मजदूरों-कारीगरों के श्रम से भवन -अपार्टमेंट बनते हैं पर उन्हें ही रहने को घर नहीं है पिछड़े, गरीब और असंगठित समाज में कमजोर वर्गों के पक्ष में बने कानून यूं ही लागू नहीं हो जाते. संघर्ष और संवाद के रास्ते पर चल कर मेहनतकश मजदूर,कारीगर,किसान,बेघर-विस्थापित और बटाईदार किसान अपना हक हासिल किये हैं और करेंगे. यह विश्वास व्यक्त किया गया.
पटना, 08 फरवरी। बिहार भूमि अधिकार जन जुटान के आयोजकों का मानना है कि एक अनुमान के अनुसार बिहार में 30 लाख परिवारों के पास वासभूमि नहीं है.आवास की वैकल्पिक व्यवस्था किए बिना गांव और शहरों में सड़क के किनारे ,तटबंध और सरकारी जमीन पर बनी गरीबों की झोपड़ी उजाड़ देना लोकतंत्र और मानवता का क्रूर मजाक है. एकता परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रदीप प्रियदर्शी ने कहा कि जन जुटान की पहली मांग है कि बिहार सरकार गांव और शहर के प्रत्येक वासहीन परिवार के लिए ऐसा कानून बनाए जिससे सभी जरूरतमंद घराड़ी की जमीन का हकदार बन सके. आगे उपाध्यक्ष ने कहा कि इधर नदियों के कटाव से विस्थापन के कारण वास भूमिहीन परिवारों की संख्या बढ़ती जा रही है.2008 की कुसहा त्रासदी के बाद 2 लाख 36 हजार 632 बर्बाद घरों के बदले सरकार ने लगभग 60 हजार घरों के निर्माण के बाद अपने हाथ खींच लिए. नदियों के कटाव से विस्थापित परिवारों को एक समय सीमा के अन्तर्गत वासभूमि एवं घर देकर पुनर्वासित कराना मांगों में शामिल है. एकता परिषद महिला मंच की मंजू डूंगडूंग ने कहा कि पिछले 30-40 वर्षों से हजारों भूमिहीन भू-हदबंदी अधिनियम के तहत फाजिल घोषित भूमि का पर्चा लेकर दर-दर भटकने को मजबूर हैं.वर्ष 2011 के सामाजिक-आर्थिक -जातीय जनगणना के अनुसार बिहार में अनुसूचित जाति के 81 प्रतिशत परिवार भूमिहीन हैं. भूमि सुधार कानून और उसके उद्देश्य को परास्त करने में भूधारी,नेता,वकील और अफसर जी जान से जुटे हुए हैं. भू-हदबंदी के 260 मुकदमे पटना उच्च न्यायालय में लंबित है।
जिलों की राजस्व अदालतों में सैकड़ों सिलिंग केस पड़े हुए हैं। बिहार भूमि सुधार कोर कमिटी के सुझाव पर सरकार ने बिहार भूमि सुधार (अधिकतम सीमा निर्धारण एवं अधिशेष भूमि अर्जन) अधिनियम 1961 की उप धारा 45 बी को समाप्त कर दिया पर दो साल चार महीने बीत जाने के बाद भी मुक्त हुए मुकदमे से जुड़ी भूमि का वितरण नहीं हुआ. हजारी प्रसाद वर्मा ने कहा कि बिहार में वनाधिकार कानून भी लागू नहीं हो रहा है. वनभूमि के पट्टे के लिए वर्षों से सैकड़ों आवेदन धूल फांक रहे हैं. पिछले दिनों पटना हाईकोर्ट के आदेश से वनभूमि के दावेदारों को राहत मिली है. अब उनके आवेदन का आखिरी तौर पर निष्पादन होने तक उन्हें बेदखल नहीं किया जा सकता । भूमि सुधार और वनाधिकार कानून को लागू कराना दूसरी मांग है. ओम प्रकाश सादा ने कहा कि किसान अपने खून-पसीने से अन्न पैदा करते हैं. पर किसान को न तो फसल का वाजिब दाम मिलता है और न ही बटाईदार किसानों को बर्बाद हुई फसल का मुआवजा. कर्ज माफी तो एक राहत है. किसानों की समस्या का स्थायी हल तो खेती को लाभकारी बनाना है. गन्ना किसानों की सरलत और भी खराब है. नापी,पूर्जी,वितरण,गन्ने की खरीद में उसके प्रकार को लेकर बखेड़ा,घटतौली और गन्ने के मूल्य का समय पर भुगतान नहीं होने से गन्ना किसान परेशान हैं. 18 फरवरी के जन जुटान की तीसरी प्रमुख मांग स्वामीनाथन आयोग की खेती-किसानी के विकास से संबंधित सिफारिशें अविलम्ब लागू कराते हुए खेती को लाभकारी बनाने और गन्ना किसानों को चीनी मिलों की मनमानी से मुक्त कराने की है.
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