विचार : पत्रकारिता में ‘राजपूतवाद’ के प्रणेता हैं हरिवंश जी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 9 अगस्त 2018

विचार : पत्रकारिता में ‘राजपूतवाद’ के प्रणेता हैं हरिवंश जी

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हरिबंस नारायण सिंह यानी हरिवंश। राज्‍यसभा के नवनिर्वाचित उपसभापति। अखबार के कार्यालय से राज्यसभा तक की यात्रा। निष्‍कटंक नहीं थी राह। मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार के ‘अंधसमर्थक’ होने का आरोप लगा। नीतीश कुमार के सत्‍ता संभालने के कुछ साल बाद से हर दूसरे साल राज्‍य सभा के लिए होने वाले चुनाव में जदयू से हरिवंश जी के टिकट मिलने की चर्चा होती थी, लेकिन बात उससे आगे नहीं बढ़ पाती थी। नीतीश का भाजपा से पिंड छूटा तो हरिवंश जी 2014 में राज्‍यसभा के लिए चुने गये। उपसभापति के रूप में उनका कार्यकाल 2020 तक होगा। वे नीतीश कुमार की कई यात्राओं के सहयात्री भी रहे। यात्रा की लाइव रिपोर्टिंग में आम जन की भावनाओं में नीतीश का ‘प्रतिबिंब’ दिखाने का पूरा प्रयास। उनकी रिपोर्टिंग कई बार राजनीतिक आकांक्षाओं की गवाह बनती भी दिखी।

हरिवंश जी से हमारी पहली मुलाकात 1996 में हुई थी, जब हम माखनलाल चतुर्वेदी राष्‍ट्रीय पत्रकारिता विश्‍वविद्यालय, भोपाल के स्नातक छात्र के रूप में प्रभात खबर रांची में इंटर्नशिप के लिए गये थे। मैट्रिक के बाद इंटर की पढ़ाई के लिए रांची चले गये। योगदा सत्‍संग कॉलेज, रांची कॉलेज से होते हुए हैदराबाद और भोपाल तक पहुंचे थे हम। भोपाल से प्रभात खबर आये थे। पहली मुलाकात में हमने चरण स्‍पर्श कर प्रणाम करना चाहा था तो उन्‍होंने इसके लिए मना कर दिया था। इसके बाद कई बार कार्यालय में लगातार मुलाकात होती रही। इंटर्नशिप के बाद हम वापस भोपाल चले गये। लेकिन बिहार से कट नहीं पाये थे। 2000 के अंत में हम वापस बिहार लौटे और बिहार के होकर रह गये।

इस दौरान हरिवंश जी और प्रभात खबर को करीब से देखने-समझने का मौका मिला। दो वर्ष प्रभात खबर की ‘दुकानदारी’ भी की। हरिवंश जी ने जब प्रभात खबर का नेतृत्‍व संभाला था, उस समय रांची एक्‍सप्रेस से उनका मुकाबला था। इसी दौर में 1991 में चंद्रशेखर के प्रधानमंत्री बनने के बाद हरिवंश जी पीएम के प्रेस सलाहकार बने। यह उनका पहला बड़ा परिचय था। इसका प्रशासनिक व राजनीतिक लाभ हरिवंशजी व प्रभात खबर को मिला। हालांकि प्रभात खबर को नयी ताकत और ऊर्जा देने में उनकी टीम भावना और झारखंड के मुद्दों की लंबी लड़ाई की बड़ी भूमिका रही। उन्‍होंने झारखंड को लेकर बड़ा आंदोलन खड़ा किया और आदिवासियों के मुद्दों को मजबूती से उठाया।

हरिवंश जी ने मीडिया के क्षेत्र में राजपूतों को काफी तरजीह दी। राजपूतवाद के प्रणेता बने। उन्‍होंने राजपूत युवाओं को काफी मौका दिया और आज विभिन्‍न मीडिया संस्‍थानों के शीर्ष पर बैठे राजपूत हरिवंश स्‍कूल के ही ‘प्रोडक्‍ट’ हैं। उन्‍होंने प्रभात खबर के विभिन्‍न संस्‍करणों के स्‍थानीय संपादक के तौर पर राजपूतों का प्राथमिकता दी। इसके साथ ही विभिन्‍न संस्‍करणों में नियुक्ति में भी राजपूत को प्राथमिकता मिलती रही। इसके साथ ही हरिवंश जी ने पिछड़ों को भी प्रभात खबर में मौका दिया। पिछड़ी जातियों में यादव, कुर्मी, कुशवाहा और बनिया 1990 के बाद तेजी से मीडिया में आने लगे थे। इसकी एक वजह मंडल आंदोलन के बाद उपजी सामाजिक चेतना थी। इस चेतना को भी हरिवंश जी ने मंच दिया। इसका श्रेय भी उन्‍हें ही जाता है।

हरिवंश जी एक प्रयोगधर्मी संपादक रहे हैं। नये-नये प्रयोग से उन्‍हें परहेज नहीं रहा। यही कारण है कि बिहार व झारखंड के बाजार में हिंदुस्‍तान, दैनिक जागरण व दैनिक भास्‍कर जैसे ‘बनियों’ का हरिवंश जी मुकाबला करते रहे और अपनी नयी पहचान के साथ डटे रहे। हालांकि इस मुकाबले में प्रभात खबर ने अपना नारा भी बदल दिया। अब नारा हो गया है- बिहार जागे ... देश आगे।

आज हरिवंश जी राज्‍यसभा के उपसभापति हैं। हरिवंश जी से जब भी मुलाकात होती है, वे हमारी किसी -न-किसी खबर की चर्चा जरूर करते हैं। हम उनकी ‘राजपूतवादी’ पत्रकारिता के घोर समर्थक रहे हैं। वजह साफ है कि कोई व्‍यक्ति जाति के नाम पर ही अपने समाज को लोगों के लिए बेहतर मौका, बेहतर संभावना सृजित कर रहा है तो इसमें गुनाह क्‍या है? संभावना है तो उसका विस्‍तार भी होगा और इस विस्‍तार का लाभ दूसरों को भी मिलेगा। इससे हम भी लाभान्वित रहे हैं। हम हरिवंश जी को नयी जिम्‍मेवारी के लिए बधाई देते हैं।




--वीरेंद्र यादव--

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