बिहार : जिंदगी पर भारी पड़ रहा नकली खेल, मौत के मुहाने पर पहुंचा रहे वर्चुअल गेम - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 10 मार्च 2019

बिहार : जिंदगी पर भारी पड़ रहा नकली खेल, मौत के मुहाने पर पहुंचा रहे वर्चुअल गेम

- ब्लू व्हेल गेम, मोमो चैलेंज, किकी डांस चैलेंज और ड्रैगन ब्रेथ के खतरे के बाद अब पबजी ने अपना पांव पसारना शुरू कर दिया है
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कुमार गौरव । पूर्णिया : आज लगभग हर इंसान की जेब में स्मार्टफोन है। अभिभावक अपने बच्चों के साथ पर्याप्त समय नहीं बिता पाते, लिहाजा बच्चों के हाथों में भी स्मार्टफोन थमा दिए हैं पर अभिभावकों की यह कथित मजबूरी किशोरों को अंधेरी गलियों में ले जा रही है। ब्लू व्हेल गेम, मोमो चैलेंज, किकी डांस चैलेंज और ड्रैगन ब्रेथ के खतरे के बाद अब पबजी ने अपना पांव पसारना शुरू कर दिया है। पबजी गेम जैसी आभासी चुनौतियों का खतरा पैदा हो गया है। मोमो चैलेंज तकरीबन ब्लू व्हेल जैसा गेम है, जिसमें भाग लेने वालों को एक के बाद एक खतरनाक चैलेंज दिए जाते हैं। जिन्हें पूरा नहीं करने पर या तो लोगों में अवसाद पैदा हो जाता है या फिर चैलेंज के किसी स्तर पर भाग ले रहा शख्स आत्महत्या या खुद को नुकसान पहुंचाने वाला कोई कदम उठा लेता है। गत दिनों रानीपतरा रेलवे ट्रैक पर दो युवकों की मौत हो गई थी। दोनों पबजी गेम खेलने में इतने तल्लीन थे कि आ रही ट्रेन की आवाज तक उन्होंने नहीं सुनी और चपेट में आने से दोनों की मौत हो गई। 

...खेल रहे थे पबजी, कान में लगा था ईयरफोन, ट्रेन ने लील ली जिंदगी : 
रानीपतरा मुफस्सिल थाना क्षेत्र के काली घाट रेलवे गुमटी के समीप गत दिनों रात्रि करीब 8 बजे दो युवक पबजी गेम रेलवे पटरी पर खेल रहे थे कि ट्रेन की चपेट में आने से उसकी मौत हो गई। घटना के संबंध में बता दें कि काली घाट निवासी गोपी और कन्हैया दोनों की उम्र करीब 20 वर्ष रेलवे ट्रैक पर बैठकर पबजी गेम खेल रहे थे। गेम में दोनों इतने मशगुल थे कि उन्हें जोगबनी की ओर से आ रही पैसेंजर ट्रेन की हाॅर्न भी सुनाई नहीं दी। जिस कारण दोनों दुर्घटना के शिकार हो गए। वहीं ट्रेन ड्राइवर के द्वारा घटना की जानकारी रानीपतरा स्टेशन प्रबंधक को भी दी गई। बता दें कि पबजी गेम खेलने के दौरान खिलाड़ी ईयरफोन का इस्तेमाल करते हैं तो बाहर की कोई भी आवाज सुनाई नहीं देती है। जिस कारण दोनों युवक ट्रेन की चपेट में आ गए। युवक गोपी की मौत घटनास्थल पर ही हो गई थी। जबकि कन्हैया को ग्रामीणों ने इलाज के लिए अस्पताल ले गए। जहां डॉक्टर ने उसकी नाजुक स्थिति को देखते हुए बेहतर इलाज के लिए अन्यत्र रेफर कर दिया। परिजनों के द्वारा उसे मैक्स 7 में भर्ती कराया गया। जहां दूसरे दिन उसकी भी मौत हो गई।

...आखिर क्या है पब्जी गेम : 
जानकारों की माने तो इस गेम को किलर गेम भी कहा जाता है। इस गेम को कई खिलाड़ी मोबाइल पर मिलकर आॅनलाइन खेलते हैं। इस खेल में सभी खिलाड़ी को जो मार गिराता है उसे ही जीत मिलती है। वर्तमान समय में पबजी गेम का युवाओं व बच्चों में जबरदस्त क्रेज है। जिसका असर बच्चे व युवाओं के दिमाग पर पड़ता है। इस गेम को खेलने के दरम्यान अगर आप ईयरफोन का उपयोग करते हैं तो आपके साथ खेलने वाले खिलाड़ी की आवाज से दुश्मनों को भांप कर उस पर वार कर सकते हैं। ईयरफोन को लगाकर गेम खेलने के बाद आपको बाहर की कोई भी आवाज सुनाई नहीं देगी। शायद यही वजह रही होगी कि दोनों युवकों ने ट्रेन की आवाज नहीं सुनी। 

...असली और नकली दुनिया का फर्क मिटाने वाला खेल : 
इस संबंध में मोबाइल साॅफ्टवेयर एक्सपर्ट अजीत झा कहते हैं कि यह एक अहम सवाल है कि क्या कोई खेल किसी को आत्महत्या के लिए प्रेरित कर सकता है? उन्होंने कहा कि कोई मोबाइल गेम खेलते समय हमें आनंद की अनुभूति होती है, तो वह गेम हमारे दिमाग में उसे बार बार खेलने के लिए प्रेरित करता है। ज्यादातर गेम्स में कई लेवल होते हैं जो आसान से मुश्किल होते चले जाते हैं। अलग अलग लेवल पर जो टास्क मिलते हैं, उनसे बच्चों और किशोरों में यह भावना पैदा होती है कि वे इससे भी मुश्किल काम करके दिखा सकते हैं। हालांकि कड़ी चुनौतियां मिलते चले जाने पर बच्चे यह अंदाजा नहीं लगा पाते हैं कि इससे उनकी आंखों, शरीर को क्या नुकसान हो रहा है और उनका कितना समय नष्ट हो रहा है। हर गेम बच्चों को आत्महत्या के लिए नहीं उकसाता, लेकिन जब वे कोई गेम खेलते हुए आभासी (वर्चुअल) दुनिया और असली दुनिया का फर्क भूल जाते हैं। ऐसी स्थिति में खुद को या फिर दूसरों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

...आत्मघाती प्रवृत्तियों को आगे बढ़ने से रोकना होगा : 
यह विडंबना ही है कि जिस इंटरनेट और मोबाइल ने हमें एक दूसरे से जुड़ाव के कई मौके दिए हैं। उसी ने हमें पूरे समाज से काटकर एक ऐसी छद्म और अकेली दुनिया में निरुपाय छोड़ दिया है। जिससे बाहर आने का रास्ता अक्सर आत्महत्या या किसी खतरनाक कोशिश में ही मिलता है। इसलिए कुछ प्रतिबंध या रोकथाम के सरकारी प्रयासों से ही यह समस्या नहीं सुलझेगी बल्कि समाज को अपने आसपास ही ऐसा माहौल बनाना होगा, जिसमें आत्मघाती प्रवृत्तियों को आगे बढ़ने का मौका न मिल सके।

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