मुंशी प्रेमचन्द की कहानी वाली ईदगाह पर आज भी नमाज अता हुई,हामिद नहीं आया - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा , झंडा ऊँचा रहे हमारा। देश की आज़ादी के 75 वर्ष पूरे होने पर सभी देशवासियों को अनेकानेक शुभकामनाएं व बधाई। 'लाइव आर्यावर्त' परिवार आज़ादी के उन तमाम वीर शहीदों और सेनानियों को कृतज्ञता पूर्ण श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए नमन करता है। आइए , मिल कर एक समृद्ध भारत के निर्माण में अपनी भूमिका निभाएं। भारत माता की जय। जय हिन्द।

रविवार, 17 जून 2018

मुंशी प्रेमचन्द की कहानी वाली ईदगाह पर आज भी नमाज अता हुई,हामिद नहीं आया

premchand-edgaah-and-eed
गोरखपुर, 16 जून, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में हिन्दी कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द ने जिस ईदगाह पर अपनी मशहूर कहानी ईदगाह लिखी थी उस ईदगाह पर शनिवार को 102 साल बाद भी ईद की नमाज अता की गयी, यहां मेला भी लगा मगर मेले में हामिद नहीं था। हामिद प्रेमचन्द का वह कैरेक्टर जिसे ईदी ..पैसा .. मिला और उस ईदी से उसने खाने पीने और खेलने का सामान नहीं खरीदा बल्कि अपने दादी के लिए चिमटा खरीदा था क्योंकि रोटियां पकाते समय उसके दादी की अंगुलियां जल जाती थी। पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर मंडल तथा आस पास के क्षेत्रों में ईद का पर्व हर्षोल्लास के साथ उसी तरह से मनाया जा रहा है। बडे बुजुर्ग बच्चों को ईदी भी दे रहें हैं,लेकिन युवा पीढी इन बुर्जुगों के उस दर्द को नहीं भांप पाती जो दर्द हामिद ने महसूस किया था। यही वजह है कि तीज त्योहारों पर घर के बडे बुर्जुग केन्द्र में आ जाते हैं और वे हर सलाम करने वालों को ईदी के तौर पर कुछ न कुछ आाशीर्वाद देते हैं,लेकिन नयी पीडी उन्हें चिमटा नहीं देती।

पीढी दर पीढी लोगों की सोच बदल रही है इसलिए अब दादी की उंगलिया जलने की पीडा नयी नस्ल महसूस नहीं करती है। नई पीढी मुंशी प्रेमचन्द की कहानियां किताब से पढती है,लेकिन वह नहीं जानती कि प्रेमचन्द गोरखपुर में रहते थे और यहीं बैठकर उन्होंने ईदगाह लिखी थी। दरअसल 107 वर्ष पूर्व गोरखपुर नगर ग्रामीण परिवेश का शहर था और महानगरों में पलने वाली संस्कृति का यहां असर नहीं था लेकिन अब यह महानगर बन गया है। अब शहर में एक नहीं दर्जनों ईदगाह हैं। मेले भी लगते हैं मगर सदभावना और सेवइयों में वह मिठास जो 107 वर्ष पूर्व थी अब दिखायी नहीं देती। पूर्वी उत्तर प्रदेश के जाने माने वरिष्ठ चिकित्सक डा अजीज अहमद ने बताया कि आजादी के बाद तक गोरखपुर के अलीनगर में रहने वाले पुरूषोतम दास अग्रवाल का परिवार, राम लखन चौधरी का परिवार और दूसरे बडे लोग विन्ध्यवासिनी राय, सुखदेव प्रसाद, बिटठलदास और राम नेवाज पान्डेय आदि का परिवार ईदगाहों पर मौजूद होते थे और नमाज पढकर बाहर निकलने पर सबसे पहले उनसे ही मुलाकात होती थी।

डा. अहमद ने बताया कि इन लोगों के साथ उनके मुनीम होते थे जिनके थैले पैसों से भरे होते थे और मस्जिदों के बाहर गरीब मुसलमानों को रकम देकर उनकी ईद के त्योहारों में खुशियां घोल देते थे लेकिन अब ऐसा नहीं होता है। ईदगाह के बाहर निकलिए तो पुलिस फोर्स के लोग होते हैं और सरकारी अमला। इसी बीच गोरखपुर के पुलिस अपर महानिदेशक देवा शेरपा ने बताया कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर , बस्ती तथा देवीपाटन मंडल के 11 जिलो में ईद-उल-फितर का त्यौहार परम्परागत उल्लास के साथ शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न हो गया। ईदगाहों और मस्जिदों के पास आज कडी सुरक्षा व्यवस्था की गयी थी। उन्होंने बताया कि गोरखपुर , कुशीनगर, देवरिया, महराजगंज, सिध्दार्थनगर, संतकबीर नगर, बस्ती, गोन्डा, बहराइच, श्रावस्ती और बलरामपुर जिलो में कहीं से कोई अप्रिय घटना की सूचना अभी तक नहीं है।

कोई टिप्पणी नहीं: