बेगूसराय : परम्परागत गुरु पूजन के लिये लगी श्रद्धालु शिष्यों की भीड़ - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

बेगूसराय : परम्परागत गुरु पूजन के लिये लगी श्रद्धालु शिष्यों की भीड़

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बेगूसराय (अरुण कुमार) 27 जुलाई, गुरु पूर्णिमा के शुभोपलक्ष्य में आज फिर एकबार ग्राम मोहन एघु,पण्डित मुहल्ला,बेगूसराय में परम्परागत गुरु पूजन के लिये लगी श्रद्धालु शिष्यों की भीड़।जगत गुरु स्वामी अच्युतानंद जी महाराज विगत 25/30 वर्षों से इस आयोजन को करने में लाखों रुपये खर्च करते आ रहे हैं।ये खर्च अपना गुरुत्व महिमा का बखान करने के लिये नहीं अपितु शिष्यों के आगमन से भाव विभोर होकर अपने शिष्यों के सुविधा लिये इस आयोजन को पिछले 10/12 वर्षों से लागातार करते आ रहे हैं।जिनका अपना घर गृहस्थी भी है और ये दशमहाविद्याओं की उपासना किये हैं तत्प्श्चात वर्तमान में ये महाकाली के उपासक हैं।श्रद्धालुओं का कहना है कि गुरुदेव जो कुछ भी कहते हैं मन से आशीर्वाद देकर वो पूरा होता है।ऐसा कुछेक व्यक्तियों का कहना है और ऐसे ही व्यक्तियों के सुविधाओं के लिये गुरुदेव इस आयोजन को करवाना शुरू कर दिये हैं।आज के दिन यानी गुरु पूर्णिमा के दिन प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी हजारों की संख्या में गुरु अच्युतानंद के आश्रम पर आए और गुरुपूजन कर आशीर्वाद प्राप्त कर प्रसाद लेकर अपने अपने आवास की ओर प्रस्थान किये।  ये गुरु पूर्णिमा मनाने की परम्परा ऋषि पराशर और सत्यवती पुत्र व्यास के समय से ही शुरु हुआ   होगा क्यों कि आज ही के दिन,आषाढ़ के पूर्णमासी के दिन ही महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था।महर्षि व्यास को वेद व्यास की संज्ञा शायद इसलिये दिया गया होगा क्योंकि इन्होंने ही महाभारत,उपनिषद और पुराणों की रचना की है इसलिये इन्हें वेद व्यास की संज्ञा देना अनुचित नहीं है।इन्हें जगद्गुरु शायद इसीलिये  भी कहा जाता है।सनातन धर्मावलम्बियों में गुरु का स्थान इन्हें ही प्राप्त है,सनातन धर्म मे गुरुओं का स्थान सर्वोच्च माना गया है,इनकी पूजा देवताओं की तरह ही की जाती है उसमें भी देवताओं से पूर्व गुरु पूजन का ही विधान शास्त्र सम्मत है।कहा भी गया है-

गुरु गोविन्द दोऊ ठाड़ हैं,काको लागूँ पांय। बलिहारी गुरु आपणौ दें यह गुड़ बताय।। 

इसीलिये देवताओं की तरह ही पञ्चोपचार या षोडशोपचार यथा सामर्थ्य होता है शिष्यों का,वैसा पूजन करते हैं।गुरु साक्षात ब्रम्हा,विष्णु और महेश के समतुल्य माने जाते हैं।गुरु महिमा अपरम्पार है इसका प्रमाण गुरु द्रोणाचार्य और शिष्य एकलव्य ने साबित कर दिया है,गुरु द्रोण की प्रतिमा बनाकर उनकी पूजा करने के बाद ही धनुर्विद्या का अभ्यास शुरु कर एकलव्य धनुर्विद्या में अर्जुन से भी एक कदम आगे हो गया जिस कारण गुरु द्रोण ने गुरु दक्षिणा में एकलव्य से अँगूठा माँग लिये थे।गुरु द्रोण के जैसा गुरु होने पर क्या कोई उनकी पूजा करेगा ये एक प्रश्न बनकर आज खड़ा हो जाता किन्तु स्वयं गुरु द्रोण ने गुरु महिमा बनी रहे इसलिये भाव विभोर हो अँगूठा लेने के बाद एकलव्य को ये आशीर्वाद भी दिये कि वत्स जाओ तुमने जो गुरु का मान रखा उसके लिये तुम्हें ये आशीर्वाद देता हूँ कि तुम बिना अंगूठे के भी अंगूठे के बाद बाले दोनो अंगुलियों से ऐसा तीरंदाजी करोगे जैसा कि अँगूठे वाले करेंगे।इसे कहते हैं गुरु महिमा,गुरु कृपा,शायद इसीलिये आज भी इस घोर कलयुग में भी गुरु शिष्य परम्परा यथावत कायम है और आगे भी रहेगा।आगे बताते चलूँ की गुरु पूर्णिमा के दिन से ही बरसात का भी पदार्पण विधिवत शुरु होता है।और चातुर्मास भी।चातुर्मास का मतलब आषाढ़ पूर्णिमा या गुरु पूर्णिमा जो भी कहें इसके प्रातः से ही श्रावण माह शिव के लिये,भाद्रपद कृष्ण के लिये,आश्विन माह का दोनो पक्ष कृष्ण पक्ष पितर के लिये,इस पक्ष में पितरों के लिये तर्पण किया जाता है और एकोदिष्ट श्राद्ध पिंडदान का भी विधान शास्त्र सम्मत है। शुक्ल पक्ष भगवती पराम्बा दुर्गा के लिये तथा कार्तिक मास पूरा महीना दोनो पक्ष का एक एक दिन देवी और देवताओं के लिये प्रशस्त है।कार्तिक मास में होनेवाला रामायण मास परायण आश्विन के पूर्णमासी के दिन से ही शुरु हो जाता है जो कार्तिक पूर्णमासी तक अखण्ड रामायण पाठ भी होते रहता है।इसी बीच अमावास्या के रात्रि में लक्ष्मी गणेश पूजन का भी विधान है,इसके बाद भैयादूज,गोवर्धन पूजा, गोवर्धन पूजा में गायों की पूजा की जाती है फिर कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से षष्ठी व्रत की भी शुरुआत हो जाती है,फिर अक्षय नवमी और देवोत्थान एकादशी इसी में बहुत से भक्त जन एकादशी उद्यापन भी करते हैं जिसमें एक बेटी के विवाह तुल्य खर्च वहन करना पड़ता है,उद्यापन कर्ता को।फिर कार्तिक पूर्णिमा में गंगा स्नान का भी अपना अलग महात्म्य है।इसके साथ यह भी जानकारी देता चलूँ की कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा से ही प्रातः कार्तिक स्नान भी शुरू हो जाता है।बेगूसराय स्थित सिमरिया गंगा धाम में लाखों की भीड़ महीने भर के लिये लगी रहती है जो कार्तिक मास मेला के नाम से जग विख्यात है।यहाँ यूँ तो सम्पूर्ण भारत से श्रद्धालुओं की भीड़ लगी ही रहती है खास बात यह है कि यहाँ दरभंगा जो मिथिला की राजधानी है यहाँ से भी और अन्य स्थानों से भी मैथिल समाज पूरे महीने भर के लिये यहाँ कार्तिक स्नान के लिये आकर गंगा तट पर कुटिया बनाकर पूरे महीने भर रहते हैं।यह वही सिमरिया धाम है जहाँ राष्ट्रकवि दिनकर का जन्मस्थान है यहीं राजेन्द्र सेतु भी है और यहाँ कुम्भ मेले का भी आयोजन बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।इस गुरु पूजन के अवसर पर सदर डी एस पी मिथलेश कुमार ने आयोजन उद्घाटन कर्ता के रुप मे डीप प्रज्वलित कर विधिवत कार्यक्रम का उद्घाटन किया साथ ही मुफसिल थाना के बड़ा बाबू लाल मोहन की भी उपस्थिति दर्ज की गई।संचालन कर्ता के रुप में संत महावीरा किंडंगार्टन के प्राचार्य प्रफुल्ल चन्द्र मिश्र ने अपने संचालन और काव्यपाठ से भक्तों से खूब ताली और वाहवाही बटोरी।धन्य धन्य है बेगूसराय की धरती इस धरती को शत शत नमन।

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