पटना 4 जनवरी 2019, भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने आंदोलनरत आशाकर्मियों पर बिहार सरकार द्वारा दमनात्मक कार्रवाईयों से संबंधित आदेश की कड़ी निंदा की है. उन्होंने कहा कि आज नीतीश जी पूरी तरह मोदी के नक्शे कदम पर चल रहे हैं और एक तानाशाह की बोली बोल रहे हैं. जनता के सवालों के प्रति वे हद दर्जे की संवेदनहीनता दिखला रहे हैं. उन्होंने कहा कि विगत 1 महीने से आशाकर्मियों की हड़ताल चल रही है. आशाकर्मी अपने को सरकारी सेवक व 18000 रु. मासिक मानदेय की मांग कर रही हैं. लेकिन सरकार इसे लगातार अनसुनी कर रही है. कई राज्यों में आशा को मानेदय मिल भी रहा है. लेकिन बिहार में आशाओं से लगभग 10 साल पूर्व निर्धारित प्रोत्साहन राशि पर ही काम लिया जा रहा है. बिहार में 29 जून 2015 को सरकार के साथ मासिक मानदेय भुगतान के लिखित समझौता के बावजूद उसे तीन साल से ज्यादा समय बीत जाने पर भी लागू नहीं किया गया है. आशा फैसिलिटेटर के पद पर नियुक्त लोगों को सिर्फ क्षेत्र भ्रमण का यात्रा व्यय दिया जाता है. इसके लिए कोई मासिक पारिश्रमिक या मानदेय नहीं दिया जाता है जबकि उनकी नियुक्ति पूर्णतः सरकारी नियमों के तहत हुई है. आशा कार्यकर्ताओं को पश्चिम बंगाल में 1300 रु. मासिक मानदेय, आंध्रप्रदेश में 3000 से लेकर 6000 और केरला में 4000 रु. प्रति माह वहां की राज्य सरकारें दे रही हैं. जब दूसरी राज्य सरकारें न्यूनतम मानेदय दे रही हैं तो फिर बिहार सरकार क्यों नहीं दे सकती है? उन्होंने कहा कि सरकार ने आंदोलनरत आशाओं/आशा फैसिलिटेटरों को हटाकर नई बहाली का तुगलकी फरमान जारी किया है. हम इस कदम की कड़ी आलोचना करते हैं और इसे वापस लेने की मांग करते हैं. इसके खिलाफ आगामी 9 जनवरी को मजदूर वर्ग की देशव्यापी हड़ताल के समर्थन में वाम दलों ने बिहार बंद का आह्वान किया है. मोदी-नीतीश सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ 8-9 जनवरी को मजदूर वर्ग का यह जवाबी हमला होगा.
शुक्रवार, 4 जनवरी 2019
बिहार : आंदोलनरत आशाकर्मियों पर दमनात्मक कार्रवाई का आदेश निंदनीय: माले
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