- मठ से लेकर मंदिरों तक में उमड़ी आस्थावानों का हुजूम, भजन पर झूमें शिष्य, कराया गया गरीबों को भोजन, जीवन में जागरण और आचरण देते हैं गुरु: स्वामी सरनानंद
गुरु के वंदन का पर्व गुरुपूर्णिमा के मौके पर शहर से लेकर देहात तक पूरे दिन पूर्णिमा की धूम रही। अलसुबह से ही लोग अपने-अपने गुरुजनों के दरबार पहुंचना शुरु हो गए, तो सिलसिला देर रात तक चला। आश्रमों में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने अपने अपने गुरुओं की पाद पूजा वंदना के साथ की। गुरु के मस्तक पर तिलकार्चन किया। इसके बाद गुरु को माला पहनाने, दक्षिणा देने के बाद शीश झुकाकर जीवन में आगे बढ़ने और सफलता का आर्शीवाद लिया। गढ़वाघाट आश्रम में स्वामी सरनानंद जी महराज के दर्शन के लिए मानों रेला उमड पड़ा था। सुबह से ही मेले जैसा माहौल रहा। इसी तरह शहर के अन्य सभी धार्मिक स्थलों पर लोगों के पहुंचने का दौर जारी रहा। सभी लोगों में इस बात की होड़ लगी थी कि चन्द्र ग्रहण का सूतक शुरू होने से पूर्व अपने गुरुजनों की पूजा कर उनसे आशिर्वाद प्राप्त कर लिया जाए। यहीं कारण रहा कि दोपहर से पहले सभी धार्मिक स्थलों पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा।
गढ़वाघाट आश्रम में सवेरे हजारों श्रद्धालुओं ने शीश महल में स्वामी जी का विधि-विधान से पादूका पूजन व आरती किया गया। वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ गणेश पूजन, ब्रह्मा को पूजन कर गुरु महाराज की पादूका पूजन कर वंदन किया गया। स्वामीजी की महाआरती कर समाज देश में खुशहाली की कामना की। स्वामी जी का पूजन-अर्चन करने दिनभर श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहा। आश्रम में श्रद्धा, आस्था व भक्ति का अनूठा संगम दिखा। देश-विदेश से आएं हजारों साधकों, अनुयायियों एवं आस्थावानों ने श्री स्वामी सरनानंद जी महराज को आदरांजलि अर्पित की। फिरहाल, धर्म एवं आस्था की नगरी काशी में पूर्णिमा का दिन गुरुजनों, संतो व स्वामियों के नाम रहा। देवालयों, विद्यालयों से लेकर संत आश्रमों तक शिष्य अपने गुरुओं के पांव पखार उनकी पूजा कर आरती उतारी। जगह-जगह गुरु-शिष्य परंपरा पर आधारित गीत-संगीत के अलावा ‘गुरु देवेभ्यो नमः‘ ‘तस्मै श्री गुरुवे नमः‘ आदि मंत्रोच्चार व जयकारों के बीच जाने-माने संतों व आचार्यों के आश्रमों में गुरु पूजा की धूम रही। पूजा, वंदना, सम्मान और दीक्षा संस्कार का सिलसिला शाम तक चलता रहा। इसके बाद शीश नवाकर आर्शीवाद लिया।
गढ़वाघाट में आर्शीवाद वचन के दौरान श्री स्वामी सरनानंद जी ने कहा, जीवन में जागरण और आचरण देते हैं गुरु। संसार रूपी सागर को पार करने के लिए सद्गुरु की शरण में जाने की आवश्यकता पड़ती है। वैसे भी, भारतीय संस्कृति में कहा गया है कि ब्रह्मा और शंकर जैसा व्यक्ति भी गुरु के बिना संसार से पार नहीं उतर सकता है। गुरु से मिलने वाली दीक्षा की महिमा भी काफी अधिक है। गुरु के उपदेश का प्रभाव उनके प्रति असीम श्रद्धा व विश्वास रखने से हो पाता है। दीक्षा गुरु आध्यात्मिक गुरु होते हैं। माता-पिता के बाद जीवन में गुरु का महत्व सर्वविदित है। शिक्षा का संस्कार हमें अपने गुरुजनों से ही मिलता है। गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों, शिष्यों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है। कहा जाता है कि गुरु के आशीर्वाद से आज सारे काम सिद्ध हो जाते हैं।
(सुरेश गांधी)
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