बिहार : भूमिहीन को आवास भूमि उपलब्ध कराने के लिए सरकार अधिनियम बनाए - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 17 फ़रवरी 2019

बिहार : भूमिहीन को आवास भूमि उपलब्ध कराने के लिए सरकार अधिनियम बनाए

भितिहरवा स्थित गांधी आश्रम से सत्याग्रह संवाद पदयात्रा  कर बिहार भूमि अधिकार जन जुटान रैली शामिल होंगे
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बेतिया,17 फरवरी। जी हां, इसमें कई संगठनों ने मिलकर बिहार भूमि अधिकार जन जुटान को सफल करने में सहयोग कर रहे हैं। सूबे के 38 जिले के लोग पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में 18 फरवरी को आयोजित बिहार भूमि अधिकार जन जुटान रैली शामिल होने आ रहे हैं। बताते चले कि 255 किलोमीटर की दूरी तय करके हजारों की संख्या में पश्चिम चम्पारण से सत्याग्रह संवाद पदयात्रा  भितिहरवा स्थित गांधी आश्रम से सत्याग्रह संवाद पदयात्रा   के आ रहे हैं। गत 4 फरवरी को पश्चिमी चम्पारण के भितिहरवा स्थित गांधी आश्रम से सत्याग्रह संवाद पदयात्रा शुरू किए थे। जो मोतिहारी पार करके आगे की ओर प्रस्थान किए हैं। संगठन से जुड़े प्रो. प्रकाश ने बताया कि सरकार हर एक भूमिहीन को आवास भूमि उपलब्ध कराने के लिए एक अधिनियम बनाए। इसके तहत हर जरूरतमंद को जमीन उपलब्ध कराया जाए। ऐसा कानून बनाए जिससे सभी जरूरतमंद घराड़ी की जमीन का हकदार बन सके। नदियों के कटाव से विस्थापित परिवारों को एक समय सीमा के अन्तर्गत वासभूमि एवं घर देकर पुनर्वासित कराना है।

हजारों भूमिहीन भू-हदबंदी अधिनियम के तहत फाजिल घोषित भूमि का पर्चा लेकर दर-दर भटकने को मजबूर हैं। वर्ष 2011 के सामाजिक-आर्थिक-जातीय जनगणना के अनुसार बिहार अनुसूचित जाति के 81 प्रतिशत परिवार भूमिहीन हैं। भूमि सुधार कानून और उसके उद्देश्य को परास्त करने में भूधारी,नेता,वकील और अफसर जी जान से जुटे हुए हैं। भू-हदबंदी के 260 मुकदमे पटना उच्च न्यायालय में लम्बित हैं। जिलों की राजस्व अदालतों में सैकड़ों सिलिंग केस पड़े हुए हैं। बिहार भूमि सुधार कोर कमिटी के सुझाव पर सरकार ने बिहार भूमि सुधार ( अधिकतम सीमा निर्धारण एवं अधिशेष भूमि अर्जन) अधिनियम 1961 की उप धारा 45 बी को समाप्त कर दिया पर दो साल चार महीने बीत जाने के बाद भी मुक्त हुए मुकदमे से जुड़ी भूमि वितरण नहीं हुआ। बिहार में वनाधिकार कानून भी लागू हो रहा है। वनभूमि के पट्टे के लिए वर्षों से सैकड़ों आवेदन धूल फांक रहे हैं। पिछले दिनों पटना हाईकोर्ट के आदेश से वनभूमि के दावेदारों को राहत मिली है। अब उनके आवेदन का आखिरी तौर पर निष्पादन होने तक उन्हें बेदखल नहीं किया जा सकता। भूमि सुधार और वनाधिकार कानून को लागू कराना हमारी प्रमुख मांग है।

किसान अपने खून-पसीने से अन्न पैदा करते हैं। पर किसान को न तो फसल पर का वाजिब दाम मिलता है और ना ही बटाईदार किसानों की समस्या का स्थायी हल तो खेती को लाभकारी बनाना है। गन्ना किसानों की हालत और भी खराब है। नापी, पूर्जी वितरण,गन्ने की खरीद में उसके प्रकार को लेकर बखेड़ा, घटतौली और गन्ने के मूल्य का समय पर भुगतान नहीं होने से गन्ना किसान परेशान हैं। 18 फरवरी के जन जुटान की तीसरी मांग स्वामीनाथन आयोग की खेती-किसानी के विकास से संबंधित सिफारिशें अविलम्ब लागू कराते हुए खेती को लाभकारी बनाने और गन्ना किसानों को चीनी मिलों की मनमानी से मुक्त कराने की है।

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