विशेष : दरभंगा से अपनी ही रियासत में चुनाव हार गये थे महाराज - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 6 नवंबर 2018

विशेष : दरभंगा से अपनी ही रियासत में चुनाव हार गये थे महाराज

सांसद --- कीर्ति झा आजाद --- भाजपा --- ब्राह्मण
विधान सभा क्षेत्र --- विधायक --- पार्टी --- जाति
गौड़ाबौराम --- मदन सहनी --- जदयू --- मल्लाह
बेनीपुर --- सुनील चौधरी --- जदयू --- ब्राह्मण
अलीनगर --- अब्‍दुलबारी सिद्दीकी --- राजद --- मुसलमान
दरभंगा ग्रामीण --- ललित यादव --- राजद --- यादव
दरभंगा --- संजय सरावगी --- भाजपा --- माड़वारी
बहादुरपुर --- भोला यादव --- राजद --- यादव

2014 में वोट का गणितकीर्ति झा आजाद --- भाजपा --- ब्राह्मण --- 314949 (39 प्रतिशत)
अली अशरफ फातमी --- राजद --- मुसलमान --- 279906 (35 प्रतिशत)
संजय झा --- जदयू --- ब्राह्मण --- 104494 (16 प्रतिशत)

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बिहार की प्रमुख रियासतों में एक था दरभंगा राज। संभवत: सबसे बड़ी रियासत। दरभंगा के महाराजा कामेश्वर सिंह संविधान सभा के सदस्य भी थे। संविधान को अंतिम रूप में उनकी बड़ी भूमिका था। लेकिन इससे भी बड़ा तथ्य यह है कि महाराज कामेश्वर सिंह अपनी की रियासत के तहत आने वाले दरभंगा नार्थ से 1952 में लोकसभा चुनाव हार गये थे। 1952 में दरभंगा के नाम से चार लोकसभा सीट थी। 1957 में यह सीट पहली बार स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में आयी। लेकिन 1957 में दरभंगा से दो सांसद निर्वाचित हुए थे। दोनों कांग्रेस के ही थे। दरभंगा सामान्य सीट से श्रीनारायण दास दूसरी बार निर्वाचित हुए थे, जबकि रामेश्वर साहू दरभंगा अनुसूचित जाति क्षेत्र से निर्वाचित हुए थे। पहले चार लोकसभा चुनाव में इस सीट से कायस्थ ही निर्वाचित होते रहे। 1971 से यह सीट ब्राह्मणों और मुसलमानों के बीच लड़ाई का केंद्र बन गयी है।

राजपरिवार की पहली हार
ब्रिटिश भारत में पहली बार चुनाव 1893 में हुआ था। इस चुनाव में लक्ष्मेश्वर सिंह निर्वाचित हुए थे। इसके बाद अनेक चुनाव में दरभंगा राज परिवार के सदस्य जीतते रहे थे। लक्ष्मेश्वर सिंह के भतीजे महाराज कामेश्वर सिंह चुनाव हारने वाले राजपरिवार के पहले सदस्य थे। लोकसभा चुनाव हारने के बाद महाराज राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए। 

सामाजिक बनावट
दरभंगा यादव, मुसलमान और ब्राह्मणों का प्रभाव वाला क्षेत्र माना जाता है। जनता दल और राजद ने इस सीट पर बराबर मुसलमानों को टिकट देता रहा है। जबकि कांग्रेस और बाद में भाजपा इस सीट से ब्राह्मणों को अपना उम्मीदवार बनाती रही है। इस सीट पर मुसलमान वोटरों की संख्या साढ़े तीन लाख है, जबकि यादव व ब्राह्मण के वोटरों की संख्या तीन-तीन लाख के करीब होगी। सवर्ण जातियों में राजपूत व भूमिहार वोटरों की आबादी एक-एक लाख होगी। इस सीट पर 1952, 1957 और 1962 में कर्ण कायस्थ श्रीनारायण दास निर्वाचित हुए, जबकि चौथी बार भी कायस्थ जाति के सत्य नारायण सिन्हा निर्वाचित हुए थे। लेकिन इसके बाद इस सीट पर कायस्थों का खाता नहीं खुला। शहरी और व्यावसायिक केंद्र होने के कारण माड़वाड़ी और बनियों की आबादी भी काफी है।

सीट का जातीय चरित्र
इस सीट से निर्वाचित श्रीनारायण दास, सुरेंद्र झा सुमन और एमएए फातमी ही इस संसदीय क्षेत्र के निवासी रहे हैं। अन्य सांसद दरभंगा के लिए बाहरी ही रहे हैं। 1989 के बाद से इस सीट पर जनता दल मुसलमानों को उम्मीदवार बनाता रहा है। एनडीए बनने के बाद से यह सीट भाजपा के कब्जे में रही है और भाजपा ही उम्मीदवार देती रहे हैं। 2019 के चुनाव में सीट का जातीय चरित्र बदलने की संभावना दिख रही है। राजद इस बार यह सीट समझौते के तहत कांग्रेस के लिए छोड़ सकती है, जबकि भाजपा जदयू के लिए सीट त्याग सकती है। यह सब नये राजनीतिक समीकरण और मजबू‍रियों की वजह से होता हुआ दिख रहा है। 

कौन-कौन हैं दावेदार
बिहार में दरभंगा ही एकमात्र ऐसी सीट है, जहां से 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए दोनों गठबंधनों के उम‍मीदवार के नाम तय माने जा रहे हैं। महागठबंधन से वर्तमान सांसद कीर्ति आजाद उम्मीदवार होंगे, जबकि एनडीए के उम्मीदवार संजय झा होंगे। भाजपा के सांसद कीर्ति झा आजाद को पार्टी से निलंबित कर दिया गया है। वे अब तेजस्वी यादव के समर्थन में उतर गये हैं। माना जा रहा है कि वे भाजपा को ‘प्रणाम’ करने के बाद कांग्रेस में शामिल होंगे और दरभंगा से कांग्रेस के उम्मीदवार होंगे। इसके लिए राजद को दरभंगा सीट पर अपना दावा छोड़ना पड़ सकता है। राजद इसके लिए तैयार बताया जा रहा है। दरभंगा से राजद के चार बार सांसद रहे एमएए फातमी को किसी दूसरी सीट पर शिफ्ट किया जा सकता है। उधर, तीन बार सीट जीत चुकी भाजपा अगली बार दरभंगा जदयू के लिए छोड़ सकती है। जदयू इस सीट पर संजय झा को चुनाव लड़ाएगा। 2014 के लोकसभा चुनाव में जदयू के संजय झा को करीब एक लाख वोट से संतोष करना पड़ा था। संजय झा मूलत: भाजपाई हैं। वे भाजपा से विधान पार्षद भी रह चुके हैं। वे भाजपा के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली और सीएम नीतीश कुमार के बीच सेतु की भूमिका का निर्वाह करते रहे हैं। संजय झा विधान परिषद का कार्यकाल समाप्त होने के बाद जदयू में शामिल हो गये थे। जदयू में वे लगातार लाभ के पद पर रहे हैं। यह भी संभावना है कि संजय झा ‘घर वापसी’ कर दरभंगा से भाजपा के उम्मीदवार बन जायें। यह दोनों दलों में सीटों के बंटवारे पर‍ निर्भर करेगा। अभी तक जो राजनीतिक समीकरण है, उसमें दोनों गठबंधन की ओर कीर्ति झा आजाद और संजय झा के बीच मुकाबला होता दिख रहा है।


साभार : बीरेंद्र यादव 

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