- नदी की धारा तेज रहने के कारण लोगों को किसी भी समय नदी के ऊपर लगाए गए चचरी पुल के समाहित होने का खतरा बना रहता है
पूर्णिया (आर्यावर्त संवाददता) : बैसा प्रखंड क्षेत्र के अंतर्गत विभिन्न घाटों पर पुल नहीं रहने के कारण लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। लोग चचरी पुल पर आवागमन करने को मजबूर हैं तो वहीं किसी घाटों पर नाव पर सवार होकर आवाजाही करना नियति बन गई है। बैसा के मंगलपुर घाट कनकई नदी में सालों भर पानी भरा रहता है। नदी की धारा तेज रहने के कारण लोगों को किसी भी समय नदी के ऊपर लगाए गए चचरी पुल के समाहित होने का खतरा बना रहता है। बाढ़ के दौरान चचरी पुल धराशायी होकर अन्यत्र बहकर चले जाते हैं। बाढ़ के समाप्त हो जाने के बाद पुनः चचरी पुल बनाने के लिए चंदा एकत्रित करना पड़ता है। लेकिन विभाग द्वारा पुल निर्माण कार्य नहीं कराए जाने के कारण लोगों को अपनी जान जोखिम में डाल कर चचरी के सहारे आवागमन करने के लिए विवश होना पड़ रहा है। हजारों की आबादी को आवागमन के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। इतना ही नहीं लोगों को दैनिक रोजमर्रे की सामग्री सहित छोटी मोटी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ग्रामवासियों को कई किलोमीटर का चक्कर लगाते हुए अपने पंचायत व प्रखड मुख्यालय जाना पड़ता है। प्रतिवर्ष बाढ़ की भीषण विपदाओं की दौर से गुजरने वाले यहां के जनमानस को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जिनसे बर्बादी, तबाही, भूखमरी, बेरोजगारी के सिवाय और कुछ नहीं दिखाई देती है। बाढ़ के प्रकोप से घर आंगन, खेत खलिहान तबाह हो जाता है। जिनसे उबरने में लोगो को काफी समय बीत जाता है। यूं कहे कि तिनका तिनका से तैयार किया गया घर हो या चचरी पुल पुनर्निर्माण करने में सालों अर्जित की गई पूंजी जनजीवन को पटरी पर लाने में व्यर्थ खर्च करने की नियति बन चुकी है। जी हां, वास्तविकता यहां के क्षेत्रवासियों की ऐसा ही कुछ है।
पुल पुलिया के अभाव में लोग आर्थिक, शैक्षणिक क्षेत्र में भी पिछड़ रहे हैं। किसानों को कृषि से उपजे फसलों को बाजार ले जाकर बेचने में भी कठिन विकल्पों से गुजरने पर मजबूर होना पड़ता है। अंततः कृषक फसलों को औने पौने दामों में बेचना होता है। विदित हो कि बैसा प्रखंड के महानंदा, कनकई नदी से प्रभावित हजारों की आबादी के लिए आज भी कई स्थानों पर आवागमन के लिए नाव ही एकमात्र सहारा बना हुआ है तो इसके विपरीत कहीं चचरी पुल। वर्ष भर का समय गांव के लोगों को किसी भी जगह पर जाने के लिए आज भी नाव ही नैया पार लगाती है। नदी पार करने का वैकल्पिक साधन नाव ही है। गर्मी के दिनों में नदी में पानी कम होने से लोग सुरक्षित निकल जाते हैं। मगर बरसात के दिनों में खतरों के बीच नदी पार करने की मजबूरी होती है, जो कि जानलेवा साबित होती है। क्योंकि बरसात के मौसम में नदियां उफान पर होती है। जिनसे नाव दुर्घटना होने का डर हमेशा बना रहता है।
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