मधुबनी : 1250 रू.मानदेय में दम नहीं 18000 से कम नहीं,एम.डी.एम. - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 2 जून 2018

मधुबनी : 1250 रू.मानदेय में दम नहीं 18000 से कम नहीं,एम.डी.एम.

  • एम.डी.एम.कर्मियों को सरकार समझती है सामाजिक कार्यकर्ता
  • 12 माह के बदले 10 माह का ही थमा देते हैं मानदेय 

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मधुबनी (आर्यावर्त डेस्क) 02 जून,  .भूख एवं कुपोषण को मिटाने एवं ग्रामीण तथा शहरी गरीब परिवारों के बच्चों को स्कूल से जोड़ने के लिए प्रारंभिक विद्यालयों में सरकार द्वारा 2005 से संचालित महत्वांकाक्षी एवं अनूठी मध्याह्न भोजन योजना है.इसे सरजमीन पर सफल संचालन में रसोईया का महत्वपूर्ण भूमिका है.आज इनकी जिंदगी बधुआ मजदूरों से भी बदतर  स्थिति में है. बिहार राज्य विद्यालय रसोईया संद्य के जिला कमिटी के अध्यक्ष अजय कुमार अमर ने कहा कि राजकीय प्राथमिक विद्यालय, राजकीय मध्य विद्यालय,उत्क्रमिक विद्यालय,संस्कृत विद्यालय और मकतब विद्यालयों में मिड डे मिल कार्यक्रम संचालित है. उन्होंने कहा कि राज्य में 2005 से संचालित है.महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाली रसोईया को न तो सरकारी कर्मचारी और न श्रमिक का दर्जा प्राप्त है.इस लिए सरकार बेगार में रसोईयों से कार्य निपटा रही है.शुरूआती दौर में 5 कक्षा तक  उपस्थित छात्रों की संख्या पर ही रसोईयों को प्रति छात्र 50 पै.दिया जाता था.जो महीने में 500 रु.हो जाता था.इसमें 2010 में परिवर्तन कर 1000 रू.मानदेय कर दिया गया.इसके बाद 2015 से 1250 रू.मानदेय कर दिया गया है.एक दिन में 33 रू.पड़ता है.भारतीय नेताओं की सोच के अनुसार रसोईया गरीबी रेखा से ऊपर हैं.हुजूर के द्वारा ही न्यूनतन मजदूरी निर्धारित है.इस दर में रसोईया किधर है?

बिहार राज्य मध्याह्न भोजन कर्मचारी संद्य की राज्यनेत्री अनामिका कुमारी ने कहा कि 45 वें राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन की अनुशंसा के बावजूद भी रसोईयों को प्रतिमाह 18000 रू.वैधानिक मजदूरी के लाभ से वंचित रखा जा रहा है.उन्होंने कहा कि सरकार महिला सशक्तिकरण का जोर-शोर से दावा करती है जबकि एम.डी.एम.रसोईया का विशाल संख्या दलित, अत्यंत पिछड़ा वर्ग,अल्पसंख्यक तथा कमजोर वर्ग की महिलाओं की है जिन्हे अत्यंत कम मानदेय पर काम करना पड़ता है तथा जगह जगह सामाजिक भेदभाव का भी शिकार होना पड़ता है.प्राय: विद्यालय खुलने से पहले तथा विद्यालय बंद होने के बाद तक     बर्तनों की सफाई ,खाना बनाने ,बच्चों को खिलाने ,पोछा लगाने,साफ सफाई करने यानी 6 से 7 द्यंटा हाड़तोड़ मेहनत करते हैं.इसके एवज में विद्यालय के गुरूजनों को मोटी रकम और रसोईया को केवल 1250 रू.मासिक मानदेय मिलता है.वह भी मात्र 10 महीने का मानदेय.मध्य विद्यालय ,तमुरिया की रसोईया वीणा देवी कहती हैं कि हमलोग रिक्स कवर करते हैं.भोजन तैयार होने के बाद रसोईया ही खाना खाती हैं.इसके बाद प्रधानाध्पक टेस्ट करने बाद बच्चे खाते हैं. बिहार राज्य मिड डे वर्कस यूनियन के संयोजक विनोद कुमार ने सरकार से मांग की है कि एम.डी.एम.रसोईया को स्थायीकर श्रमिक का दर्जा दें, तत्काल प्रतिमाह 18000 रू.12 महीनों का वेतन दें, पेंशन,स्वास्थ्य बीमा,मातृत्व अवकाश लाभ, विशेष अवकाश, ग्रेेच्यूटी, भविष्यनिधि,नियुक्ति पत्र, वर्ष में एक जोड़ा ड्रेस, सेवाकाल में मृत रसोईया को 4 लाख रू.अनुदान राशि का भुगतान, अतिरिक्त काम पर रोक , एम.डी.एम.योजना को बड़े कम्पनियों, स्वयं सहायता समूह के हाथों सौंपने की साजिश बंद करने साथ 12 सूत्री मांगों को तुरंत पूरी की जायं.

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