बिहार : छात्रा खुशबू की रहस्यमय मौत की सी.बी.आई. जांच की मांग - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 16 दिसंबर 2018

बिहार : छात्रा खुशबू की रहस्यमय मौत की सी.बी.आई. जांच की मांग

21 दिसंबर को पूरे बिहार में आइसा द्वारा होगा राज्य व्यापी विरोधआइसा- ऐपवा की एक जांच टीम कल यानी 17 दिसंबर को खुशबू के परिजनों से मिलने जाएगी जहानाबादआई.जी.आई. एम.एस.की नर्सिंग प्राचार्य और दोषी शिक्षकों को निलंबित करो- आइसा , ऐपवा, पीएमएसयू अनशन पर बैठी छात्राओं पर लाठीचार्ज के दोषी पदाधिकारियों पर कार्रवाई करो- आइसा , ऐपवा
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पटना (आर्यावर्त संवाददाता) 16 दिसंबर ,2018। आज आई.जी.आई.एम.एस. नर्सिंग  कॉलेज की छात्रा खुशबू की रहस्यमय मौत को लेकर आइसा ऐपवा और पीएमएसयू के जरिये संवाददाता सम्मेलन किया गया।संवाददाता सम्मेलन में नर्सिंग कॉलेज की छात्राएं भी हुई शामिल। संवाददाता सम्मेलन में बात रखते हुए नर्सिंग कॉलेज की छात्राओं ने कहा कि 3 दिसंबर को दोपहर 12 बजे के करीब खुशबू को क्लास को-ऑर्डिनेटर के जरिये प्रिंसिपल आफिस जाने को कहा जाता है, खुशबू के वहां जाने पर उससे उसका मोबाइल फ़ोन जब्त कर लिया जाता है। उसके बाद लगभग 45 मिनट तक न जाने प्रिंसिपल ऑफिस में उसके साथ क्या होता है? क्या बातें कही जाती है? खुशबू प्रिंसिपल ऑफिस से रोती हुई अपने हॉस्टल पहुंचती हैं जहाँ उसकी मुलाकात अपनी सहपाठियों से होती हैं। दोस्तों द्वारा पूछे जाने पर खुशबू ने रोते हुए ये बताया कि उसका मोबाइल जब्त कर लिया गया है ।
उसके बाद खुशबू अपने कमरे चली जाती है , 10 मिनट के बाद छात्राओं को आशंका होती हैं तो वह कमरे का गेट खोलवाना चाहती हैं लेकिन अंदर से कोई आवाज नही आती है।  इसके बाद इस बात की सूचना होस्टल वार्डन एवं शिक्षकों को छात्राएं देती हैं लेकिन तुरंत कमरे के दरवाजे को नही तोड़ा जाता है उसमे भी काफी समय निकाल जाता है। उसके बाद जब कमरे के दरवाजे को तोड़ कर अंदर जाया जाता है तो खुशबू पंखे से लटकी पायी जाती है। उसके बाद हॉस्टल में तीन गाड़ियों के रहते हुए एम्बुलेंस बुलाने कहा जाता है और एम्बुलेंस के आने में हो रही देरी के बावजूद भी हॉस्टल के गाड़ी से उसे अस्पताल नही ले जाया जाता है। खुशबू के कमरे से उसके दोस्तों को शुरुआत में किसी प्रकार की कोई सुसाइड नोट नहीं मिलती है, परंतु आधे घंटे तक जब लड़कियां खुशबू को अस्पताल पहुंचाने में लग जाती है तब उस कमरे में एक सुसाइड नोट लिख कर रख दिया जाता है जिसके हैंडराइटिंग खुशबू के हैंडराइटिंग से बिल्कुल नहीं मिलती। उस सुसाइड नोट में शादीशुदा खुशबू के द्वारा ना अपने पति ना बच्चे की कोई बात कहती है बस आखरी में अपने पिता को सॉरी कहती है कि मैं कुछ नहीं कर पाई। सरकार द्वारा एक जांच कमेटी बनाई जाती है पर वह जांच कमेटी बी.एस.सी. नर्सिंग की एक छात्रा से कोई बयान नहीं लेती है और 7 दिन में देने वाली रिपोर्ट को 14 दिनों तक नहीं देती है।  प्राचार्य समेत शिक्षकों को छुट्टी दे दी जाती है ताकि वह घर पर बैठकर अपने बचने की कोशिश में लग जाए अनशन पर बैठी छात्राओं को पुलिस कर्मियों द्वारा बर्बरता से मारा पीटा जाता है। वहीं संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी ने कहा कि काॅलेज की चतुर्थ वर्ष में पढ़ने वाली एक नर्सिंग छात्रा ने बताया कि खुशबू प्रथम वर्ष की छात्रा थी और दलित समाज से आती थी। उसे हमेशा काॅलेज प्रशासन प्रताड़ित करता था और भद्दे-भद्दे कमेंट पास करता था। प्राचार्य के अलावा कुछेक शिक्षक भी इस प्रताड़ना में शामिल थे। जिस दिन खुशबू ने आत्महत्या की उसको प्राचार्य ने अपने चैंबर में बुलाया था। वहां उसे क्या बोला गया हमलोगों को पता नहीं लेकिन चैंबर से निकलने के तत्काल पश्चात उसने अपने कमरे में आकर कमरा बंद कर वह फांसी के फंदे से लटक पड़ी फिर भी उसे बचाया जा सकता था लेकिन काॅलेज प्रशासन उसे बचाने के लिए तनिक भी सक्रिय नहीं दिखा।  कमरे का ताला तोड़ने के लिए परमिशन लेटर लिखवाया गया, जिसमें तकरीबन दस मिनट का समय लगा। किसी टीचर ने अपनी गाड़ी नहीं दी,  एंबुलेस बुलवाना पड़ा जिसमें काफी वक्त लग गया।जबकि हर टीचर के पास अपनी गाड़ी थी।.छात्राओं को फांसी लगाए खुशबू के पास पहुंचने नहीं दिया गया, लाश को चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी ने उतारा.  बाद में छत्राओं ने उसे आईसीयू ले गयीं लेकिन वहां पहुंचते-पहुंचते बहुत समय लग चुका था और उसकी मृत्यु हो चुकी थी. खुशबू के कमरे में जब लड़कियां दाखिल हुईं तो उन्हें किसी प्रकार सुसाइड नोट नहीं दिखा जबकि बगल में टेबल व कुर्सी थी. आधे घंटे में टीवी पर उसका सुसाइड नोट ब्रेकिंग न्यूज के बतौर चलने लगा, जिसमें उसने अपने पापा को लिखा था कि – साॅरी पापा, मैं कुछ नहीं कर पाई. जबकि खुशबू विवाहित थी और एक बच्चा भी था. नर्सिंग छात्राएं इस सुसाइड नोट को सवालिया नजर से देखती हैं कि ऐसा कैसे हो सकता है कि खुश्बू अपने नोट में अपने बच्चे व पति का जिक्र न करे. उनका मानना है कि नोट बाद में लिखा गया और उसका मूल नोट गायब कर दिया गया. सुसाइड नोट उसके अक्षरों में भी नहीं है.

छात्राओं के विरोध के बावजूद डेड बाॅडी को जबरदस्ती निकाल दिया गया और उसका पोस्टमार्टम कर दिया गया. आज तक किसी को पता नहीं है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में क्या है? नर्सिंग छात्रा सवाल करती हैं कि एससी/एसटी एक्ट के तहत प्राचार्य पर मुकदमा दर्ज किया गया है, इस एक्ट के तहत 24 घंटे में आरोपी की गिरफ्तारी होनी चाहिए लेकिन अभी तक उनकी गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई? बहुत ही यह जायज सवाल है. बहरहाल, 13 दिसंबर को अनिश्चितकालीन उपवास और  आइसा के आंदोलन के दबाव में डीन से छात्राओं की वार्ता हुई. छात्राओं ने डायरेक्टर को लिखे पत्र में कहा है कि न केवल खुश्बू बल्कि हम सब लड़कियां परेशान हैं. प्राचार्य से जब कोई लड़की छुट्टी मांगती है तो कहती हैं कि तुम प्रेग्नेंट हो कि छुट्टी चाहिए. लुसी मैडम के अनुसार यदि कोई लड़की एटीम जाने के लिए, हाॅस्पीटल जाने के लिए आज्ञा लेने जाती है तो टीचर कहती हैं कि तुमलोगों को तो कोई कामधाम है नहीं, बाहर जाकर लड़कों से मिलती हो और पेट फुलाकर आती हो. इसी प्रकार के कथनों से खुशबू बहुत प्रताड़ित हुई थी. दलित होने की वजह से उसे यह बार-बार सुनना पड़ता था. डीन ने कहा कि प्राचार्य और अन्य आरोपियों पर कार्रवाई करना उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं है क्योंकि उसपर ऊपर से एक इनक्वायरी कमिटी बैठ चुकी है. लेकन छात्राएं प्राचार्य के निलंबन की मांग पर अड़ी रहीं. 14 दिसंबर को जांच पूरी होने तक प्राचार्य व अन्य दो शिक्षकों के काॅलेज आने पर प्रतिबंध लगने की खबर अखबारों में छपी. लेकिन मामला जिस प्रकार का है, उसमें सीबीआई जांच से नीचे की बात ही नहीं बनती. छात्राओं का आंदोलन चलते रहा लेकिन 14 दिसंबर की रात्रि में प्रशासन ने छात्राओं का बर्बरता से दमन किया.
 छात्राओं के कंबल छीन लिए गए और आइसा नेता रामजी यादव सहित कई छात्र नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. प्राचार्या को छुट्टी पर भेजने की घोषणा की गई है. निश्चय ही छात्राओं ने एक स्तर की लड़ाई जीत ली है लेकिन खुशबू कांड के मामले में न तो स्वास्थ्य सचिव द्वारा बनाई गई जांच समिति ने छात्राओं का बयान लिया है न पुलिस ने कोई बयान लिया. आंदोलन के दबाव में 15 दिसंबर की दोपहर में पुलिस बयान दर्ज करने के लिए तैयार हुई. लेकिन, एक दलित छात्रा और डेढ़ साल के बच्चे की मां खुशबू की मौत की जांच के नाम पर बनी कमिटी क्या कर रही है यह बताने के लिए न तो स्वास्थ्य सचिव उपलब्ध हैं न स्वास्थ्य मंत्री. दोनों अमेरिका यात्रा पर बताये जा रहे हैं. बिहार में सांस्थानिक हत्याएं हो रही हैं और मंत्री टूर पर हैं. वहीं संबोधित करते हुए आइसा के राज्य अध्यक्ष मोख्तार ने कहा कि अकादमिक संस्थानों में छात्र-छात्राओं और खासकर दलित व वंचित वर्ग से आने वाले छात्र-छात्राओं की प्रताड़ना का सिलसिला तनिक भी कम नहीं हो रहा है. हैदराबाद विश्वविद्यालय में रोहित वेमुला की संस्थागत हत्या ने देश के कैंपसों के अंदर जातिगत उत्पीड़न की कलई खोल दी थी, लेकिन बिहार के कैंपसों की बात की जाए तो यहां की स्थिति कहीं ज्यादा भयावह है. डीका बलात्कार-हत्या कांड में हम सबने देखा और महसूस किया कि भाजपा-जदयू राज में बिहार के कैंपस शिक्षा के केंद्र नहीं बल्कि यौन उत्पीड़न के केंद्र बने हुए हैं. शेल्टर गृह मामले ने तो इस सड़ांध को पूरी तरह से बेनकाब कर दिया है जहां बच्चे-बच्चियों का न केवल लंबे समय से यौन शोषण होता रहा, बल्कि उनकी तस्करी तक की रिपोर्टं मिलीं है. इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा बिहार सरकार को कई बार फटकार लगाया जा चुका है, लेकिन महिलाओं-छात्राओं के खिलाफ जारी हिंसा में किसी भी प्रकार की कमी न हीं आ रही है. सबसे हालिया प्रकरण राजधानी पटना के प्रतिष्ठित मेडिकल संस्थान आईजीआईएमएस का है, जहां ठीक रोहित वेमुला और डीका की तर्ज पर जहानाबाद की दलित समुदाय से आने वाली नर्सिंग छात्रा खुश्बू कुमारी की संदेहास्पद मौत का मामला उजागर हुआ है. मामले को रफा-दफा करने की भरपूर कोशिशें हुईं लेकिन नर्सिंग छात्राओं के जबरदस्त आंदोलन ने प्रशासन को बैकफुट पर भेजने के लिए मजबूर किया है। छात्राओं का कहना है कि प्राचार्य कक्ष से निकलने के तत्काल बाद खुश्बू ने अपने कमरे में जाकर आत्महत्या की, इसका मतलब है कि प्राचार्य कक्ष में उसे बहुत जबरदस्त तरीके से प्रताड़ित किया गया, जिसे वह बर्दाश्त नहीं कर पाई। इस संस्थागत हत्या के खिलाफ नर्सिंग छात्राएं पहले दिन से ही आंदोलित हैं और खुशबू की रहस्यमय मौत की सीबीआई जांच व न्याय की मांग कर रही है उनके समर्थन में पटना के नागरिकों ने विशाल कैंडल मार्च भी निकाला. 12 दिसंबर से नर्सिंग छात्राएं अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठ गईं। आइसा और ऐपवा ने उनके आंदोलन का सक्रिय समर्थन  दियाॅॆि   प्रदेश अध्यक्ष भारत भूषण ने कहा कि सुशासन बाबू सिर्फ बेटी बचाओ और बेटी पढाओ एवं दलित उत्थान की का झूठा नारा देती है ,नीतीश कुमार को चुप्पी तोड़नी चाहिए।

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