँव के कई बड़े बुजुर्गों और उनके माता-पिता ने प्रोत्साहित किया था। गाँव की बेटी होने का फायदा भी सुशीला को मिला। चुनाव प्रचार के दौरान सुशीला के पति ने उनका साथ दिया, उनके लिए चुनाव प्रचार किया और लोगों से वोट देने की अपील की। 
          
ऐसा नहीं है कि नरेन्द्र गाँव पंचायत की अध्यक्ष बनने से पहले सुशीला की जिन्दगी काफी सुखमय और आरामदायक बीती हो। सुशीला ने भी अन्य महिलाओं की ही तरह काफी दिक्कतें और मुश्किलों का सामना किया है। सुशीला अपने पति के साथ अपने ससुराल में रहती थी, मगर पति के दारू पीने की लत और अपने साथ मारपीट होने के कारण सुशीला ने पति का घर छोड़ दिया। अपना ससुराल छोड़ने के बाद सुशीला नरेन्द्र पंचायत में ही रहने लगी और दो साल बाद सुशीला के पति भी उनके साथ इधर ही आ कर बस गए।
       
2010 से पहले नरेन्द्र ग्राम पंचायत में कस्तूरी गंटे, चंद्रन गोवडा, प्रेमा कुमारी देसाई, गंगाम्मा डालेगारा, रायना गोवडा एवं बालना गोवडा ने सदस्य के रूप में काम किया। सुशीला शुरू से ही सामाजिक कार्यों में सक्रिय थीं। 2003 में उन्होंने ‘स्त्री शक्ति कमेटी’ बनाई। इस कमेटी के माध्यम से सुशीला ने लोगों को आपस में जोड़ना शुरू किया और इस कमेटी में जुड़ने से लोगों को काफी फायदा पहुचने लगा। इस कमेटी के माध्यम से सुशीला ने गाँव की महिलाओं को कम दर पर गैस सिलेंडर दिलवाए। कमेटी के द्वारा उन्होंने जरुरतमंद महिलाओं को बिना ब्याज दर के ज़रूरत पड़ने पर कर्ज भी दिलवाया जिसकी वजह से लोगों के बीच और खासतौर पर महिलाओं के बीच वह काफी लोकप्रिय हुईं। आज इस कमेटी से 150 महिलाएं जुडी हुई हैं। 
                  
सुशीला बताती हैं कि वह गांव की बेटी हैं और अभी तक उन्हें अपने कार्यकाल में किसी भारी विरोध का सामना नहीं करना पड़ा। एक महिला होने के नाते भी नहीं। शायद यह वजह है कि वह पिछले दो सत्रों से लगातार अध्यक्ष चुनी जा रही हैं। सुशीला एक सकारात्मकता और जोश के साथ अपनी पंचायत के लिए काम करती हैं। सुशीला बताती हैं कि इस पंचायत के लोग बहुत जागरूक हैं । यदि वह सरकार से केवल फण्ड लेकर बैठी रहें और कोई विकास का काम न करें तो उनकी पंचायत के लोग उनसे सवाल करना शुरू कर देतें है कि अभी तक फण्ड का इस्तेमाल क्यों नहीं किया गया?
          
हालांकि पहली बार जब वह अध्यक्ष बनीं थी तो उनको भी दिक्कत हुई थी क्योंकि उनके लिए यह काम नया था। पंचायत के काम को समझने में उन्हें काफी मेहनत करनी पडी थी। समस्या तब और बढ़ गयी थी जब उनकी पंचायत क्षेत्र के चार पंचायत विकास अधिकारी अचानक बदल दिए गए थे । जिसकी वजह से उनको शुरूआती दिनों में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। किन्तु उस मुश्किल घड़ी में उनकी पंचायत के अन्य सदस्यों ने उनको काम समझाने में काफी मदद की। उनकी पंचायत में जब नये पंचायत विकास अधिकारी ने कार्यभार संभाला तो उनके साथ सुशीला ने गाँव के विकास के लिए कई काम किए जिसमें सड़कों को ठीक करवाना, पीने के पानी की सुविधा, पानी की निकासी के लिए नालियों का निर्माण व गाँव में स्कूल की सुविधा को और बेहतर बनाना आदि काम शामिल हैं। 
          
सुशीला गाँव के विकास के लिए नियमित रूप से बैठकों का आयोजन करती हैं। इसमें पंचायत के सभी सदस्य मौजूद रहते हैं। बैठक का मुद्दा होता है कि गाँव में सबसे पहले किस वार्ड में और क्या काम कराया जाना चाहिए? इसके साथ ही कई अन्य मुद्दों पर भी चर्चा होती हैं। सभी निर्णय लेने के बाद ही निर्धारित कामों के बदले कार्य कराने के लिए फण्ड दिया जाता है।
           
लोगों की समस्याओं को सुलझाने के लिए सुशीला आपातकालीन बैठकों के अलावा आम बैठकें और ग्राम सभा का आयोजन भी करती हैं। नरेन्द्र ग्राम पंचायत में हर छठे महीने आम बैठक में गाँव के सभी लोग हिस्सा लेते हैं और अपनी समस्याएं रखते है। इन बैठकों में राजस्व व पुलिस महकमे के अलावा अन्य विभागों से भी लोग मौजूद होते हैं। ज़्यादातर समस्याओं का समाधान इन बैठकों में ही किया जाता है। ग्राम पंचायत में अध्यक्ष ही बैठक में आयी सभी समस्याओं के समाधान के लिए सभी के साथ बातचीत करता है और साथ ही आर्थिक मामलों को भी उसी बैठक में अध्यक्ष के माध्यम से निपटाया जाता है। सुशीला के पंचायत में नियुक्त होने के बाद गाँव को टैक्स वसूलने के लिए एक अधिकारी नियुक्त हुआ था और सुशीला जमा किए गए टैक्स से ही गाँव में विकास कार्यों को अंजाम देती हैं। 
          
कर्नाटक की राज्य स्तरीय पंचायती राज नीतियों में पंचायत चुनावों में प्रतिभागिता के लिए शिक्षा, शौचालय, दो बच्चों की अनिवार्यता तथा समरस जैसी नीतियों में से कुछ भी अभी तक ज़मीनी स्तर पर दिखाई नहीं दिया है जो पंचायत में प्रतिभाग करने की इच्छुक एक निश्चित आयुवर्ग की महिलाओं के लिए बाधा बना हो। कर्नाटक में पंचायती राज चुनावों में महिलाओं का आरक्षण भी 50 प्रतिशत है जो महिलाओं को शासन की मुख्यधारा में आने में मदद करता है। कर्नाटक के कुछ भागों में शिक्षा का स्तर अन्य उत्तर भारतीय राज्यों की अपेक्षा बेहतर है और यहां महिलाओं को चारदीवारी में बंद करने की परंपरा भी नहीं दिखाई पड़ती है। शायद यही वजह है कि सुशीला पाटिल की राह इतनी आसान रही है। सुशीला कहती हैं कि यदि सच में उनके राज्य में दो बच्चों की सीमा वाला कानून होता तो शायद वह चुनाव में प्रतिभाग नहीं कर सकती थीं। कर्नाटक में पंचायत चुनाव लड़ने के लिए कोई बाध्यता नियम नहीं है जो स्थानीय शासन में महिलाओं की भागीदारी को प्रभावित करता हो। महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण शासन में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी में एक अहम रोल अदा कर रहा है और महिलाएं भी पंचायत चुनाव में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही हैं। सुशीला को उम्मीद है कि राज्य सरकार यहां दूसरों राज्यों की तरह पंचायत चुनाव में खड़ा होने के लिए कोई योग्यता नियम नहीं लाएगी जिससे स्थानीय शासन में महिलाओं की भागीदारी प्रभावित हो।





(अन्नापूर्णा)

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